छपी-अनछपी: सुप्रीम कोर्ट बोला- हम सामंती युग में नहीं, राहुल का वादा- जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करेंगे

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के एक फैसले के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम सामंती युग में नहीं हैं। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा है कि इंडिया गठबंधन जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस दिलाएगा। लॉ कमीशन यूनिफॉर्म सिविल कोड के फॉर्मेट के बारे में फिर से विचार करेगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी समेत 15 लोगों पर गड़बड़ी के आरोप में केस दर्ज किया गया है।

यह हैं आज के अखबारों की अहम खबरें।

सुप्रीम कोर्ट ने आईएएस ऑफिसर राहुल को उत्तराखंड के राजाजी टाइगर रिजर्व का निदेशक नियुक्त करने पर नाराजगी जताई है। जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीके मिश्र और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा जिस अफसर को पेड़ों की अवैध कटाई के केस में जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से हटाया गया उसे रिजर्व का निदेशक क्यों बनाया दिया? कोर्ट ने कहा, “हम सामंती युग में नहीं हैं कि जैसा राजा जी बोलें वैसा ही होगा। दरअसल वन संबंधी मामलों की निगरानी के लिए शीर्ष कोर्ट द्वारा गठित समिति ने बताया उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने राहुल को टाइगर रिजर्व का निदेशक बनाया है जबकि विभागीय मंत्री व मुख्य सचिव इसके पक्ष में नहीं थे। जिम कॉर्बेट में गड़बड़ी का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और सीबीआई जांच जारी है।

जम्मू कश्मीर को वापस दिलाएंगे राज्य का दर्जा: राहुल

हिन्दुस्तान के अनुसार कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर के लोगों को भरोसा दिलाया कि उनकी पार्टी ‘इंडिया’ के सहयोगी दलों की मदद से केंद्र शासित प्रदेश का राज्य का दर्जा बहाल करेगी। लोकसभा में विपक्ष के नेता ने बनिहाल विधानसभा क्षेत्र में अपनी पार्टी के लिए चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए यह बात कही। राहुल गांधी ने कहा, हम विधानसभा चुनाव से पहले जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करना चाहते थे, लेकिन भाजपा इसके लिए तैयार नहीं थी। वह चाहती थी कि पहले चुनाव हो जाएं। राहुल ने कहा, हम राज्य के दर्जें की बहाली सुनिश्चित करेंगे, भाजपा चाहे या न चाहे।

यूनिफॉर्म सिविल कोड पर लॉ कमीशन फिर से विचार करेगा

भास्कर के अनुसार सरकार द्वारा 23वें विधि आयोग के गठन की घोषणा के साथ ही यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) के कानूनी प्रारूप पर फिर से विचार करने का रास्ता साफ हो गया है। विधि आयोग सभी धर्मों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने की दिशा में काम करेगा। इससे पहले जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले 21वें विधि आयोग ने राय जाहिर की थी कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट की ना तो जरूरत है और ना यह वांछनीय है। इसके बाद जस्टिस ऋतुराज की अध्यक्षता वाले 22वें विधि आयोग ने प्रारूप तैयार कर यूनिफॉर्म सिविल कोड पर सार्वजनिक राय मांगी। इस महामंथन में करीब एक करोड़ सुझाव आयोग को मिले थे।

मिथिला यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी पर केस

भास्कर की सबसे बड़ी खबर के अनुसार ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी (एलएनएमयू), दरभंगा में करोड़ों की गड़बड़ी के मामले में स्पेशल विजिलेंस यूनिट (एसवीयू) ने बुधवार को केस दर्ज कर लिया। एसयूवी ने एलएनएमयू के पूर्व कुलपति सुरेंद्र प्रताप सिंह, तत्कालीन रजिस्ट्रार मुश्ताक अहमद और तत्कालीन फाइनेंस एडवाइजर व फाइनेंस ऑफिसर कैलाश राम सहित 15 नामजद व अन्य अज्ञात के विरुद्ध केस दर्ज किया है। गड़बड़ी 2020 से 2023 के बीच की बताई जा रही है। एसवीयू को शिकायत मिली थी कि एलएनएमयू में प्रश्न पत्रों की छपाई से जुड़े टेंडर और वेंडर को किए गए भुगतान में भारी गड़बड़ी व अनियमितता बरती गई है।

भारत और ब्रुनेई संबंध बिस्तर पर सहमत

हिन्दुस्तान के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को ब्रुनेई की यात्रा को सार्थक बताया। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के संबंधों में एक नए युग की शुरुआत हुई है। चीन का नाम लिए बिना मोदी ने कहा, भारत विकास की नीति का समर्थन करता है, विस्तारवाद का नहीं। यहां से मोदी सिंगापुर रवाना हो गए। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रुनेई के सुल्तान हाजी हसनल बोल्किया के बीच द्विपक्षीय वार्ता में रक्षा, व्यापार और निवेश, खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य समेत कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। डेलीगेशन लेवल की बैठक के बाद भारत और ब्रुनेई के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर हुआ।

