छ्पी-अनछपी: विशेष दर्जे के लिए मुहिम चलाएंगे नीतीश, इंसाफ के रास्ते में खर्च की बाधा पर बोलीं राष्ट्रपति
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। जनता दल यूनाइटेड के भीम संसद कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि वह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए मुहिम चलाएंगे। इस खबर को सभी जगह प्रमुखता मिली है। संविधान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंसाफ के रास्ते में खर्च की बाधा पर सवाल खड़े किए हैं। इस खबर को भी अच्छी जगह मिली है।
हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी सुर्खी है: विशेष राज्य के लिए सबसे बड़ा अभियान चलेगा: सीएम। जगरण ने लिखा है: विशेष राज्य पर मांगा जनता का साथ। प्रभात खबर की सुर्खी है: बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर चलाएंगे विशेष अभियान: मुख्यमंत्री। अख़बार लिखता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को पटना के वेटरिनरी कॉलेज मैदान में आयोजित भीम संसद में कहा कि हम बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर अभियान चलाएंगे। इसके लिए उन्होंने राज्य के दलित समाज के लोगों से समर्थन की अपील की। साथ ही भीम संसद में पहुंचे लोगों से हाथ उठाकर समर्थन मांगा। उनके आह्वान पर भीड़ ने अपना हाथ उठाकर समर्थन किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार मदद करने का दावा करती है लेकिन शत प्रतिशत मदद कहां मिलती है। योजनाओं में 60 फीसदी केंद्र और 40 फ़ीसदी पैसा राज्य सरकार देती है। यदि विशेष राज्य का दर्जा मिल जाएगा तो योजनाओं में 40 फ़ीसदी हिस्सेदारी राज्य सरकार को नहीं देनी पड़ेगी।
नीतीश के पांच नेता
मुख्यमंत्री ने भीम संसद में कहा कि हमलोग पांच नेताओं के विचारों को लेकर काम करते हैं और उसी पर आगे बढ़ते हैं। इनमें महात्मा गांधी, राममनोहर लोहिया, भीमराव अंबेडकर, जयप्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुर शामिल हैं। पार्टी में भी हमने सबको कहा कि इनके विचारों को धरातल पर उतारने के लिए काम करते रहना है।
जदयू का भीम कार्ड
भास्कर की सबसे बड़ी खबर है: जदयू का भी कार्ड दलित महादलित और पिछड़ों को साधने की पूरी कवायद। जदयू ने रविवार को भीम संसद के जरिए खुद को दलित, महादलित-पिछड़ों का इकलौता रहनुमा साबित करने की खासी कवायद की और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इसका चैंपियन बताया। केंद्र की भाजपा सरकार को चेताया गया कि वह संविधान और आरक्षण से खिलवाड़ तत्काल बंद करें। बिहार में जातीय आर्थिक सर्वे और उसके बूते आरक्षण का दायरा बढ़ाने के ठीक बाद का यह आयोजन उसके दलित पिछड़ों को साधने की खासी कोशिश मानी जा रही है। इस दौरान नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनने के नारे खूब लगे। भीड़ में उत्साहित नीतीश ने इशारों में केंद्र की भाजपा सरकार को ललकारा। कहा- देख लीजिए कौन किसके साथ है?
