छपी-अनछपी: चुनाव आयुक्त के चुनाव में सरकार का अकेला अधिकार खत्म, नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी जीती
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। निर्वाचन आयोग में चुनाव आयुक्तों का चुनाव अब तक सिर्फ केंद्र सरकार के हाथ में था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले के बाद इसके लिए एक समिति बनाई जाएगी जिसमें प्रधानमंत्री और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के साथ लीडर आफ अपोजिशन भी होंगे। नार्थ ईस्ट में भारतीय जनता पार्टी की बढ़त बरकरार रही है। ये दोनों खबरें सभी अखबारों में प्रमुखता से ली गई है। तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों के साथ हिंसा की बात को वहां के डीजीपी ने गलत करार दिया है। इसकी खबर भी पहले पेज पर है।
जागरण की सबसे बड़ी सुर्खी है: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सीजेआई व लोस के नेता विपक्ष भी होंगे शामिल। भास्कर ने लिखा है: मुख्य चुनाव आयुक्त का चुनाव भी अब कॉलेजियम करेगा। हिन्दुस्तान की सुर्खी है: चुनाव आयुक्त का चुनाव कॉलेजियम प्रणाली से होगा। सुप्रीम कोर्ट ने देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि अब इनकी नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएंगी। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया। फैसले में कहा गया कि यह नियम तब तक कायम रहेगा जब तक संसद इस मुद्दे पर कोई कानून नहीं बना लेती। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर लोकसभा में कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है, तो सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को नियुक्ति संबंधी समिति में शामिल किया जाएगा। पीठ ने सीईसी और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोलेजियम जैसी प्रणाली की मांग वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया।
नार्थ ईस्ट में बीजेपी
भास्कर की सबसे बड़ी खबर है: पूरब का उत्तर…फिर भाजपा। हिन्दुस्तान की दूसरी सबसे बड़ी खबर मोदी के बयान पर है: वह कहते हैं मर जा मोदी, देश कह रहा मत जा मोदी। जागरण की हेडलाइन है: त्रिपुरा और नगालैंड में राजग सरकार, मेघालय में किसी को नहीं मिला बहुमत। पूर्वोत्तर के त्रिपुरा और नगालैंड विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन ने फिर जीत दर्ज की है। त्रिपुरा में 60 सीटों में भारतीय जनता पार्टी को 32 सीटें सीपीआई (एम) को 11 और टीएमसी को 13 सीटें मिली हैं। नगालैंड में भाजपा गठबंधन को 37 और एनसीपी को 7 सीटें मिली हैं। मेघालय में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला है। यहां एनपीपी 26 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है जिसे भाजपा ने देर रात अपना समर्थन देने का ऐलान किया।
तमिलनाडु में बिहारी
हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी सुर्खी बिहार के मंत्री विजय चौधरी का बयान है: हमला तो छोड़िए बिहारियों से बुरा बर्ताव भी सहन नहीं। जागरण ने मुख्यमंत्री के बयान को अहमियत दी है: तमिलनाडु में बिहार कामगारों की सुरक्षा सुनिश्चित करें: सीएम। तमिलनाडु मामले पर वित्त, वाणिज्य कर एवं संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी ने गुरुवार को विधान परिषद में सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने दो टूक कहा कि किसी बिहारी के साथ दूसरे राज्य में मारपीट तो छोड़िए, अमर्यादित व्यवहार भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसा होने पर सरकार सख्त कदम उठाएगी। चौधरी ने कहा कि राज्य सरकार ने तमिलनाडु की घटना को संज्ञान में लिया है और वहां की सरकार से पूरे मामले की जानकारी मांगी है। गुरुवार को परिषद की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्ष द्वारा तमिलनाडु में बिहारियों के साथ मारपीट का मुद्दा उठाया गया। विपक्ष ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए राज्य सरकार से इसपर संज्ञान लेने की मांग की। उधर तमिलनाडु के डीजीपी शैलेंद्र बाबू ने कहा है कि हमले का जो वीडियो वायरल हुआ है वह फर्जी है।
हाथरस कांड में एक को सज़ा, बाक़ी बरी
उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित हाथरस- बूलगढ़ी कांड में गुरुवार को एडीजे विशेष एससी-एसटी त्रिलोक पाल सिंह की कोर्ट से गुरुवार को फैसला आया। घटना के चार में से तीन आरोपियों को बरी कर दिया गया। वहीं, संदीप सिसौदिया को गैर इरादतन हत्या और एससी एसटी एक्ट में दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा व 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। घटना 14 सितंबर 2020 की है। शुरुआत में तहरीर के आधार पर पुलिस ने मुकदमा संदीप सिसौदिया उर्फ चंदू के खिलाफ जानलेवा हमले व एससी-एसटी एक्ट में दर्ज किया था। बाद में गैंगरेप की धारा बढ़ाई गई, जिसमें संदीप के परिवार के रवि, रामू और लवकुश को भी आरोपी बनाया गया। युवती की 29 सितंबर को दिल्ली में मौत हो गई थी। मामले की जांच कर सीबीआई ने 18 दिसंबर 2020 को गैंगरेप, हत्या, एससी-एसटी एक्ट में चार्जशीट दाखिल की थी। अभियोजन पक्ष ने 104 गवाह बनाए थे। इनमें से 35 की गवाही कराई गई। मेडिकल, फॉरेंसिक और पॉलीग्राफी टेस्ट की रिपोर्ट दाखिल की। इधर, बचाव पक्ष से गवाह और साक्ष्य पेश नहीं किया गया। अदालत में मेडिकल रिपोर्ट, फॉरेंसिक रिपोर्ट में गैंगरेप की पुष्टि नहीं हुई। इधर, गवाहों की गवाही भी टिक नहीं सकी। वादी पक्ष के सभी गवाह बचाव पक्ष की जिरह के दौरान कमजोर साबित हुए।
जी-20 में सहमति नहीं
जागरण की प्रमुख खबर है: जी-20 में साझा बयान पर फिर नहीं बनी सहमति। अख़बार लिखता है कि भारत की ओर से चौतरफा कोशिश करने के बावजूद जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में साझा बयान जारी करने को लेकर सहमति नहीं बन सकी। बैठक की शुरुआत में पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ से आपसी मतभेद भूलकर व्यक्ति चुनाव के लिए काम करने की अपील भी काम नहीं कर सके। मतभेद की बड़ी वजह यूक्रेन के हालात को लेकर अमेरिका और पश्चिमी देशों और रूस चीन के बीच बढ़ रहा विवाद रहा। दोनों धुरियों के बीच सामंजस्य बनाने में विफल रहने के बाद गुरुवार को बैठक की समाप्ति के बाद जी-20 अध्यक्ष भारत की तरफ से सार प्रपत्र ही जारी किया गया।
कुछ और सुर्खियां:
- अदानी-हिंडनबर्ग मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की विशेषज्ञ समिति करेगी
- बारा नरसंहार के मुख्य आरोपी किरानी यादव को सश्रम आजीवन कारावास
- चीफ जस्टिस ने बार एसोसिएशन के अध्यक्ष को फटकारा, कहा- दबाव मत बनाइए, डरूंगा नहीं
- ममता बनर्जी का ऐलान, टीएमसी अकेले लड़ेगी 2024 का लोकसभा चुनाव
- कार से मुजफ्फरपुर जा रहे हैं एनएमसीएच के डॉक्टर लापता गांधी सेतु पर मिली कार पत्नी ने दर्ज कराई अपहरण की एफआईआर
- नालंदा जहरीली शराब कांड में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने मृतक के आश्रितों को तीन-तीन लाख मुआवजा का दिया आदेश
- अरशद वारसी निवेशकों से धोखाधड़ी में फंसे, सेबी ने शेयर बाजार में कारोबार पर लगाई पाबंदी
- होली पर मिलावट का खतरा बढ़ा: धनिया-जीरा पाउडर में लकड़ी का बुरादा
अनछपी: चुनाव आयोग के आयुक्तों और अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट का आदेश भारतीय लोकतंत्र इतिहास के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला है। पिछले कई वर्षों से चुनाव आयुक्तों की भूमिका सवालों के घेरे में रही है। इन सवालों की कई वजहें होती हैं। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र के शिवसेना की गुटबाजी पर चुनाव आयोग के फैसले को देखा जा सकता है जिसमें उद्धव ठाकरे विरोधी गुट को पार्टी का नाम और निशान दोनों दे दिया। चूंकि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भारतीय जनता पार्टी के साथ हैं तो यह आरोप लगा कि सरकार के दबाव में चुनाव आयोग ने ऐसा निर्णय दिया है और अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है। यही नहीं चुनाव के समय डीएम और एसपी के तबादले का अधिकार भी चुनाव आयोग के पास रहता है और उस समय भी यह आरोप लगता है कि चुनाव आयुक्त किसी एक दल का पक्षपात कर रहे हैं। कई बार बहुत कम वोटों से हार जीत का फैसला होता है उस समय भी चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाए जाते हैं। इतने चुनावों के बाद भी अगर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति ही सवालों के घेरे में हो तो लोकतंत्र के लिए इसे कतई स्वस्थ नहीं माना जा सकता। उम्मीद की जानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले के अनुसार बनी समिति जिन चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी उनसे ऐसी शिकायतें नहीं मिलेंगी।
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