बिहार बजट 2025.26 – नीतीश के आखिरी बजट से मुसलमानों ने क्या पाया? क्या खोया?

सैयद जावेद हसन, बिहार लोक संवाद, पटना

बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों -विधान परिषद् और विधानसभा में बिहार बजट पर बहस जारी है। जाहिर सी बात है, सत्तापक्ष बजट की तारीफ के पुल बांध रहा और विपक्ष इसकी खामियां गिना रहा है। अखबारों के पन्नों को तो आप देख ही चुके हैं जो उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के पेश किए हुए बजट 2025-26 से रंगे हुए हैं। हालांकि मीडिया के एक वर्ग का ये भी ख्याल है कि ये बजट नीतीश कुमार का नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी का है और इसे अगले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तैयार किया गया है। लेकिन इस तरह के दावों और प्रति दावों के बीच सबसे अहम सवाल ये है कि इस बजट से बिहार के 17 फीसद मुसलमानों को क्या मिला? इस सवाल का जवाब तलाश करने के लिए हमने काफी मेहनत से इस वीडियो को तैयार किया है। जरा गौर से देखते जाइएगा। अक्लीयतों की समस्याओं को दूर करने और उनकी विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने के लिए अल्पसंख्यक कल्याण विभाग को उत्तरदायी बनाया गया है। लेकिन इस विभाग को कुल बजट का सिर्फ शून्य दशमलव दो सात फीसद ही दिया गया है। यानी इसे मात्र 8 सौ 70 करोड़ रुपये ही दिए गए हैं। पिछले साल यानी वित्तीय वर्ष 2024-2025 में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग को 638 करोड़ रुपये दिए गए थे। इस तरह नये वित्तीय वर्ष में इस विभाग के बजट में 132 करोड़ रुपये का इजाफा किया गया है। लेकिन ये इजाफा अक्लीयतों की आंखों में धूल झोंकने के लिए है। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अलावा, उर्दू आबादी से जुड़ी कई संस्थाएं शिक्षा विभाग और मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के अंतर्गत आती हैं। उन संस्थाओं के साथ भी सरकार का रवैया अच्छा नहीं है। हम आपको एक-एक कर बताते जाएंगे कि बिहार का पूरा अल्पसंख्यक समाज और उर्दू आबादी कितने घाटे में है।

शुरूआत शिक्षा विभाग से करते हैं। मौलाना मजहरुल हक अरबी फारसी यूनीवर्सिटी उर्दू आबादी का इकलौता उच्चतर शैक्षिक डिग्री संस्थान है। लेकिन इसे 26 करोड़ 62 लाख, 62 हजार रुपये ही दिए गए हैं। मदरसा इस्लामिया शम्सुल होदा को 1 करोड़ 66 लाख 77 हजार रुपये दिए गए हैं। ये बिहार का इकलौता सरकारी मदरसा है लेकिन इसकी हालत खस्ता हो चुकी है। यहां टीचरों के कई ओहदे बरसों से खाली पड़े हैं। एदारा तहकीकाते अरबी व फारसी को 88 लाख, 42 हजार रुपये दिए गए हैं। लेकिन ये पैसा सिर्फ कहने के लिए दिया गया है जबकि ये संस्था अपने वजूद की आखिरी लड़ाई लड़ रही है। बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड को 7 करोड़ 21 लाख 11 ग्यारह हजार रुपये दिए गए हैं जबकि बिहार स्टेट मदरसा एजुकेशन बोर्ड को उससे काफी कम यानी 1 करोड़ 79 लाख 99 हजार रुपये दिए गए हैं। मदरसा बोर्ड पिछले डेढ़ साल से बिस्तरे मर्ग पर है क्योंकि इसके चेयरमैन की कुर्सी खाली पड़ी है। वहीं, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के तहत बिहार राज्य मदरसा सुदृढ़ीकरण योजना मद में 6 करोड़ रुपये का बजट अनुमान है। दो साल पहले लाई गई तीन नियमावलियों की वजह से पूरे बिहार में मदरसा सिस्टम चरमराया हुआ है, ऐसे में ये पैसा खर्च कैसे होगा, बताना मुश्किल है।

