छ्पी-अनछपी: एनआईए का डीएसपी 20 लाख घूस लेने में गिरफ्तार, बेरूत पर इसराइली हमले तेज

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) के एक डीएसपी को 20 लख रुपए घूस लेने के मामले में गिरफ्तार किया गया है। बेरूत पर इसराइल ने हमले तेज कर दिए हैं। बृज बिहारी हत्याकांड में पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि जाति के आधार पर कैदियों को काम देना असंवैधानिक है।

प्रभात खबर की सबसे बड़ी खबर के अनुसार सीबीआई की पटना टीम ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए), पटना शाखा के डीएसपी अजय प्रताप सिंह को अपने साला व एक अन्य के साथ 20 लाख रुपए रिश्वत लेने के मामले में गिरफ्तार किया है। डीएसपी अजय प्रताप सिंह इनकम टैक्स के अधिकारी हैं जो अभी एनआईए में प्रतिनियुक्त हैं। सीबीआई ने जानकारी दी है कि डीएसपी अजय प्रताप सिंह के गया, पटना और वाराणसी स्थित ठिकानों पर छापेमारी की गई है जहां से 20 लख रुपए सहित कई दस्तावेज बरामद किए गए हैं। मामला यह है कि जदयू की पूर्व एमएलसी मनोरमा देवी के ठिकानों पर एनआईए ने छापेमारी की थी। मनोरमा देवी के बेटे रॉकी यादव का आरोप है कि डीएसपी अजय प्रताप सिंह उन्हें नक्सलियों के साथ साठगांठ के आरोप में फंसाने की धमकी दे रहे थे और इससे बचने के लिए ढाई करोड़ रुपए घूस की मांग की थी। इससे पहले डीएसपी ने अपने एजेंट के जरिए 25 लख रुपए ले लिये थे। इसके बाद भी पैसे की मांग करने पर रॉकी ने सीबीआई में केस दर्ज कराया तो सीबीआई की जांच में यह मामला पकड़ा गया।

बेरूत पर इसराइल के हमले तेज

जागरण के अनुसार लेबनान के दक्षिणी क्षेत्र में इसरायइली सेना और हिज़्बुल्लाह लड़ाकों के बीच भीषण लड़ाई जारी है। इसराइली सेना ने गुरुवार की लड़ाई में 15 लड़ाकों को मारने का दावा किया है। इसराइली हमले में एक अमेरिकी नागरिक और 28 स्वास्थ्यकर्मियों के भी मारे जाने की सूचना है। बेरूत के मध्य भाग और उपनगर दहिया में भी इसराइल ने मिसाइल हमने किए हैं। इजराइल में हिज़्बुल्लाह के भी रॉकेट हमले जारी हैं। इनमें हाइफा के सैन्य सामग्री के कारखाने को निशाना बनाया गया है। दक्षिणी लेबनान में जमीनी हमले में एक सैनिक के मारे जाने के बाद लेबनान की सेना ने भी इसराइली सेना पर जवाबी फायरिंग की है।

शेयर बाजार में 10 लाख करोड रुपए डूबे

पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव और सेबी के नए नियमों का असर गुरुवार को घरेलू शेयर बाजारों पर देखने को मिला। निवेशकों की बिकवाली से दोनों सूचकांक दो प्रतिशत से अधिक टूटे। सेंसेक्स में 1,769 अंक और निफ्टी में 547 अंक की गिरावट आई। इससे निवेशकों के 9.78 लाख करोड़ रुपये डूब गए। सेंसेक्स की 30 कंपनियों में से एह कंपनी ही बढ़त लेने में सफल रही। निफ्टी की 50 में से 48 कंपनियां लाल निशान में रहीं। दोनों मानक सूचकांक 27 सितंबर के अपने रिकॉर्ड उच्च स्तर से लगभग चार प्रतिशत नीचे आ चुके हैं।

मुन्ना शुक्ला को उम्र कैद, सूरजभान बरी

हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पटना हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए बिहार के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद और उनके बॉडीगार्ड लक्ष्मेश्वर साहू की हत्या के मामले में पूर्व विधायक विजय कुमार उर्फ मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को उम्र कैद की सजा सुनाई। कोर्ट ने 26 साल पुराने इस केस में पूर्व सांसद सूरजभान, राजन तिवारी समेत पांच आरोपितों को बरी किए जाने के हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा कि मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को हत्या और हत्या के प्रयास के जुर्म में दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत दिए गए हैं। ऐसे में दोषी मंटू तिवारी और मुन्ना शुक्ला को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई उम्र कैद की सजा को बहाल किया जाता है। पीठ ने दोनों दोषियों को दो सप्ताह के भीतर संबंधित जेल में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है। बृज बिहारी प्रसाद की 13 जून 1998 को रात 8:00 बजे आईजीआईएमएस में इलाज के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उस समय वह मेधा घोटाले में न्यायिक हिरासत में थे। उनकी पत्नी पूर्व सांसद रमा देवी ने कहा कि “जो बरी हो गए हैं उन्हें मां भगवती सजा देंगी।”

