छ्पी-अनछपी: वक़्फ़ बिल को कैबिनेट से मंजूरी, नए मंत्रियों को विभाग मिले
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। विवादों से घिरे वक़्फ़ बिल को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है और इसे अब दोबारा संसद में पेश किया जाएगा। बिहार में भाजपा के जिन सात विधायकों को मंत्री बनाया गया है उन्हें विभाग मिल गया है और कुछ पुराने मंत्रियों के विभाग बदले गए हैं। हिंदी भाषा को लेकर केंद्र और तमिलनाडु में टकराव बढ़ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि हाथों से सीवर की सफाई बंद होने के दावे के बावजूद सफाई कर्मियों की मौत कैसे हो रही है।
और, जानिएगा कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने क्यों कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री अजनबियों को नहीं दिखा सकते।
भास्कर के अनुसार केंद्रीय कैबिनेट ने 14 बदलावों के साथ वक्त बिल को मंजूरी दे दी है। सूत्रों की मानें तो 19 फरवरी को हुई कैबिनेट बैठक में इस पर मुहर लगाई गई। बिल में वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन, संचालन और निगरानी के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुधार प्रस्तावित किए गए हैं। संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण 10 मार्च से 4 अप्रैल में सरकार से पेश कर सकती है। इससे पहले 13 फरवरी को वक़्फ़ बिल पर जेपीसी की रिपोर्ट संसद में पेश हुई थी। विपक्ष ने रिपोर्ट को फर्जी बताया था। इसके बाद संसद में हंगामा भी हुआ था। दरअसल 27 जनवरी को जेपीसी की बैठक में 44 संशोधनों पर चर्चा की गई थी। इसमें एनडीए के सांसदों के 14 संशोधनों को मंजूर किया गया था। वहीं विपक्ष के संशोधनों को खारिज कर दिया गया था।
प्रमुख विवादास्पद बदलाव
वक़्फ़ संशोधन बिल में जिन प्रस्तावों को मुहर लगाई गई है उनमें वक़्फ़ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों को जगह देने की बात बहुत ही विवादास्पद है। इसके अलावा वक़्फ़ संपत्तियों की देखरेख में डीएम की भागीदारी बढ़ाने, बोर्ड की शक्तियां सीमित करने, ट्रिब्यूनल की शक्तियां खत्म करने और बोर्ड संरचना में बदलाव पर भी भारी विवाद है।
नए मंत्रियों को विभाग मिले
प्रभात खबर की सबसे बड़ी खबर है कि बिहार कैबिनेट विस्तार के अगले दिन गुरुवार को सभी नए मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा कर दिया गया। भाजपा कोटे के कुछ मंत्रियों के विभागों में कटौती कर नए मंत्रियों को दिए गए हैं। वहीं भाजपा के कुछ वरिष्ठ मंत्रियों के विभागों में भी फेरबदल किया गया है। कैबिनेट विभाग ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी है। इसके तहत भाजपा कोटे से मंत्री रहे नितिन नवीन अब पथ निर्माण मंत्री होंगे। नए मंत्रियों में संजय सरावगी को राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री बनाया गया है। कुल मिलाकर दस विभागों को नये मंत्री मिले हैं।
स्टालिन का आरोप- 25 भाषाएं हिंदी-संस्कृत के कारण नष्ट
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र पर हिंदी थोपने का आरोप लगाते हुए गुरुवार को फिर आवाज उठाई। उन्होंने कहा राज्य पर हिंदी थोपने की कोशिश कामयाब नहीं होने देंगे। तमिल और उसकी संस्कृति की रक्षा करेंगे। स्टालिन ने पार्टी कार्यकर्ताओं को लिखे पत्र में कहा, हिंदी मुखौटा है, संस्कृत छिपा हुआ चेहरा। स्टालिन ने पत्र में दावा किया कि बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश में बोली जाने वाली मैथिली, ब्रजभाषा, बुंदेलखंडी और अवधी जैसी 25 से ज्यादा उत्तर भारतीय भाषाएं हिंदी व संस्कृत के प्रभुत्व के कारण नष्ट हो गईं। तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध कर रहा है क्योंकि उसके अनुसार केंद्र इस शिक्षा नीति के माध्यम से हिंदी और संस्कृत थोपने की कोशिश कर रहा है।
हाथों से सीवर सफाई बंद तो मौत कैसे: सुप्रीम कोर्ट
हिन्दुस्तान के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने मैनुअल स्कैवेंजिंग (हाथों से मैला ढोने), साफ करने और मैनुअल सीवर सफाई से होने वाली मौत पर दिल्ली, कोलकाता और हैदराबाद के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को आड़े हाथ लिया। अदालत ने आला अफसरों को यह भी बताने को कहा कि जब दावा किया गया था कि मैनुअल स्कैवेंजिंग और मैनुअल सीवर सफाई बंद हो गई है तो फिर इससे लोगों की मौत कैसे हो रही है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और अरविंद कुमार की पीठ ने दिल्ली जलबोर्ड, कोलकाता नगर निगम और हैदराबाद महानगर जल एवं सीवरेज बोर्ड के अधिकारियों द्वारा दाखिल हलफनामों पर असंतोष जताते हुए यह टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने सक्षम अधिकारियों से यह भी बताने को कहा कि क्यों न उन अधिकारियों या ठेकेदारों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने का आदेश दिया जाए, जिन्होंने हाथ से मैला उठाने वालों को काम पर रखा या जिनकी निगरानी और आदेश पर मैनुअल कार्य करने के कारण मौतें हुईं।
