छपी-अनछपी: रेल हादसे में कुल 288 मौतें, क्या ज्योतिष के आधार पर मिलती है जमानत?
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। ओडिशा के बालासोर में हुई ट्रेन दुर्घटना में कुल 288 लोगों की मौत हुई है। इसकी खबर लगातार दूसरे दिन लीड बनी है। इधर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि क्या किसी को ज्योतिष के आधार पर ज़मानत दी जा सकती है? यह खबर भी पढ़ने लायक़ है।
भास्कर की सबसे बड़ी खबर है: मरने वाले 228, जिम्मेदार 0। अखबार लिखता है कि ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार शाम को हुए ट्रिपल ट्रेन हादसे में मरने वालों का आंकड़ा 288 तक पहुंच चुका है और 1116 लोग घायल हैं। मगर 30 घंटे बाद भी रेलवे यह नहीं बता पा रहा कि हादसे का सही कारण क्या था? मौके पर पहुंचे रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश देते हुए कहा कि इस मामले की तह तक जाएंगे। हालांकि शुरुआती जांच रिपोर्ट के मुताबिक कोरोमंडल एक्सप्रेस को संभवतः गलत सिग्नल दिया गया था जो मानवीय गलती से हुआ। इस ट्रैक पर ट्रेनों के बीच टक्कर रोकने वाला कवच सिस्टम भी नहीं था।
दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा: मोदी
बालासोर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि ओडिशा रेल दुर्घटना के लिए दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। मोदी घटनास्थल पर पहुंचे और पीड़ितों से अस्पताल में मुलाकात की। वहीं, दुर्घटनास्थल पर रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री ने उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता की। प्रधानमंत्री ने अस्पताल का दौरा करने के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा कि हम घायलों को सर्वश्रेष्ठ उपचार मुहैया कराएंगे।
कवच सिस्टम की चर्चा
भास्कर की सुर्खी है: देश में 13,215 रेल इंजन, इनमें से सिर्फ 65 में है कवच सिस्टम, 19 ज़ोन में 18 में एक भी नहीं। भारतीय रेलवे कवच सुविधा यानी ऑटोमेटिक ब्रेकिंग सिस्टम देने में नाकाम रहा है। कवच सिस्टम होता तो बालासोर हादसे को रोका जा सकता था। साल भर पहले 4 मई को सिकंदराबाद जोन में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव रेल हादसा रोकने के लिए इंजनों को सुरक्षा का कवच बनाने की घोषणा की थी। तब ट्रायल के तौर पर रेल मंत्री खुद सिकंदराबाद जोन के सनत नगर- शंकर पल्ली रेल मार्ग पर गुल्लागुड़ा रेलवे स्टेशन में इंजन पर लोको पायलट के साथ सवार हुए थे। उसी दौरान सामने से चिठिगुड़ा रेलवे स्टेशन की ओर से आ रही ट्रेन कवच की वजह से 400 मीटर पहले ही रुक गई थी। कवच डिवाइस इंजन और पटरियों में भी लगा होता है। इसके प्रभाव वाले क्षेत्र में जैसे ही दो ट्रेन का इंजन आते हैं सिस्टम ऑन होकर इंजन में ब्रेक लगाना शुरू कर देता है और ट्रेन रुक जाती है।
ज्योतिष और ज़मानत
जागरण ने एक छोटी सी खबर दी है: सुप्रीम कोर्ट का सवाल, क्या ज्योतिष के आधार पर मिलेगी जमानत। अखबार लिखता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऐसे चौंकाने वाले फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है जिसमें दुष्कर्म के आरोपी को जमानत देने या न देने के लिए ज्योतिष की रिपोर्ट मंगाई गई है। लड़की मांगलिक है कि नहीं है इसकी रिपोर्ट देखकर तय होगा कि शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने वाले आरोपी को जमानत दी जाए कि नहीं। शायद ऐसा मामला पहले सुनने में नहीं आया होगा लेकिन ऐसा केस हुआ है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ पीठ ने शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप लगाने के मामले में आरोपित की जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग को आदेश दिया था कि वह लड़की की कुंडली देखकर रिपोर्ट दें और बताएं कि लड़की मांगलिक है कि नहीं। यह आर्डर एकल जज बृजराज सिंह ने दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को इस मामले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए विश्वास सुनवाई की और हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट में शनिवार को छुट्टी थी लेकिन यह मामला इतना महत्वपूर्ण था कि उसकी सुनवाई के लिए विशेष पीठ बनी। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस पंकज मित्तल के पीठ ने सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के आदेश पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए अदालत में मौजूद सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता से पूछा आपने इस मामले को देखा इस पर मेहता ने कहा कि यह परेशान करने वाला है।
