किशनगंज डीएम और सीवान एसपी का आदेश  एनआरसी का दूसरा रूप है?

बिहार लोक संवाद डाॅट नेट
बिहार में इन दिनों किशनगंज डीएम और सीवान एसपी के आदेश पर काफी चर्चा है। प्रशासन की ओर से तो यह कहा जा रहा कि यह आदेश पटना हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार जारी किया गया है लेकिन बहुत से लोग कह रहे हैं कि यह एक तरह से उसी एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजनशिप को लागू करने का दूसरा रूप है जिसका पूरे देश में जबर्दस्त विरोध हुआ है।
किशनगंज के डीम डा. आदित्यनाथ ने जिला सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी को भेजे अपने पत्र में कहा है कि जिलेे के विभिन्न स्थलों, विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों में रह रहे संदेहास्पद/अवैध प्रवासी व्यक्तियों की पहचान कर स्थानीय प्रशासन को सूचित करने और उनके निग्रह एवं निर्वासन के लिए इलेक्ट्राॅनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से आम जनता में जागरूकता फैलाने के लिए सभी आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। पत्र में पटना हाईकोर्ट के आदेश का हवाला दिया गया है और इसे अति आवश्यक बताया गया है।
इस पत्र में पटना हाईकोर्ट के जिस आदेश का हवाला दिया गया है उसमें मीडिया के अलावा जनहित से प्रेरित व्यक्तियों और एनजीओ से मदद लेने को बेहद अहम और राष्ट्रहित में बताया गया है। यानी कोई भी आम आदमी या एनजीओ इस बारे में सूचना दे सकता है।
पटना हाईकोर्ट का यह आदेश 18 अगस्त को जारी हुआ है और उसके अनुपालन का दावा करने वाला किशनगंज डीएम का पत्र- पत्रांक 1656 एक सितंबर को जारी हुआ है। यह केस सीआर. डब्लयूजेसी नं. 320/2020 उक्त महिला बनाम बिहार सरकार व अन्य का है। वह महिला नारी निकेतन, पटना में रह रही थी।
इससे पहले 29 अगस्त को ही सीवान के एसपी अभिनव कुमार के हस्ताक्षर से जारी एक ’आम सूचना’ में यह कहा गया कि सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों खासकर बांग्लादेशी नागरिक यदि आपके आसपास रह रहे या आपको किसी प्रकार की ऐसी आसूचना प्राप्त होती है तो आप अपने नजदीकी थाना/ओपी में सूचित कर सराकर/प्रशासन का सहयोग करें।
इन दोनों स्थानीय आदेशों का आधार बिहार सरकार के अवर सचिव, गृह विभाग का एक पत्र- पत्रांक 394 है जिसे 27 सितंबर को जारी किया गया है। इससे पता चलता है कि यह पत्र सभी जिला मुख्यालयों को भेजा गया है।
इस बारे में पत्रकार नील माधव ने बताया कि यह आदेश उस याचिका के निपटारे से जुड़ा हुआ है जो नारी निकेतन में रह रही बांग्लादेशी महिला ने दी थी। वह महिला मानव व्यापार का शिकार थी जिसने भारत में रहने और नया जीवन शुरू करने की मांग की थी। हालांकि उस महिला को वापस बांग्लादेश भेज दिया गया, कोर्ट ने इस मामले को जारी रखा। कई विशेषज्ञ मानते हैं यह केस उसी वक्त खत्म हो जाना चाहिए था।
नील माधव ने द वायर के लिए अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि पूर्व आईपीएस अफसर एस. आर. दारापुरी कहते हैं कि इस तरह के कदमों से मुस्लिम विरोधी भावनाएं भड़क सकती हैं। श्री दारापुरी के अनुसर ऐसे किसी अभियान की जरूरत नहीं है और इससे अफरातफरी फैल सकती है।
पटना हाईकोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार एक स्थायी डिटेंशन सेन्टर बनाये। हालांकि सरकार ने बेउर जेल के एक हिस्से में डिटेंशन सेन्टर बनाये की बात कही थी लेकिन कोर्ट ने एक स्थायी डिटेंशन बनाने को कहा और इसका समय, स्थान और प्लान बताने को आदेश दिया। ऐसी सूचना है कि यह डिटेंशन सेन्टर हाजीपुर में बनाया जा सकता है।
मानवाधिकारों के वकील और असम में नागरिकता को लेकर व्यापक कार्य करने वाले अमन वदूद का कहना है कि इस आदेश में जो बात कही गयी है वह तिल को ताड़ बनाने जैसी है। उनके अनुसार एक ऐसे समय में जबकि अदालतों में काफी संख्या में मुकदमे लटके हुए हैं, ऐसे आदेशों से गलत संदेश जाता है। पत्रकार नील माधव कहते हैं कि कोई यह नहीं बता रहा कि अवैध रूप से कितने विदेशी और बांग्लादेशी रहे हैं लेकिन बात डिटेंशन सेन्टर बनाने तक पहुंच गयी है।

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