जेल में जाति के आधार पर काम देने की व्यवस्था असंवैधानिक: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देशभर की जेलों में जातिगत भेदभाव और जाति के आधार पर कैदियों के कामकाज के विभाजन को मौलिक अधिकारों का हनन बताया। अदालत ने लगभग 11 राज्यों के जेल नियमावली के उन प्रावधानों को रद्द कर दिया है, जिसके तहत कैदियों को उनके जाति के आधार पर कामकाज आवंटित किए जाते थे और उन्हें अलग-अलग वार्डों में रखा जाता था। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के जेल नियमावली से कैदियों का जाति पूछने वाले कॉलम को हटाने का आदेश दिया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ित जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने देशभर की जेलों में जातिगत भेदभाव और जाति के आधार पर कैदियों के कामकाज के विभाजन से जुड़े फैसले में कहा कि जेलों में वंचित जातियों के कैदियों को सफाई और झाड़ू लगाने का काम और उच्च जातियों के कैदियों को खाना पकाने का काम सौंपना सीधे तौर पर न सिर्फ जातिगत भेदभाव है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 15 का भी उल्लंघन है।

कुछ और सुर्खियां

  • बिहार में 18 जिलों के 16 लाख लोग बाढ़ से परेशान
  • कांग्रेस नेता और पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी के सामने पेश नहीं हुए
  • बीपीएससी पोर्टल पर वन टाइम रजिस्ट्रेशन कराएं, बार-बार नहीं भरना होगा डीटेल्स
  • रेल कर्मचारियों को मिलेगा 78 दिनों का बोनस
  • बाढ़ पीड़ितों के खोए भूमि दस्तावेज सरकार मुहैया कराएगी: मंत्री दिलीप जायसवाल
  • यूपीआई लाइट से एक दिन में केवल पांच लेनदेन होंगे
  • आईजीआईएमएस में हेपेटाइटिस जांचने का किट खत्म, 7-8 दिन से लोग परेशान

अनछपी: पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या के मामले में 26 साल के दौरान अलग-अलग अदालतों के अलग-अलग फैसले आए। 2009 में निचली अदालत ने सभी आठ आरोपितों को उम्र कैद की सजा सुनाई तो 5 साल बाद पटना हाईकोर्ट ने सभी अभियुक्तों को संदेह के लाभ के आधार पर बरी कर दिया। अब सुप्रीम कोर्ट ने उनमें से दो को उम्र कैद की सजा सुनाई है जिनमें एक प्रमुख नाम मुन्ना शुक्ला है जो पहले विधायक रह चुके हैं और राजद से लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। इत्तेफाक की बात है कि मुन्ना शुक्ला इस समय सरकार की पार्टी में नहीं और जिन्हें बरी किया गया वह सरकार के साथ हैं। ऐसे में सवाल हो सकता है कि क्या किसी को सजा दिलाने या बरी करने में सरकार का भी कोई रोल है? अगर कोर्ट के फैसले को ध्यान से पढ़ा जाए तो उसका कहना है कि अभियोजन पक्ष के पास मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी के खिलाफ जुर्म को साबित करने के लिए काफी सबूत हैं। यहां अभियोजन पक्ष का मतलब सरकारी पक्ष है और ऐसे में क्या सरकार उन लोगों के खिलाफ सबूत को कमजोर कर पेश कर सकती है जिन्हें बरी किया गया है? अपराध का जुड़ाव जब राजनीति के साथ हो तो ऐसे सवाल हमेशा बरकरार रहेंगे और अदालत के इतिहास में ऐसे कई लोग मिल जाएंगे जिन्हें अभियोजन पक्ष की कमजोरी की वजह से बरी किया गया। क्या यह कमजोरी जानबूझकर भी नहीं दिखाई जा सकती है? इस फैसले का दूसरा पहलू यह है कि इसे आने में 26 साल लग गए और क़ानून की जबान में कहा जाए तो न्याय में देरी का मतलब न्याय से वंचित करना होता है। इसे ही अंग्रेजी में ‘जस्टिस डिलेड इज़ जस्टिस डिनाइड’ कहा गया है। और इतना समय तब लगा है जबकि मामला हाई प्रोफाइल था और मारे गए मंत्री की पत्नी उस समय भी केस लड़ रही थीं जब वह सांसद चुनी गई थीं। ऐसे में यह सोचा जा सकता है कि अगर यह मामला आम आदमी का होता तो अभी और लंबा खिंचता। इंसान आखिरकार इंसाफ के लिए ऊपर वाले के भरोसे कैसे रहता है, यह बात दिवंगत बृज बिहारी प्रसाद की पत्नी रमा देवी के इस बयान से पता चलती है जिसमें उन्होंने कहा है कि जो बरी हो गए उन्हें “भगवती सज़ा देंगी।”

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