हरे-भरे दरख़्त पर ये मुर्झाए पत्ते कैसे
21वीं सदी की लोककथाएं-2
मैं जिस फ़्लैट में रहता हूं उसके ठीक सामने डेढ़-दो कट्ठे का एक प्लाॅट है। प्लाॅट में आम का एक बहुत बड़ा दरख़्त है। बाक़ी हिस्से में, बाउंड्री के चारों तरफ़, चार-पांच फ़ीट के तरह-तरह के पौधे लगाए गए हैं। हरे-हरे, लाल-पीले।
दूसरी जगह से शिफ़्ट होकर जब हम इस फ़्लैट में आए थे और कमरे की खिड़की खोली थी, तब सामने वाले प्लाॅट का मंज़र बेहद सुकून देने वाला महसूस हुआ था। आम के पेड़ की घनी-सब्ज़ पत्तियां, टहनियों पर अजीब सी आवाजेे़ं निकालती दौड़ती हुई गिलहरियां और चहचहाती-फुदकती हुईं तरह-तहर की चिड़ियां मन में मन में अजीब सा रोमांच पैदा करती थीं। बरसात में तेज़ हवाओं के दौरान इसकी झूमती शाखें़ और नहाई-धोई पत्तियों पर से टपकती बूंदें जैसे कह रही होती थीं: ‘और तुम मेरी कौन-कौन सी नेमतों को झुठलाओगे’।
लेकिन ये सब यूंही नहीं था। प्लाॅट के मालिक सुबह-सवेरे, चाय का कप हाथों में लिये और होंठों में सिग्रेट दाबे, घूम-घूम कर आम के दरख़्त और पौधों का जायज़ा लेते। माली को आबयारी और तराश-ख़राश की हिदायतें देते। कभी-कभी अपने सामने ही माली से सारा काम कराते। माली भी बड़ा माहिर और काम के तईं ईमानदार था। मालिक की गै़र मौजूदगी में भी उसी लगन से काम किया करता। उस साल दरख़्त बड़े-बड़े, खुशबूदार और मीठे आम से लद गया था।
……..
एक रोज़ अचानक महसूस हुआ, प्लाॅट के मालिक कई दिनों से दिखाई नहीं दे रहे हैं। फिर देखा, माली बदला हुआ है। फिर एक-एक कर कई ख़ामियां नज़र आती गईं। पौधे बेतरतीब-से नज़र आए। हमेशा साफ-सुथरे रहने वाले फ़र्श पर जगह-जगह ढेर सारे पत्ते बिखरे दिखाई दिये। पौधों की जड़ें शायद सूखने लगी थीं और शायद पत्तों पर छिड़काव भी नहीं हुए थे, इसलिए वे बदरंग से नज़र आए।
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एक रोज़ कमरे में था कि अचानक कुछ जलने की बू आई। बालकोनी पर आकर सामने देखा तो चैंक पड़ा। आम के पेड़ के ठीक नेचे सूखे पत्तों के ढेर से आग की लपटें निकल रही थीं। नया माली झाड़ू से सूखे पत्ते बटोर-बटोर कर ढेर पर रखता जा रहा था। हर बार आग की लपटें तेज़ होती जा रही थीं।
प्लाॅट के मालिक का कहीं अता-पता नहीं था।
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अगले रोज़ का नज़ारा बेहद तकलीफ़देह था।
पत्ते जल कर राख के ढेर में तब्दील हो चुके थे। हरे-भरे दरख़्त के एक तरफ़, निचले हिस्से की पत्तियां झुलस कर बदरंग हो गई थीं। माली ने कहीं और की बजाय इन्हीं पत्तियों के नीचे आग लगाई थी।
……..
हरे-भरे दरख़्त के एक तरफ़, निचले हिस्से की आग से झुलसी, बेजान और बदरंग पत्तियां आज भी मौजूद हैं। मैं जब भी इन पत्तियों को देखता हूं मुझे अक्सरीयत में अक़्लीयत के सियासी एजेंडे की याद आ जाती है।
प्लाॅट की देखरेख करने आए नये माली की आक़बत नाअंदेशी से कुछ ख़ास तरह की अक़्लीयतों का वजूद झुलस रहा है।
झुलसने-झुलसाने का यह सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक कि माली बदल न जाए।
माली को मालिक ही बदलेगा।
जम्हूरियत में मालिक जनता होती है।
-सैयद जावेद हसन
26 फ़रवरी, 2023
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