3500 शिक्षकों के सर्टिफिकेट फर्जी

भास्कर के अनुसार बिहार में 3500 से अधिक शिक्षक ऐसे हैं जो फर्जी हैं। यह सभी नियोजित शिक्षक सक्षमता परीक्षा पास हैं। सर्टिफिकेट जांच के दौरान उनकी नियुक्ति में हुई गड़बड़ी पकड़ में आई है। तकरीबन 1200 तो ऐसे शिक्षक हैं जिनके अंगूठे का निशान उनके आधार कार्ड से मैच ही नहीं हो रहा है। कई फर्जी सीटीईटी, बीटीईटी, दिव्यांग व जाति सर्टिफिकेट के सहारे पिछले 10 वर्षों से नौकरी कर रहे थे। जब सक्षमता परीक्षा का फॉर्म भरा जा रहा था उस दौरान भी 1200 से अधिक फर्जी शिक्षक पकड़ में आए थे। अब शिक्षा विभाग फर्जी शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी कर रहा है। इन शिक्षकों से बीते 10 साल के वेतन की रिकवरी होगी।

कुछ और सुर्खियां

  • बिहार में अक्टूबर-नवंबर तक 237 घाटों से बालू उठाव, 15 अक्टूबर से ऑनलाइन खरीद बिक्री होगी
  • रबीउल अव्वल का चांद दिखा, ईद मिलादुन्नबी 16 सितंबर को
  • बिहार में बिहटा (पटना), मानपुर (गया) और हुकाहां (बक्सर) मैं बनेंगे हाई स्पीड रेल स्टेशन
  • भारत में 90 हज़ार करोड़ निवेश करेगी सिंगापुर की कंपनी
  • बक्सर और समस्तीपुर में ओएनजीसी करेगा गैस की खोज
  • हिमाचल प्रदेश में दल बदलू विधायकों को पेंशन नहीं मिलेगी, विधेयक पास

अनछपी: भारतीय जनता पार्टी कानून के राज्य के बारे में बात करती है लेकिन जब खुद इस पर अमल करने का मौका आता है तो उसके उल्लंघन से भी नहीं चूकती। ऐसा ही एक उदाहरण उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का है जिन्होंने अपने मंत्री और मुख्य सचिव की असहमति के बावजूद एक ऐसे अधिकारी को टाइगर रिजर्व का डायरेक्टर बनाया जिसके खिलाफ जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में पेड़ों की अवैध कटाई का केस चल रहा है। इस अधिकारी की नई नियुक्ति के बारे में जैसी टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने की है, किसी हयादार व्यवस्था में मुख्यमंत्री के इस्तीफा की उम्मीद की जा सकती थी लेकिन जाहिर है हम उस दुनिया में नहीं जी रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर किसी अधिकारी में ऐसी क्या बात है कि उसका मामला सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में रहते हुए भी उसे दोबारा महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाती है और इसके लिए मुख्यमंत्री सारी असहमतियों को दरकिनार कर देते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जब तक उसे अधिकारी को जांच से मुक्त नहीं किया जाता तब तक उसे अच्छा अधिकारी नहीं माना जा सकता है। सोचने की बात यह है कि जब कोई मामला सुप्रीम कोर्ट के निगरानी में है तब तो मुख्यमंत्री ऐसा फैसला ले रहे हैं, बाकी मामलों में वह क्या कर रहे होंगे इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है। पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो अपनी सांप्रदायिक टिप्पणियों और कार्रवाइयों के लिए जाने जाते हैं और उनकी छवि ऐसी बनाई जाती है कि वह बहुत साफ सुथरा नेता हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से उनकी छवि खंडित होती है। इक्कीसवें विधि आयोग ने साफ तौर पर देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने को गैर जरूरी बताया था लेकिन इसके बावजूद पुष्कर सिंह धामी ने वाहवाही लूटने के लिए इसे लागू कराया। कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने सांप्रदायिक एजेंडा में छिपकर वह सभी अनियमिताएं की जा रही हैं जो जिसकी चर्चा आमतौर पर नहीं होती। मीडिया में भी एक दो संस्थान को छोड़ दिया जाए तो सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को नजरअंदाज कर दिया गया है। ऐसे में जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट की हर ऐसी टिप्पणी पर ध्यान दिया जाए और उसे आम लोगों तक पहुंचाया जाए।

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