छ्पी-अनछ्पी: “NEET में 0.001% चूक बर्दाश्त नहीं”, अररिया में उद्घाटन से पहले गिरा करोड़ों से बना पुल

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। मेडिकल दाखिला परीक्षा के बारे में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का दौर जारी है और अब अदालत ने कहा है कि अगर इसमें 0.001% भी चूक हुई है तो सख्त कार्रवाई की जाए। अररिया में करोड़ों की लागत से बना पुल उद्घाटन से पहले ही गिर गया। मुजफ्फरपुर में लड़कियों के साथ बर्बरता के मामले में एक आरोपित को गिरफ्तार किया गया है। आज के अखबारों की यह अहम खबरें हैं।

हिन्दुस्तान के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि यदि मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट-यूजी में किसी भी ओर से 0.001 फीसद की भी लापरवाही हुई है तो उससे पूरी सख्ती से निपटा जाएगा। अदालत ने कहा, कल्पना कीजिए! यदि कोई फर्जीवाड़ा करके डॉक्टर बनता है तो वह समाज के लिए कितना खतरनाक होगा। नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए देशभर में लाखों छात्र कड़ी मेहनत करते हैं। इसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसी परीक्षा में नाममात्र की लापरवाही भी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। जस्टिस विक्रम नाथ और एसवीएन भट्टी की अवकाशकालीन पीठ ने नीट परीक्षा दोबारा कराने से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

अररिया में नवनिर्मित पुल गिरा

भास्कर के अनुसार नेपाल से निकलने वाली बकरा नदी पर अररिया में बना 31 करोड़ का पुल मंगलवार की दोपहर नदी में समा गया। अररिया के कुर्साकांटा और सिकटी प्रखंड को जोड़ने वाला यह पुल ऐसे भरभरा कर गिरा जैसे पिलर के नीचे बुनियाद ही ना हो। दोपहर 2:15 बजे सिकटी के पड़रिया घाट पर बने इस पुल के दो पाये पूरी तरह धंस गए जबकि 6 क्षतिग्रस्त हो गए। पुल का निर्माण ग्रामीण अभियंत्रण संगठन (आरईओ) विभाग की देखरेख में किया गया था। इस मामले में पुल बनाने वाले ठेकेदार पर एफआईआर दर्ज की गई है। इसके अलावा तीन इंजीनियरों को सस्पेंड किया गया है। इस बीच केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि बिहार के अररिया में दुर्घटनाग्रस्त पुल का निर्माण केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के अंतर्गत नहीं हुआ है।

मुजफ्फरपुर कांड: एक गिरफ्तार

हिन्दुस्तान के अनुसार मुजफ्फरपुर में बेटियों से बर्बरता मामले में एक आरोपी को मंगलवार को गिरफ्तार किया गया। डीबीआर यूनिक नेटवर्किंग कंपनी में नौकरी दिलाने के नाम पर सारण की युवती को यौन शोषण का शिकार बनाने के आरोपी तिलक सिंह को एसआईटी और अहियापुर पुलिस ने गोरखपुर से गिरफ्तार किया। तिलक, सीवान के कोडरा गांव निवासी त्रिपुरारी सिंह का पुत्र है। वह गोरखपुर के एक होटल में छिपा था। सारण की पीड़िता ने कोर्ट में दायर परिवाद में कहा है कि बेराजगार युवतियों को डीबीआर यूनिक में नौकरी देने का झांसा देकर पहले उनका यौन शोषण किया जाता है। इसके बाद उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है। इतना ही नहीं, बेबस युवतियों को देह व्यापार में भी धकेल दिया जाता है।

देवेशचंद्र के बयान के मामले में जदयू का अलग रुख

सीतामढ़ी के नवनिर्वाचित सांसद के उस बयान पर, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह यादव और मुसलमान का काम नहीं करेंगे, जदयू और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का अलग-अलग रुख सामने आया है। इस मामले में मंत्री और जदयू के वरिष्ठ नेता विजय कुमार चौधरी ने कहा कि सरकार जाति और धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं करती। दूसरी और उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता विजय कुमार सिन्हा ने देवेश चंद्र ठाकुर के बयान का यह कहकर बचाव किया कि वोट देने वालों के काम को प्राथमिकता दी जाती है। विवादित बयानों के लिए बदनाम गिरिराज सिंह ने कहा कि वह भी मुसलमानों का काम नहीं करेंगे।

बिहार के 40 में से 38 सांसद करोड़पति

हिन्दुस्तान की खबर है कि बिहार के नवनिर्वाचित 40 लोकसभा सांसदों में से 38 सांसद करोड़पति हैं। चुनावी हलफनामा में इन्होंने अपनी संपत्ति एक करोड़ रुपये या इससे अधिक बताई है। भाजपा से जीतकर आए सभी 12, जदयू के 12, लोजपा (रामविलास) से 5, राजद से 4 और कांग्रेस से जीतकर आए सभी 3 सांसद करोड़पति हैं। इसके अलावा पूर्णिया लोकसभा सीट से जीतने वाले एकलौते निर्दलीय सांसद पप्पू यादव भी करोड़पति की श्रेणी में आते हैं। सिर्फ हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के गया लोकसभा सीट पर जीतने वाले सांसद जीतन राम मांझी और सीपीआई (माले) से जीतने वाले दो में एक सांसद आरा लोकसभा के सुदामा प्रसाद करोड़पति नहीं हैं। एडीआर की तरफ से मंगलवार को जारी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया।

