शाद अज़ीमाबादी : खिलौने देके बहलाया गया हूं

सैयद जावेद हसन, बिहार लोक संवाद डाॅट नेट
पटना, 7 जनवरी: उर्दू दुनिया में शाद अज़ीमाबादी किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं। उनकी पैदाइश अज़ीमाबाद यानी पटना सिटी के पूरब दरवाज़ा, हाजीगंज में 8 जनवरी, 1846 को हुआ था। वो 15 साल की उम्र से ही शायरी करने लगे थे। शाद की रचनाओं की विशेषता ये थी कि वो हिन्दी-उर्दू मिश्रित शब्दों का इस्तेमाल करते थे। उनकी शायरी की खुसूसियात के बारे में बताते हुए जेडी वीमेंस काॅलेज में उर्दू विभाग के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर और शाद अज़ीमाबादी सम्मान से सम्मानित डाॅक्टर सोहैल अनवर कहते हैं कि शाद हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे।

शाद की शायरी में विविधता नज़र आती है। जहां एक तरफ़ वह कहते हैं कि-
ख़ामोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है/तड़प ऐ दिल तड़पने से ज़रा तस्कीन होती है,
तो दूसरी तरफ़ वो ये भी कहते हैं कि-
ढूंढोगे अगर मुल्कों-मुल्कों, मिलने के नहीं नायाब हैं हम
ताबीर है जिसकी हसरतो-ग़म, ऐ हम-नफ़सो वो ख़्वाब हैं हम

शाद की मृत्यु 7 जनवरी, 1927 को हुई थी। उनकी पुण्यतिथि पर शाद अज़ीमाबादी स्टडी सर्किल कई साल से शाद अज़ीमाबादी स्मृति समारोह का आयोजन करता आ रहा है। कार्यक्रम शाद के हाजीगंज स्थित मक़बरे के पास होता है। नवशक्ति निकेतन के संयोजक रज़ी अहमद बताते हैं कि इस अवसर पर उर्दू को समृद्ध करने वाले साहित्यकारों को सम्मानित भी किया जाता है।

कार्यक्रम में पहुंचे स्थानीय विधायक और भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकिशोर यादव कहते हैं कि शाद ने
पटना साहिब का नाम रौशन किया।

लेकिन चित्रगुप्त सामाजिक संस्थान, बिहार के प्रधान सचिव कमलनयन श्रीवास्तव कहते हैं कि शाद को वो मुक़ाम नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे।

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