इंसाफ में बाधा खर्च
प्रभात खबर की खबर है: खर्च और भाषा न्याय चाहने वाले लोगों के लिए बड़ी बाधा: राष्ट्रपति। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रविवार को न्यायपालिका में प्रतिभाशाली युवाओं का चयन करने और उनकी प्रतिभा को निखारने के लिए एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के सृजन का सुझाव दिया। संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने यह सुझाव दिया। राष्ट्रपति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि खर्च व भाषा न्याय चाहने वाले नागरिकों के लिए बड़ी बाधाएं हैं। उन्होंने कहा कि हमें खुद से पूछना चाहिए कि क्या देश के हर एक नागरिक के लिए न्याय पाना आसान है। आत्मनिरीक्षण करने पर हम पाएंगे कि इसमें कई बाधाएं हैं। खर्च सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। ऐसे में अदालतों द्वारा मुफ्त कानूनी सहायता का विस्तार करना सराहनीय कदम है।
शराबबंदी पर फिर सर्वे
बिहार में जातीय गणना की तर्ज पर शराबबंदी को लेकर भी घर-घर सर्वेक्षण होगा। राज्य सरकार यह सर्वे कराएगी। सरकार यह जानेगी कि राज्य में कितने लोग शराबबंदी के पक्ष में हैं और कितने नहीं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को घर-घर सर्वे कराने का एलान किया।
विश्व हिंदू कांग्रेस
जागरण की खबर है: हिंदुओं में संबंधों को मजबूत करने के संकल्प के साथ विश्व हिंदू कांग्रेस का हुआ समापन। दुनिया के हर हिंदू को एक दूसरे से जोड़ने और हिंदू धर्म के जीवन मूल्य के माध्यम से विश्व कल्याण के लिए ताकत हासिल करने के संकल्प के साथ तीसरी विश्व हिंदू कांग्रेस रविवार को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में संपन्न हुई। इस दौरान आयोजकों ने घोषणा की कि अगली विश्व हिंदू कांग्रेस 2026 में मुंबई में आयोजित की जाएगी। उससे पहले अगले साल सितंबर में मुंबई में विश्व हिंदू आर्थिक मंच का आयोजन किया जाएगा।
हमास ने रिहा किए बंधक
इसराइल के साथ हुए युद्ध विराम समझौते के तहत हमास ने 13 इसराइली और चार विदेशी बंधकों को रिहा किया। इजरायली सेना ने यह जानकारी दी। हमास द्वारा बंधक बनाए गए लोगों और इसराइल में फलस्तीनी कैदियों की अदला-बदली के दूसरे दौर के तहत इन बंधकों को रिहा किया गया है।
कुछ और सुर्खियां
● पंजाब से पटना लाई गई एक करोड़ की शराब ज़ब्त
● कमलनाथ का फर्जी वीडियो वायरल करने समेत डीप फेक के चार मामलों में एफआईआर
● विदेश में शादी समारोह का चलन रोकें ताकि देश का धन बाहर नहीं जाए: मोदी
● पाकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप में दो लोगों को यूपी एटीएस ने पकड़ा
● उत्तरकाशी सुरंग हादसा: पहाड़ खोद मजदूरों को बचाने में जुटी सेना
अनछ्पी: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंसाफ मिलने में दो बड़ी बाधाओं- खर्च और भाषा- का जिक्र कर उन लाखों लोगों की बात को आवाज दी है जो इन दो कारणों से इंसाफ पाने में नाकाम होते हैं। सुप्रीम कोर्ट के जिस कार्यक्रम में राष्ट्रपति ने यह बात कही इस कार्यक्रम में भारत के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने लोक अदालत के तौर पर भूमिका निभाई है और नागरिकों को अदालत का दरवाजा खटखटाना से नहीं डरना चाहिए। राष्ट्रपति ने आत्मनिरीक्षण की बात कही है तो प्रधान न्यायाधीश को भी यह काम करना चाहिए और सोचना चाहिए कि लोग अदालत जाने से क्यों डरते हैं। आम लोगों के बीच कोर्ट कचहरी जाने को लेकर पाया जाने वाला डर किसे नहीं मालूम है। राष्ट्रपति ने जिस खर्च की बात की है उसमें वकीलों की फीस भी शामिल होगी। निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक वकीलों की मोटी फीस हर इंसान के लिए अदा करना मुमकिन नहीं है। सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या कर सकता है? एक काम तो यह है कि इस एहसास से निकलना होगा कि बड़ी फीस लेने वाले वकीलों का मामला जल्दी सुलटाया जाता है। दूसरी बात यह है कि अदालतों में इतनी तारीखें मिलती हैं कि इंसाफ के लिए दरवाजा खटखटाना वालों के खर्च बढ़ जाते हैं। अदालत जितनी जल्द से जल्द तारीखों को कम करे इंसाफ चाहने वालों का खर्च उतना ही काम होगा। यह कहने में अच्छा लगता है कि इंसाफ पाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए लेकिन अदालत के दरवाजे के बाद जो खर्च है और जो दूसरी दिक्कतें हैं उसे पर चर्चा नहीं होती। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस ओर ध्यान दिलाकर बेहद जरूरी बात की है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को काफी योग्य व्यक्ति माना जाता है और उनके लिए यह चुनौती है कि अदालत को आम आदमी के लिए सहज सरल बनाएं। कुछ हद तक यह जिम्मेदारी विधि मंत्रालय और सरकार की भी बनती है। अदालतों को आम आदमी की पहुंच में लाने के लिए खर्च के साथ-साथ उसकी भाषा को भी आम आदमी की भाषा में लाना होगा। अंग्रेजी के साथ स्थानीय भाषा का इस्तेमाल भी जरूरी है। मगर यह काम राष्ट्रपति के एक भाषण से नहीं होगा बल्कि सब को मिलकर इसके लिए कोशिश करनी होगी।
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