छपी-अनछपी: बीजेपी कब बताएगी बिहार में सीएम का चेहरा? संघी संपादक!

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। मंत्री अमित शाह का दो दिवसीय सीमांचल दौरा शनिवार को संपन्न हुआ। श्री शाह ने शुक्रवार को पूर्णिया में जनसभा को संबोधित किया और शनिवार को उन्होंने किशनगंज में भारतीय सीमा सुरक्षा बलों के पदाधिकारियों से मुलाकात की। इसके अलावा किशनगंज में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से भी 2024-25 के चुनाव की रणनीति पर चर्चा की। अखबारों के अनुसार उन्होंने 2025 में बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के चेहरे के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणामों तक इंतजार करने को कहा। आज के एक अखबार में आरएसएस को वैधता और मान्यता दिलाने के तर्क भी हैं। शुरुआत बड़ी सुर्ख़ियो से करते हैं।
हिन्दुस्तान की सबसे अहम खबर की सुर्खी है: बिहार में महिला उद्यमियों को हर संभव सहायता। यह बात अकबरपुर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चमड़ा के इथेनॉल उद्यमियों से संवाद के दौरान कही है। जागरण में इसी खबर पर नीतीश कुमार का बयान है: लेदर पार्क बनेगा रोल मॉडल, बढ़ेंगे रोजगार के अवसर।

जागरण मैं सबसे बड़ी खबर की सुर्खी है: बिहार में सीएम का चेहरा घोषित कर ही भाजपा लड़ेगी 2025 का चुनाव। इस खबर में यह बताया गया है कि केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के दूसरे सबसे बड़े लीडर अमित शाह ने भाजपा के पदाधिकारियों से यह बात कही है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन के आधार पर सीएम के चेहरे का चुनाव होगा।
भास्कर की खबर में लिखा गया है: शाह बोले बिहार में सीएम का चेहरा घोषित कर ही चुनाव लड़ेगी भाजपा।
प्रभात खबर ने लिखा है: लोकसभा चुनाव के बाद ही बिहार में सीएम का चेहरा घोषित करेगी।
श्री शाह के दौरे के बारे में एक अन्य खबर हिन्दुस्तान के पहले पेज पर है जिसमें यह बताया गया है कि नेपाल व बांग्लादेश सीमा पर ड्रोन से निगरानी की जाएगी।
समाज के निर्माण में वकीलों की भूमिका पर पटना में शनिवार को एक बड़ा सेमिनार आयोजित हुआ जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति यूयू ललित और केन्द्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजूजू भी शामिल हुए। प्रभात खबर में यही लीड है जिसकी सुर्खी है: कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका एक दूसरे का सम्मान करें: किरेन रिजिजू। इस खबर की हिन्दुस्तान की हेडिंग है: वकीलों में सामाजिक बदलाव लाने की जरूरत।

कश्मीर में आतंकवाद पर काबू पा लेने का दावा करने के बावजूद वहां हत्याओं का सिलसिला नहीं रुक रहा है। जागरण की खबर है: पुलवामा में आतंकियों ने बेतिया के दो श्रमिकों को गोली मारी।

हिन्दुस्तान और अन्य अखबारों में एनआईए का यह दावा छापा गया है: कि पीएम मोदी पर पटना में हमला करना चाहता था पीएफआई। यह दावा एनआईए पहले भी कर चुकी है।

अनछपी: आरएसएस को आम लोगों के सामने एक बेहतरीन संगठन पेश करने में अक्सर हिन्दी और संघी पत्रकारों की भूमिका भी अहम रही है। आज हिन्दुस्तान के संपादक शशि शेखर ने अपने साप्ताहिक ‘आजकल’ कॉलम का शीर्षक दिया है: भागवत-इलियासी भेंट का अर्थ। लेखक ने इसमें लिखा है: संघ को अक्सर इस तरह पेश करने की कोशिश की जाती रही है, जैसे वह कट्टरपंथी संगठन हो। संघ को ऐसी वैधता कौन प्रदान करता है? भारत में किसी को साप्रदायिक और कट्टरपंथी बताने के लिए ‘संघी’ और ‘पक्का संघी’ जैसे शब्द बोले जाते रहे हैं। उसी संघ के मुखिया मोहन भागवत हैं जो यह कहते हुए बिल्कुल नहीं झिझकते कि भारत का हर नागरिक हिन्दू है। इस आलेख में ईरान और कर्नाटक का हिजाब विवाद है- ईरान के आंदोलन की प्रशंसा और कर्नाटक की मुस्लिम बच्चियों पर परोक्ष प्रहार है। तालिबान का ज़िक्र है। इंग्लैंड के लेस्टर शहर का विवाद है। मगर भारत में हिन्दू युवाओं की बढ़ती कट्टरता नहीं है, सरकारी अत्याचार नहीं, सीएए नहीं, बेगुनाह मुसलमानों की कैद व बन्द नहीं, मॉब लिंचिंग नहीं है, ज्ञानवापी मस्जिद नहीं है, अस्पताल में नमाज़ पढ़ने वाली महिला पर एफआईआर का विवाद नहीं है और ऐसी कोई बात नहीं जो भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक मुसलमानों के साथ हो रहे घोर अन्याय की चर्चा करे। इस आलेख में भागवत की चंद मुस्लिम बुद्धिजीवियों से भागवत की मुलाक़ात का भी ज़िक्र है मगर उस मुलाकात में मुसलमानों के दुख-दर्द पर क्या बात हुई, यह नहीं है। और हां, उस आरएसएस के इमाम इलियासी का ज़िक्र है जिसका लम्बा से नाम लिखा गया है: डॉक्टर उमेर अहमद इलियासी। परिचय: नई दिल्ली में कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित अखिल भारतीय इमाम परिषद के अध्यक्ष। इलियासी ने चाटुकारिता में भागवत को राष्ट्रपिता और राष्ट्र ऋषि भी कहा मगर इस पर श्री शेखर ने कोई आपत्ति नहीं की है।

एक संघी संपादक आरएसएस की इससे बेहतर क्या सेवा कर सकता है!

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