छपी-अनछपी: नया संसद भवन लोकतंत्र का मंदिर या ताबूत? मणिपुर की ताज़ा हिंसा में कई मौतें
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। नए संसद भवन के उद्घाटन के दिन जहां इसे सपनों का प्रतिबिंब और लोकतंत्र का मंदिर बताया गया तो दूसरी ओर आरजेडी ने इसकी तुलना ताबूत से कर दी जिस पर काफी विवाद हो गया। आज के अखबारों में संसद के उद्घाटन की खबरें भरी पड़ी हैं। नए संसद भवन से कुछ ही दूर जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे पहलवानों को दिल्ली पुलिस ने जबरदस्ती वहां से हटा दिया है, जिसे सभी ने जगह दी है। उधर मणिपुर में स्थिति फिर बिगड़ गई है और कई लोगों के मारे जाने की खबर है।
हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी खबर है: नई संसद देशवासियों के सपनों का प्रतिबिंब: मोदी। जागरण की पहली सुर्खी है: लोकतंत्र को मिला नया भव्य मंदिर। भास्कर ने लिखा है: लोकतंत्र के मंदिर में आस्था का साष्टांग। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को नए संसद भवन का शुभारंभ किया। नई इमारत को देशवासियों की आकांक्षाओं और सपनों का प्रतिबिंब करार देते हुए उन्होंने कहा कि यह भवन समय की मांग थी। इसके कण-कण से ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के दर्शन होते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश की यात्रा में कुछ पल अमर हो जाते हैं। 28 मई ऐसा ही दिन है।
ताबूत से तुलना
राष्ट्रीय जनता दल ने अपने ऑफिशल टि्वटर हैंडल पर उद्घाटन से ठीक पहले नए संसद भवन के साथ ताबूत की तस्वीर पोस्ट की है। इसके साथ एक सवाल है: यह क्या है। राजद ने अपने ट्विटर हैंडल से रविवार की सुबह नए संसद भवन के साथ ताबूत की तस्वीर साझा की। इसमें एक तरफ ताबूत है तो दूसरी तरफ संसद भवन की तस्वीर है। सोशल मीडिया पर कहा गया कि राजद ने नए संसद भवन की तुलना ताबूत से की है। इसे लगभग 37 लाख लोगों ने देखा है। इस पर 16 हज़ार लोगों ने जवाब लिखा, 6700 लोगों ने इसे रिट्वीट किया और 18 हज़ार लोगों ने इसे लाइक किया।
भाजपा नेता भड़के
राजद की ओर से नए संसद भवन की ताबूत से तुलना करने पर बिहार भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सांसद डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि जिस तरह का ट्वीट राजद ने किया है, वह बताता है कि भारतीय संसद पर वे विश्वास नहीं करते हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा कि बिहार की जनता इसी ताबूत में राजद को 2024 और 2025 के चुनाव में बंद कर देगी।
उद्घाटन में राष्ट्रपति को नहीं बुलाने पर सवाल
नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम से राष्ट्रपति को दूर रखने पर विपक्षी दलों ने रविवार को सवाल किए। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, संसद भवन के शुभारंभ को प्रधानमंत्री राज्याभिषेक समझ रहे हैं। संसद लोगों की आवाज है। सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, प्रधानमंत्री ने जोरदार प्रचार के बीच नए संसद भवन का उद्घाटन नई संसद, नया भारत का नारा दिया। उन्होंने कहा कि न्यू इंडिया की यह घोषणा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और विपक्षी दलों की अनुपस्थिति में हुई। तृणमूल कांग्रेस के सांसद और पार्टी के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने कहा कि नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए धार्मिक नेताओं और पुजारियों को आमंत्रित किया गया, लेकिन राष्ट्रपति को नहीं बुलाया गया। इधर, बिहार में नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से नहीं कराने के विरोध में बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन के प्रमुख घटक दलों ने अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए।
इतिहास बदलने वालों से…
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि इतिहास बदलने वालों से देश को बचाना है। उनका यह बयान सभी अखबारों में है। नीतीश ने कहा कि कुछ लोग इतिहास को बदलना चाहते हैं, ऐसे लोगों से देश को बचाना है। इन लोगों ने हर चीज पर कब्जा कर लिया है। सब कुछ एकतरफा हो रहा है। ये लोग काम नहीं कर रहे, केवल प्रचार करते हैं। उन्होंने ये बातें रविवार शाम जदयू मुख्यालय में पार्टी के प्रभारी पदाधिकारियों की दो दिवसीय संसद के समापन सत्र में कहीं। उन्होंने कहा कि बिहार में धार्मिक उन्माद को हमलोगों ने न के बराबर कर दिया, लेकिन कुछ लोग अब फिर से उसे कराने की कोशिश में हैं।