कुछ हाल भाषायी अकादमियों का भी सुन लीजिए। हिन्दी ग्रंथ अकादमी को 1 करोड़ 12 लाख रुपये, मैथिली अकादमी को 30 लाख रुपये, मगही अकादमी को 38 लाख रुपये, बंगला अकादमी को 20 लाख 40 हजार रुपये, संस्कृत अकादमी को 76 लाख 20 हजार रुपये और भोजपुरी अकादमी को 66 लाख 20 हजार रुपये दिए गए हैं। कहने को बिहार अंगिका अकादमी भी है लेकिन लगता है ये सिर्फ नाम के लिए है। अभी इसकी पूरी तरह से स्थापना नहीं हुई है। इसलिए इसके बजट अनुमान में कोई राशि दर्ज नहीं है। अब आते हैं बिहार उर्दू अकादमी की तरफ। बिहार उर्दू अकादमी की सबसे बड़ी बदनसीबी ये है कि इसे अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का हिस्सा बना दिया गया है जबकि हमने ऊपर जिन सात भाषायी अकादमियों का जिक्र किया, वो सभी शिक्षा विभाग के अंतर्गत हैं। इस तरह से उर्दू पर अल्पसंख्यकों की भाषा होने का टैग लगा दिया गया है। यही वजह है कि उर्दू के साथ अल्पसंख्यक समुदाय जैसा भेदभावपूर्ण बर्ताव किया जाता है। कहने के लिए वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए उर्दू अकादमी को 4 करोड़ 32 लाख 54 हजार रुपये दिए जाएंगे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि पैसा खर्च कैसे होगा क्योंकि पिछले 6 साल से उर्दू अकादमी डिफंक्ट है। इसकी कोई कार्यकारिणी समिति नहीं है, न उपाध्यक्ष है और न सचिव है। इसकी वजह से कोई नीतिगत फैसला नहीं हो पा रहा है और हर साल पैसे लैप्स कर जा रहे हैं। उर्दू अकादमी जैसा हाल अंजुमन तरक्कीए उर्दू बिहार का है। इसे 30 लाख 80 हजार रुपये दिए गए हैं। लेकिन हमारे सूत्रों के अनुसार इसका पैसा भी लैप्स कर जाता है। ये एक ऐसी संस्था है जिसके काम का कुछ अता-पता भी नहीं चलता। फिलहाल अब्दुल कय्यूम अंसारी अंजुमन तरक्कीए उर्दू बिहार के अध्यक्ष हैं।

शिक्षा विभाग के अंतर्गत कुछ बातें लाइब्रेरी की भी कर लें। खुदाबख्श ओरियंटल पब्लिक लाइब्रेरी को सहायता अनुदान मद में 25 लाख रुपये दिए गए हैं। इस विश्व विख्यात सेन्ट्रल लाइब्रेरी का फिलहाल कोई डायरेक्टर नहीं है। दुर्लभ पांडुलिपियों के लिए दुनिया भर में मशहूर ये लाइब्रेरी पिछले दस साल में अपना वकार लगभग खो चुकी है। यहां योग दिवस पर योग होता है और पीएम नरेन्द्र मोदी की परीक्षा पे चर्चा के लिए स्कूली छात्र बुलाए जाते हैं। कमाल की बात है कि पटना में देश की इकलौती गवर्नमेंट उर्दू लाइब्रेरी का बजट पिछले साल के मुकाबले इस साल घटा दिया गया है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में इस लाइब्रेरी का बजट 2 करोड़ 16 लाख 91 हजार रुपये था। अगले साल के लिए इसे 1 करोड़ 66 लाख 5 हजार रुपये कर दिया गया है।

