छपी-अनछपीः विज्ञापन से भरे अखबार, नयी सरकार में जमां, शकील, शाहीन व शमीम के नाम भी
बिहार लोक संवाद डाॅट नेट, पटना। 76वें स्वतंत्रता दिवस पर निकले आज के अखबारों में विज्ञापन भरे हैं। कई पन्ने पलटने के बाद खबरें मिलीं। उन खबरों मंे सबसे अहम खबर यही है कि कल यानी 16 अगस्त को बिहार मंत्रिमंडल का विस्तार होगा। इसमें जदयू कोटे से पूर्व अल्पसंख्यक मंत्री जमां खान, कांग्रेस कोटे से कदवा के विधायक शकील अहमद खान और राजद के शमीम अहमद के नाम शामिल बताये जा रहे हैं।
हिन्दुस्तान दो हिस्सों में 44 पेजों में है। इसमें पहले 8 पेज विज्ञापन के हैं। 9वें पेज पर सबसे बड़ी खबर हैः समूचे हिन्दुस्तान में अमृत राग। इसमें कश्मीर से कन्याकुमारी तक राष्ट्रभक्ति के रंग की चर्चा है। इसकी दूसरी सबसे बड़ी खबर की हेडिंग हैः मंत्रिमंडल विस्तार कल, संभावित नामों पर मुहर। राजद से जिनके मंत्री बनने की चर्चा है उनमें तेज प्रताप यादव, आलोक मेहता, कुमार सर्वजीत, समीर महासेठ, अनिता देवी, सुरेन्द्र यादव, चंद्रशेखर, कार्तिक कुमार, सुधाकर सिंह, शमीम अहमद, रणविजय सिंह और अख्तरुल इस्लाम शाहीन के नाम शामिल हैं। कांग्रेस से कुल चार, ’हम’ से एक और एक निर्दलीय का नाम भी मंत्री बनने के उम्मीदवारों में शामिल है। भास्कर की सुर्खी हैः कैबिनेट विस्तार कल, मंत्रियों के नाम तय, जदयू से पुराने चेहरे। यही खबर जागरण में भी लीड हैै।
प्रभात खबर की सबसे बड़ी खबर हैः सूबे से 26 पुलिसकर्मियों को अवार्ड। इसमें राष्ट्पति पदक के लिए नैयर हसनैन खान, कुंदन कृष्णन और पंकज कुमार दराद के नाम शामिल हैं।
जागरण ने अपनी दूसरी सबसे बड़ी खबर की सुर्खी दी हैः भाजपा ने विभाजन के लिए नेहरू को ठहराया जिम्मेदार, गरमाई राजनीति।
बाहुबली नेता आनन्द मोहन सहरसा से पटना आये थे पेशी के लिए मगर पहुंच गये घर। यह खबर सभी अखबारों में प्रमुखता से छपी है। इस मामले में सहरसा की एसपी लिपि सिंह से जानकारी मांगी गयी है।
आजादी की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का संबोधन भी सभी अखबारों मंे प्रमुखता से छपा है। प्रभात खबर की सुर्खी हैः दुनिया ने हाल में नये भारत को विकसित होते देखा है।
अनछपीः आजादी का दिन वैसे तो जश्न मनाने के लिए होता है। मगर सत्ता के लिए हर सही-गलत नीति अपनाने वालों की टोली इस मौके पर भी कोई न कोई ऐसा मुद्दा छेड़ देती है जिससे इस जश्न में किरकिरी हो जाती है। यह सही है कि आजादी के साथ ही बंटवारा भी एक ऐतिहासिक सच्चाई है। मगर क्या इसके लिए अकेले नेहरू को जिम्मेदार बताना और इस वक्त उस बात को छेड़ना इंसाफ की बात है? इंसाफ की बात तो यह है कि आजादी के पहले और आजादी के बाद नेहरू के योगदानों की याद ताजा की जाए। अफसोस की बात है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री का नाम इतिहास से मिटाने में सरकारें शामिल हो गयी हैं। पहले यह काम संघ परिवार गैर सरकारी स्तर पर कर रहा था। कर्नाटक की भाजपा सरकार ने अखबारों में आजादी के योद्धाओं को याद करते हुए पंडित नेहरू और टीपू सुल्तान के नाम गायब कर दिये हैं। बहरहाल, इस बहस की अच्छी बात यह है कि बंटवारे के लिए भारत के मुसलमानों को ताना देने वालों को यह तय करने देना चाहिए कि वास्तव में भारत के बंटवारा के लिए कौन जिम्मेदार है।
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