जीएसटी मामलों में अग्रिम जमानत का हक: कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जीएसटी और सीमा शुल्क अधिनियम के तहत अधिकारियों को दी गई गिरफ्तारी की शक्ति पर अहम फैसला दिया। कोर्ट ने कहा कि इन कानूनों के उल्लंघन के मामले में आरोपी को अग्रिम जमानत का हक है। वह राहत पाने के लिए अदालत का रुख कर सकता है, भले ही उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज न हुई हो। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने यह फैसला दिया।
प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री अजनबियों को नहीं दिखा सकते: डीयू
जागरण के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री से जुड़ी याचिका पर दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने कहा कि उसे अदालत को डिग्री दिखाने में कोई आपत्ति नहीं लेकिन इसे अजनबियों की जांच के दायरे में नहीं लाएगा। गुरुवार को डीयू की तरफ से दिल्ली हाई कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एक छात्र की डिग्री की मांग की जा रही है जो देश के प्रधानमंत्री हैं। “हमारे पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है और बीए की मूल डिग्री को अदालत में दिखने में कोई आपत्ति नहीं लेकिन डीयू के रिकॉर्ड को उन लोगों के सामने उजागर नहीं करेंगे जो प्रचार या किसी अप्रत्यक्ष राजनीतिक उद्देश्य के लिए यहां आए हैं। न्यायमूर्ति सचिन दत्त की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल का पक्ष सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया।
कुछ और सुर्खियां:
- आरा-बक्सर हाईवे पर भोजपुर के शाहपुर थाना क्षेत्र के बनाही अंडरपास के पास बेकाबू ट्रक ने टेंपो में धक्का मारा, चार लोगों की मौत
- नवादा के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के भगवानपुर के गांव वालों ने चोरी के आरोप में दो युवकों को पीटा, एक की मौत
- बिहार विधान मंडल के सत्र की आज से शुरुआत, 3 मार्च को बजट पेश होगा
- आज बिहार के कई जिलों में चलेगी तेज हवा, बारिश के भी आसार
- पटना हाई कोर्ट का फैसला- पंचायत चुनाव में बैंक अधिकारियों और कर्मियों की सेवा लेना सही
- वरिष्ठ आईएएस अधिकारी तुहिन कांत पांडे को सेबी का नया अध्यक्ष चुना गया
अनछपी: अखबारों के पहले पन्नों की खबरों को देखकर लगता है कि बिहार में सब कुछ सुहाना चल रहा है लेकिन जब अंदर के पन्नों पर नजर डालिए तो मालूम होगा कि लोग कैसी-कैसी परेशानी का सामना कर रहे हैं। ताजा खबर यह है कि बिहार के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मचारियों को 4 महीने से सैलरी नहीं मिली है। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में नए बहाल शिक्षकों को 9 महीनों से वेतन नहीं मिला है। इसी तरह यह खबर तो छपी नहीं है लेकिन चर्चा है कि सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों को पीएमसीएच में नवंबर महीने से सैलरी नहीं मिली है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने भाषणों में अक्सर यह सवाल उठाते हैं कि 2005 से पहले कुछ नहीं था और लोगों को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। मगर वह यह नहीं मानते कि आखिर वह भी 19-20 सालों से मुख्यमंत्री हैं तो इस दौरान की जो कमियां और गड़बड़ियां हैं उसके लिए कौन जिम्मेदार है? विश्वविद्यालयों में वेतन और पेंशन में होने वाली देरी की समस्या बहुत पुरानी है लेकिन यह कहकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। इसी तरह अगर अस्पताल के डॉक्टर को भी सही समय पर सैलरी नहीं मिल रही है तो इसकी जिम्मेदारी किस पर जाएगी? दरअसल हमारे समाज में ऐसी बातों को आम मानकर सह लिया जाता है और उसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई जाती है। और अगर कोई आवाज उठाता भी है तो उसे मीडिया में ऐसी जगह पर डाल दिया जाता है जहां सब की नजर ना पड़े। विश्वविद्यालय के शिक्षक हमारे समाज के सबसे प्रबुद्ध वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन उनकी ओर से भी आजकल प्रतिरोध की आवाज नहीं सुनाई देती। बिहार विधान मंडल का सत्र आज से शुरू हो रहा है और विपक्ष चाहे तो इस मुद्दे पर सरकार को घेर सकता है।
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