अब बात करते हैं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के तहत आने वाली दो बड़ी संस्थाओं – बिहार राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड और बिहार राज्य शीया वक्फ बोर्ड की। सुन्नी वक्फ बोर्ड के लिए 3 करोड़ 86 लाख रुपये, जबकि शीया वक्फ बोर्ड के लिए 2 करोड़ 62 लाख रुपये का बजट रखा गया है। वित्तीय वर्ष 2024-25 के मुकाबले में इन दोनों बोर्ड्स के बजट में जरा भी इजाफा नहीं किया गया है। वक्फ संशोधन बिल की वजह से इन दोनों बोर्ड्स के अस्तित्व पर संकट बना हुआ है। बिहार वक्फ ट्रायब्यूनल भी खतरे में है। वक्फ संशोधन बिल में इसके अधिकारों को बहुत हद तक सीमित कर दिया गया है। वक्फ ट्रायब्यूनल के लिए 2 करोड़ 7 लाख 49 हजार रुपये रखे गए हैं। वक्फ संपत्ति के रख-रखाव, सुरक्षा और संवर्द्धन के लिए 2 करोड़ रुपये रखे गए हैं। पिछले साल भी इतनी ही रकम थी। इसके अलावा, वक्फ संपत्ति के विकास के लिए वक्फ बोर्ड को रिवॉल्विंग फंड के रूप में अनुदान के लिए 55 करोड़ रुपये रखे गए हैं। पिछले साल भी इतनी ही रकम थी। वक्फ से संबंधित इन संस्थाओं और मदों का बजट 65 करोड़ रुपये से भी ज्यादा होता है। इसके बावजूद अगर वक्फ संपत्ति के विवाद पर अंकुश नहीं लगा है और वक्फ संपत्ति का संवर्द्धन नहीं हुआ है तो जाहिर सी बात है कि सवाल भी उठेंगे और समस्याएं भी।

दूसरी तरफ, हज ऑपरेशन के लिए बिहार राज्य हज कमिटी को अनुदान के लिए 1 करोड़ 20 लाख रुपये दिए जाएंगे। पिछले साल भी इसका बजट इतना ही था। इस पैसे से हज को लेकर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। हज भवन में अल्पसंख्यक छात्र छात्राओं के लिए बीपीएससी की कोचिंग चलाई जाती है। इस मद में 5 करोड़ रुपये रखे गए हैं। पिछले साल भी इसका बजट इतना ही था। हालांकि अल्पसंख्यक वर्ग से आने वाले बीपीएससी उम्मीदवारों की कामयाबी को देखते हुए इस मद की रकम में इजाफा होना चाहिए था।

बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग का बजट 7 करोड़ 71 हजार 67 करोड़ रुपये रखा गया है। पिछले साल इसका बजट 5 करोड़ 53 लाख 2 हजार रुपये था यानी लगभग 2 करोड़ रुपये का इजाफा हुआ है। लेकिन ये बजट सिर्फ कहने के लिए है। इसलिए कि पिछले एक साल से यहां न कोई चेयरमैन है, न वाइस चेयरमैन और न कोई मेम्बर। पूरा आयोग भंग है और काममाज ठप पड़ा है।

अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के तहत कुछ अन्य योजनाओं का भी जिक्र कर लेते हैं। अल्पसंख्यक वर्ग के कामगारों के प्रशिक्षण के लिए वित्तीय वर्ष 2025-26 में 1 करोड़ रुपये रखे गए हैं जबकि पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 में 3 करोड़ रुपये रखे गए थे। ये एक बड़ा सवाल है कि इस मद के दो करोड़ रुपये क्यों घटा दिए गए? ठीक यही हाल मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को सहायता के रूप में राशि उपलब्ध कराने का है। वित्तीय वर्ष 2025-26 में इस मद में 1 करोड़ रुपये रखे गए हैं जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में 2 करोड़ रुपये रखे गए थे। इस योजना में भी 1 करोड़ रुपये घटा दिए गए।
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बजट में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के तहत अल्पसंख्यक भवन सह हज हाउस के निर्माण की बात कही गई है। इसके लिए 7 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। अल्पसंख्यक आवासीय विद्यालय और अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं के लिए छात्रावास की इन दिनों काफी चर्चा हो रही है। अल्पसंख्यक आवासीय विद्यालय पर हमने पिछले दिनों एक वीडियो भी बनाया था। वित्तीय वर्ष 2025-26 में अल्पसंख्यक आवासीय विद्यालय के निर्माण कार्य पर 2 अरब 45 करोड़ 97 लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है। लेकिन हर एक जिले में आवासीय विद्यालयों का निर्माण कब होगा, कहना मुश्किल है क्योंकि पिछले 5 साल में सिर्फ 2 आवासीय विद्यालय बनकर ही तैयार हुए हैं। वहीं, अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं के छात्रावास में मशीन और उपसस्कर के लिए 3 करोड़ रुपये रखे गए हैं।