पहलवानों को ज़बर्दस्ती हटाया
जागरण की खबर है: जंतर मंतर से हटा पहलवानों का ‘अखाड़ा’, अब नहीं मिलेगी धरने की अनुमति। 1 महीने से ज्यादा समय से जंतर मंतर पर धरने पर बैठे पहलवानों को पुलिस ने बलपूर्वक वहां से हटा दिया। पुलिस ने कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए 109 पहलवानों व उनके समर्थकों को हिरासत में लेकर विभिन्न थानों में रखा। देर शाम सभी महिला पहलवानों व पूरी दिल्ली से हिरासत में लिए गए 800 समर्थकों को छोड़ दिया गया। उन्हें हिदायत दी गई कि वे दोबारा जंतर मंतर पर धरना नहीं दें। बाद में साक्षी मलिक ने ट्वीट कर कहा कि उनका आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है। वे लोग दोबारा जंतर-मंतर पर पहुंचकर सत्याग्रह जारी रखेंगे। इस पर डीसीपी प्रणव तायल ने कहा कि पहलवानों को किसी भी सूरत में जंतर मंतर पर धरने पर नहीं बैठने दिया जाएगा।
मणिपुर में मौतें
भास्कर की सुर्खी है: मणिपुर 10 मौतें, 400 घर फूंके, चार विधायकों के घर पर हमला। अखबार लिखता है कि मणिपुर में हिंसा पर लगाम नहीं लग पाई है। रविवार को राज्य के विभिन्न जिलों में हिंसा की घटनाओं में एक महिला समेत 10 लोगों की मौत हो गई। इनमें असम पुलिस के 2 कमांडो शामिल हैं। राज्य में 400 घरों को जलाने की घटनाएं हुईं। गुस्साई भीड़ ने 4 विधायकों के घरों पर हमले भी किए। यह घटना उस समय हुई है जबकि थल सेना अध्यक्ष मनोज पांडे 2 दिन से मणिपुर में कैंप किए हुए हैं और गृह मंत्री अमित शाह सोमवार को राज्य के दौरे पर जाएंगे। इधर मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह ने बताया कि अब तक सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ों में लगभग 40 कुकी उग्रवादी मारे जा चुके हैं।
कुछ और सुर्खियां
- पटना में 12 जून को विपक्षी एकजुटता की महाबैठक होगी, देशभर के दिग्गज जुटेंगे
- पूर्व मंत्री मुनाजिर हसन ने जनता दल यूनाइटेड से इस्तीफा दिया, उपेंद्र की पार्टी में जाने का संकेत
- भाजपा विधायक राजू सिंह की गिरफ्तारी के लिए कई राज्यों में छापेमारी
- पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को आतंकी बताया
अनछपी: किसी भी लोकतंत्र में नए संसद भवन का उद्घाटन निश्चित रूप से एक बड़ी घटना मानी जानी चाहिए लेकिन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ही इसके उद्घाटन की ज़िद ने पूरे माहौल को खराब कर दिया। इस जीत के कारण विपक्षी दलों ने भी आक्रामक रुख अपनाया और आरजेडी ने संसद भवन के साथ ताबूत को रखकर अपना विरोध प्रकट किया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो नए संसद भवन की जरूरत पर ही सवाल उठाया था लेकिन विपक्षी दलों ने इसके उद्घाटन में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की पूरी तरह से उपेक्षा करने को एक बड़ा मुद्दा बनाने में कामयाबी हासिल की। मुख्य विपक्षी नेता राहुल गांधी ने यह सवाल किया कि क्या यह लोकतंत्र का उत्सव है या किसी बादशाह की ताजपोशी। इसके साथ ही तृणमूल कांग्रेस ने धार्मिक आयोजन से संसद भवन के उद्घाटन पर भी सवाल उठाया। भारत को वैसे तो सेक्यूलर देश बताया जाता है लेकिन यहां वैदिक रीति रिवाज द्वारा उद्घाटन हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है। सैकड़ो लोग लगातार यह सवाल खड़ा कर रहे हैं कि भारत के सरकारी कार्यक्रमों में हिंदू रीति रिवाज को प्रश्रय क्यों मिलता है? हिंदू रीति रिवाज को भारतीय या वैदिक बताकर सरकार की धर्म से जो दूरी होनी चाहिए उसे मिटाया जा रहा है। बल्कि उसे एक विशेष धर्म का देश बनाने की कोशिश जारी है। भारत में आम समझ यह है कि सरकार किसी धर्म को दबाने की कोशिश नहीं करेगी ना ही किसी धर्म पर विशेष कृपा करेगी लेकिन पिछले कई सालों से ऐसी बातें हो रही हैं जिन से यह बात साफ तौर पर पता चलती है कि सरकार हिंदू धर्म को राजकीय धर्म के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। वैसे भी बहुत सारे हिंदुत्ववादी संगठन भारत को हिंदू राष्ट्र बता रहे हैं, ऐसे में संसद भवन के उद्घाटन में इतना विवाद होना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता। जरूरत इस बात की है कि अब नए संसद भवन में भारत के सेक्युलर देश होने पर गंभीर चर्चा हो और देश को किसी एक धर्म का देश ना बनाया जाए।
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