महिला हितैषी नीतीश के राज में औरतों पर अत्याचार बढ़े
बिहार लोक संवाद डाॅट नेट
पटना, 13 दिसंबर: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को महिलाओं का हमदर्द माना जाता है। उन्होंने ऐसे कई क़दम उठाए हैं, जो महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से बेहतर बनाने वाले साबित हुए हैं।
नीतीश ने 2006 में पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50 फ़ीसद आरक्षण दिया। महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और गरीबी दूर करने के मक़सद से नीतीश ने 2007 में जीविका कार्यक्रम शुरू किया। 2007 में ही स्कूली लड़कियोें के लिए मुफ़्त साइकिल योजना की शुरूआत की गई।
नीतीश ने 2016 में महिलाओं को तमाम सरकारी नौकरियों में 33 फ़ीसद रिज़र्वेशन दिया। 2016 में ही नीतीश कुमार ने शराबबंदी क़ानून को अमली जामा पहनाया।
एक साल बाद 2017 में नीतीश कुमार ने बाल विवाह और दहेज प्रथा के खि़लाफ़ जनजागरूकता अभियान चलाया।
इन सबके बावजूद बिहार में महिलाओं पर अत्याचार बढ़ा है। उनपर हिंसा की वारादात में बेतहाशा इज़ाफ़ा हुआ है। इसका इंकेशाफ़ स्टेट क्राइम रिकाॅर्ड्स ब्यूरो ने हाल ही में जारी अपनी सालाना रिपोर्ट में किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक़ मुंगेर, भागलपुर, गया, नालंदा, पटना, बक्सर, सारण और मुजफ़्फ़रपुर जैसे ज़िलों में पत्नियों पर जुल्म ढाने के मामले बढ़े हैं। उनको शारीरिक हिंसा का शिकार बनाया गया है।
दूसरी तरफ़, नालंदा, जहानाबाद, मुजफ़्फ़रपुर, वैशाली, पटना, पूर्वी चम्पारण, गोपालगंज, सीवान, सारण, भोजपुर, रोहतास, अरवल, शेख़पुरा, मुंगेर और नवादा ज़िलों में दहेज हत्या की घटनाएं सबसे अधिक हुई हैं।
लेकिन सबसे चैंकाने वाली बात यह है कि बिहार में बेटियों की पैदाइश में कमी दर्ज की गई है। पांचवीं राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले पांच साल के दौरान प्रति एक हज़ार लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों के जन्म लेने की संख्या नौ सौ आठ रह गई है। दो हज़ार पंद्रह-सोलह के चैथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में प्रति एक हज़ार लड़कों पर लड़कियों की संख्या 934 थी, जो अब दो हज़ार उन्नीस-बीस में 908 रह गई है।
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