अल्पसंख्यकों के लिए मल्टी सेक्टोरल डेवलपमेंट प्रोग्राम- एमएसडीपी जिसे प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम भी कहते हैं के तहत 1 अरब 20 करोड़ रुपये दिए गए हैं। पिछले वर्ष भी इतनी ही रकम दी गई थी। केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित इस कार्यक्रम से अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों में विकास का काम होता है। लेकिन अल्पसंख्यक आबादी वाले सीमांचल में इस कार्यक्रम के तहत विकास का कितना काम हुआ है, ये एक बड़ा सवाल है।

इसी तरह, बिहार राज्य अल्पसंख्यक वित्तीय निगम के हिस्सापूंजी के रूप में यानी कैपिटल शेयर के तौर पर 1 अरब रुपये के खर्च का अनुमान लगाया गया है। पिछले वित्तीय वर्ष के बजट में भी इतनी ही राशि थी। लेकिन सवाल है कि पिछले दो वर्षों में कितने अल्पसंख्यकों को रोजगार के लिए कर्ज दिया गया? इसका ठीक-ठीक जवाब देने के लिए कोई तैयार नहीं है।

अब बात करते हैं, मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के तहत उर्दू आबादी के लिए बजट प्रावधानों की। इसके एक विंग, उर्दू निदेशालय के लिए 3 करोड़ 39 लाख 44 हजार रुपये के खर्च का अनुमान लगाया गया है। ये वही उर्दू निदेशालय यानी उर्दू डायरेक्टोरेट है जिसके तहत पटना में मुशायरे और सेमिनार हुआ करत हैं। इसके अलावा, उर्दू साहित्यकारों को पुरस्कृत और सम्मानित किया जाता है। पिछले वर्ष इसका पुनरीक्षित अनुमान 3 करोड़ 33 लाख 39 हजार रुपये था। इस तरह इस मद में सिर्फ 6 लाख रुपये का ही इजाफा किया गया। यहां हम आपको याद दिलाते चलें कि उर्दू एडवाइजरी कमिटी को इसी उर्दू निदेशालय से ही पैसा दिया जाता था। उर्दू एडवायजरी कमिटी का अलग से बजट नहीं बनता है। कमिटी का पुनर्गठन नहीं होने की वजह से यह 2018 से बंद पड़ी है।

कुल मिलाकर सूरते हाल ये है कि नीतीश कुमार के दौरे हुकूमत के इस आखिरी बजट से मुसलमानों की आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक स्थिति में कोई बड़ी तब्दीली या बेहतरी की उम्मीद नजर नहीं आती। इसकी कई वजहें हैं। पहली वजह तो ये कि मुसलमानों के जो अवामी नुमाइंदे हैं, उनका ज्यादातर वक्त अपने लोकप्रिय नेता का नूरे नजर बने रहने में ही गुजर जाता है। दूसरी वजह, अफसरशाही है जो मामले को उलझा कर रखती है और बजट की राशि खर्च नहीं हो पाती है। तीसरी वजह, मुसलमानों का कोई प्रेशर ग्रुप नहीं है जो नेताओं और अफसरों पर दबाव डालकर काम करा सके। और चौथी वजह, खुद वो मुसलमान हैं, जिन्हें न तो बजट से कोई मतलब होता है और न ही उनके लिए बनी योजनाओं की उन्हें जानकारी होती है। विधानसभा का चुनाव सर पर है। ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बार-बार ये कहना कि उन्होंने मुसलमानों के लिए सैकड़ों कब्रिस्तानों की घेराबंदी करा दी है, काफी मायने रखती है।

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