मनगढ़ंत इतिहास
भास्कर की एक सुर्खी है: आज इतिहास लिखा नहीं मनमाने ढंग से गड़ा जा रहा है: प्रोफेसर इम्तियाज। जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में एआइपीएफ की ओर से ‘सांप्रदायिक दृष्टिकोण और इतिहास लेखन’ विषय पर परिचर्चा हुई। इसमें इतिहासकार प्रोफेसर ओपी जायसवाल, प्रोफेसर इम्तियाज अहमद, प्रोफेसर भारती एस कुमार आदि शामिल हुए। यह परिचर्चा प्रख्यात इतिहासकार रंजीत गुहा की स्मृति में आयोजित की गई थी जिनका निधन 28 अप्रैल को हो गया था। प्रोफेसर ओपी जायसवाल ने कहा कि आज जो ताकतें सत्ता में बैठी हैं वह अपनी राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से इतिहास के पाठ्यक्रम को बदल रही हैं। न केवल मुगल काल का इतिहास हटाया जा रहा है बल्कि गांधी व डॉक्टर अंबेडकर के विचारों को भी हटाया जा रहा है। अंधविश्वास से भरी चीजों को इतिहास नहीं कहा जा सकता है। प्रोफेसर इम्तियाज अहमद ने कहा कि आज इतिहास लिखा नहीं, मनमाने ढंग से गढ़ा जा रहा है। सांप्रदायिक नजरिया से इतिहास लेखन औपनिवेशिक शासन की देन है। जो लोग आज सत्ता में है आजादी के आंदोलन में उनका कोई संघर्ष ही नहीं था इसलिए इतिहास को तोड़ मरोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि मध्य काल का इतिहास मेलजोल व सांस्कृतिक समन्वय का इतिहास रहा है, ऐतिहासिक तथ्यों को हटाकर आज मिथक गढ़े जा रहे हैं। इतिहास लेखन का उद्देश्य नफरत फैलाना नहीं हो सकता, बल्कि वैज्ञानिकता स्थापित करना होता है।
कुछ और सुर्खियां
- मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी बने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष
- बालासोर ट्रेन हादसे में बिहार के 9 लोगों की मौत, दो दर्जन से ज्यादा घायल
- मणिपुर में 24 घंटे में दो बार हुई झड़प: गांव में हमले, 7 गायब लोगों के शव मिले
- फतुहा में बाइक से टक्कर के बाद रांची से पटना आ रही बस में लगी भीषण आग, बाइक सवार की हुई मौत
- पूर्णिया के पास ड्राइवर को झपकी आई तो खड़े ट्रक में जा घुसी कार; 5 की मौके पर ही मौत, 9 घायल
- कम बारिश की आशंका; नीतीश बोले- सतर्क रहें, तैयारी दुरुस्त रखें
- 9 साल पहले के पूर्णिया के दोहरे हत्याकांड में आया फैसला, 35 को उम्र कैद
- जहानाबाद के परसा बीघा गांव में क्रिकेट के झगड़े में दो भाइयों को गोली मारी, एक की मौत
- डॉक्टर शकील अहमद कांग्रेस विधायक दल के नेता बने
- देश में इस वक्त दो विचारधाराओं के बीच लड़ाई चल रही: राहुल
अनछपी: हाई कोर्ट से ऐसे अजीबोगरीब फैसले आ रहे हैं कि आम आदमी के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट भी हैरान हो जाता है। जमानत देने के मामले में केस के गुण दोष को देखने के अलावा ज्योतिषी जीवन को देखने की बात करने वाले जज बृजराज सिंह ने क्या सोचकर ऐसा कहा होगा इसे समझना चाहिए। भारतीय संविधान जहां वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने की बात करता है वहीं भारतीय समाज में ज्योतिष जैसे विचार की पकड़ अब भी काफी मजबूत है। इस तरह की अवैज्ञानिक बात करने वाले यह पहले जज नहीं है। इसी से यह सवाल उठता है कि आखिर जिस कॉलेजियम सिस्टम से जजों की बहाली होती है उस पर चर्चा में होने वाले जज की वैज्ञानिक सोच की परख की जाती है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने उन जज महोदय के आदेश पर अंतरिम रोक तो लगा दी है लेकिन सोचने की बात यह है कि उसी सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम सिस्टम से उनकी बहाली भी बतौर जज हुई थी। जजों की बहाली चाहे जिस सिस्टम से हो उनके बारे में यह जानना जरूरी है कि क्या वह अपने फैसलों में वैज्ञानिक सोच को प्रमुखता देंगे या अपनी आस्था को? अफसोस की बात यह है कि हाईकोर्ट ही नहीं सुप्रीम कोर्ट के भी कई फैसले आस्था के बुनियाद पर आए हैं और साक्ष्य व वैज्ञानिक सोच की बात को किनारे कर दिया गया है। यह तो अच्छा है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वत संज्ञान ले लिया वरना लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग की रिपोर्ट के आधार पर जमानत देने या ना देने की एक मिसाल कायम हो जाती। ज्योतिष पर आस्था रखना एक व्यक्तिगत मामला हो सकता है लेकिन उसे कानून में लागू करना बेहद गैर जिम्मेदाराना और अस्वीकार्य है। सुप्रीम कोर्ट को ऐसे जजों के भविष्य के बारे में निश्चित ही कुछ कड़े कदम उठाने चाहिए।
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