डाक सेवक बहाली की सीबीआई जांच

भास्कर की खबर है कि भारतीय डाक विभाग के ग्रामीण डाक सेवक, ब्रांच पोस्टमास्टर, व असिस्टेंट ब्रांच पोस्टमास्टर की बहालियों में झारखंड और बिहार में हैरान करने वाली सच्चाई उजागर है। वर्ष 2023 में हुई इस बहाली के लिए झारखंड के 530 और बिहार में 2300 पदों के लिए योग्य भारतीयों से ऑनलाइन आवेदन मांगे गए थे। बहाली के लिए कोई लिखित या मौखिक परीक्षा नहीं होनी थी बल्कि मान्यता प्राप्त बोर्ड से जारी मैट्रिक के अंक पत्रों के आधार पर स्वत चयन होना था। इन पदों के लिए झारखंड से 6650 और बिहार से 9483 अभ्यर्थियों ने ऑनलाइन आवेदन के साथ सेंट्रलाइज्ड सर्वर में मैट्रिक का मार्कशीट भी अपलोड किया। अपलोड किए गए मार्कशीट के अनुसार झारखंड बिहार के कुल 16133 अभ्यर्थियों में से 223 को मैट्रिक में 100% अंक मिले थे जबकि 3826 को 98-99% अंक मिले हैं।

कुछ और सुर्खियां

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज करेंगे नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन
  • 22 से 26 जुलाई तक चलेगा बिहार विधानमंडल का मानसून सत्र, इस बार पांच बैठक
  • असम के गृह सचिव ने पत्नी के निधन के बाद अस्पताल में खुद को गोली मार की आत्महत्या
  • बीमा भारती का दावा- रुपौली उपचुनाव में लड़ने के लिए राजद ने दिया सिंबल
  • दिवाली तक बिहार के स्वास्थ्य विभाग में 13000 पदों पर नियुक्ति की संभावना
  • बिहार और झारखंड से एनआईए ने ज़ब्त किए 1.13 करोड रुपए
  • मशहूर प्लेबैक सिंगर अलका याग्निक सेंसरी न्यूरल नर्व हियरिंग लॉस (बहरापन) का शिकार

अनछपी: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को वैसे तो बिहार में बालिकाओं और महिलाओं के सशक्तिकरण का श्रेय दिया जाता है लेकिन दुखद बात यह है कि उनके ही शासनकाल में मुजफ्फरपुर में दूसरी ऐसी घटना सामने आई है जिससे पूरा बिहारी समाज और मानवता शर्मसार हो रहा है। अफसोस की बात यह है कि अभी इस पर राजनीतिक गलियारों और समाज में इस पर उतनी गंभीरता से बात नहीं हो रही है हालांकि मीडिया के कुछ हिस्से ने इसे जरूर प्रमुखता से सामने लाने की कोशिश की है। मुजफ्फरपुर में इससे पहले सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत बालिका गृह कांड में लड़कियों के यौन शोषण की खबर सबको पता है। सन 2018 में टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज़ की एक टीम ने इस मामले को उजागर किया तो पूरी दुनिया को यह बात मालूम हुई कि कैसे वहां लड़कियों का यौन शोषण किया जाता रहा और उनकी सप्लाई बड़े लोगों तक की जाती रही। इस कांड का जो असर नीतीश कुमार सरकार पर पड़ना चाहिए वह तो नहीं पड़ा लेकिन 6 साल के बाद ही फिर उसी मुजफ्फरपुर में इस तरह की वीभत्स घटना सामने आ गई। यह बात जरूर याद रखने की है कि मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में कई सरकारी महिला व पुरुष अधिकारियों की भी मिलीभगत सामने आई थी। घटना में जो बात पता चली है वह यह है कि एक नेटवर्किंग कंपनी है जो शायद हर्बल दवाओं की बिक्री का काम करती है और फर्जी फोन कॉल भी करवाती है। इस कंपनी में लड़कियों को नौकरी के नाम पर रखा जाता है लेकिन उनके यौन शोषण की शिकायत भी सामने आई है। पुलिस इस मामले में फिलहाल बहुत कुछ नहीं बता रही लेकिन ऐसा अंदाजा है कि कम से कम 100 लड़कियों के साथ यौन दुर्व्यवहार किया गया है। अभी तो इस मामले में सिर्फ एक आरोपित को गिरफ्तार किया गया है लेकिन इतने बड़े मामले में कोई एक अकेला आदमी नहीं हो सकता। विपक्षी दलों ने अब तक इस पर आवाज नहीं उठाई है लेकिन यह देखना जरूरी होगा कि आखिर इस गिरोह के पीछे किसका हाथ है और क्या इसको सरकार में शामिल अधिकारी और नेता भी तो संरक्षण नहीं दे रहे। यह बात आसानी से समझ में आने वाली है कि जो लड़कियां इस कंपनी में नौकरी के लिए गईं उनका आर्थिक आधार कमजोर है और शायद ही वह लंबी कानूनी लड़ाई में सक्षम हों। ऐसे में सिविल सोसाइटी और विपक्ष की जिम्मेदारी बनती है कि वह पुलिस को कोई लापरवाही बरतने का मौका ना दें। यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि इस मामले में एक-एक मुलजिम को कठोर से कठोर सजा मिले।

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