बुनकर समाज की अरबों की संपत्ति पर अवैध कब्जा। नीतीश सरकार पर Corporates के हाथों खेलने का आरोप।
सैयद जावेद हसन
बिहार की राजधानी पटना के पॉश इलाके, राजेन्द्रनगर में तकरीबन डेढ़ एकड़ में फैली बुनकर समाज की अरबों की संपत्ति हड़पने की पिछले कई साल से साजिश चल रही है। इस साजिश में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े लोग तो शमिल हैं ही, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी भी नाजायज कब्जा करने वालों के मददगार साबित हो रहे हैं। ये संपत्ति बिश्कोटेक्स- यानी बिहार स्टेट हैंडलूम वीवर्स को-ऑपरेटिव यूनियन लिमिटेड की है। इसकी जिस संपत्ति पर आज कब्जा जमाने की कोशिशें हो रही हैं, उसका इतिहास आजादी के आन्दोलन से जुड़ा है। तहरीके आजादी के दौरान ‘बी इंडिया, बाई इंडिया’ का नारा बुलंद हुआ था। इसी के तहत मैनचेस्टर, इंग्लैंड के कपड़ोें का बायकॉट किया गया था और हस्तकरघा से बुने कपड़ों को प्रोमोट किया गया था। ये उन दिनों की बात है जब भागलपुर, सिल्क टेक्स्टाइल के हब के रूप में बहुत पहले से स्थापित था। आजादी के फौरन बाद 6 जून, 1948 को मुजाहिदे आजादी और पसमांदा मुस्लिम तब्कों के लिए सरगरमे अमल रहने वाले अब्दुल कययूम अंसारी ने बुनकरों के लिए रोजगार और आमदनी के जराए पैदा करने के मकसद से कोऑपरेटिव सोसायटी की बुनियाद डाली। इसे हैंडलूम के क्षेत्र में देश की पहली कोऑपरेटिव सोसायटी होने का गौरव हासिल है। तकरीबन 12 साल बाद 1960 में, अब्दुल कययूम असारी ंने पीआरडीए से जमीन खरीद कर इसपर कोऑपरेटिव सोसायटी के लिए कमर्शियल बिल्डिंग और एडमिनिस्टेªटिव बिल्डिंग के निर्माण की राह हमवार की। 1985 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने कमर्शियल बिल्डिंग की बुनियादी रखी थी जबकि 1987 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे ने कमर्शियल बिल्डिंग का उद्घाटन किया था। कॉमर्शियल बिल्डिंग, जो हैंडलूम भवन के नाम से जाना जाता है, का मकसद इंकम जेनेरेट करना था और एडमिनिस्टेªटिव बिल्डिंग का मकसद दफ्तर चलाना था। लेकिन आज कमर्शियल बिल्डिंग कानूनी पचड़े और बिश्कोटेक्स की जमीन का एक हिस्सा नाजायज कब्जे का शिकार हो चुका है। इसके विरोध में सबसे पहली आवाज एआईएमआईएम ने उठाई। पार्टी के एमएलए अखतरुल ईमान और स्टेट जेनरल सेक्रेटरी इंजीनियर आफताब अहमद ने इस सिलसिले में विस्तार से मीडिया को बताया।
बिहार लोक संवाद ने जब इस मामले की तहकीकात शुरू की तब कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पता चला कि मसले की जड़ में गणपति उत्सव हॉल है। गणपति उत्सव हॉल कमर्शियल बिल्डिंग और ऐडमिनिस्टेªटिव बिल्डिंग के बीच में तकरीबन 20 हजार स्क्वायर फीट की जमीन पर बना है। बिश्कोटेक्स के तत्कालीन मैनिजिंग डायरेक्टर उमेश कुमार सिंह ने 2008 में डॉक्टर कमल प्रसाद को एग्रीमेंट करके पांच साल के लिए, अस्थायी रूप से, गणपति उत्सव हॉल का संचालन करने की मंजूरी दे थी। बाद में, 2012 में, बिश्कोटेक्स के एक दूसरे मैनेजिंग डायरेक्टर अशोक कुमार सिन्हा ने इस एग्रीमेंट को पांच साल और यानी 2017 तक के लिए बढ़ा दिया। कमाल तो ये है कि दोनों मैनेजिंग डायरेक्टर्स ने कौड़ी के भाव में बुनकरों की जमीन को उत्सव हॉल चलाने के लिए दे दिया। पहले एग्रीमेंट के तहत किराया महज 2 लाख 25 हजार रुपये सालाना था जबकि दूसरे एग्रीमेंट के तहत सिर्फ 3 लाख 25 हजार रुपये था। बिश्कोटेक्स के मौजूदा चेयरमैन मोहम्मद नकीब अहमद अंसारी कहते हैं कि दोनों मैनेजिंग डायरेक्टर्स को एग्रीमेंट करने का अधिकार ही नहीं था। एग्रीमेंट करने का अधिकार बिश्कोटेक्स के निदेशक मंडल को होता है। मैनेजिंग कमिटी का चुनाव नहीं होने की वजह से निदेशक मंडल 2010 से लेकर 2014 तक सुपरसीडेड था।
2014 में बिश्कोटेक्स ने गणपति उत्सव हॉल हटाने के लिए कमल प्रसाद को नोटिस दिया। कमल प्रसाद ने नोटिस को हाई कोर्ट में यह कह कर चैलेंज कर दिया कि उसका एग्रीमेंट 2017 तक है। 2017 में जस्टिस अमानुल्लाह की बेंच ने कमल प्रसाद को राहत देने से इंकार कर दिया और अपने फैसले में एग्रीमेंट को गैर कानूनी घोषित कर दिया।
2017 में ही कमल प्रसाद ने लोअर कोर्ट में मालिकाना हक का केस दायर कर दिया। बिश्कोटेक्स की तरफ से उत्सव हॉल हटाने के लिए काउंटर केस किया गया। मैजूदा सूरते हाल ये है कि अदालत में तारीख पर तारीख पड़ रही है और गणपति उत्सव हॉल में बुनकरों की जमीन पर बदस्तूर शहनाइयां बज रही हैं और डीजे का शोर गूंज रहा है।
जिस जमीन पर आज गणपति उत्सव हॉल है, वहां पर देश का पहला हैंडलूम हॉल बनना है। 11 साल पहले, उद्योग विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव नवीन कुमार वर्मा की अध्यक्षता में 25 सितंबर, 2013 को बुनकर क्षेत्रीय संघ के अध्यक्षों और महाप्रबंधकों के साथ हुई बैठक में इसका फैसला लिया गया था। बैठक की कार्यवाही के चौथे पैराग्राफ में कहा गया है कि- बिहार राज्य हस्तकरघा बुनकर सहयोग संघ लिमिटेड राजेन्द्र नगर की चर्चा के दरम्यान प्रधान सचिव द्वारा प्रबंध निदेशक को निदेश दिया गया कि हैंडलूम भवन में स्थित कम्युनिटी हॉल, यानी गणपति उत्सव हॉल को खाली कराएं ताकि वहां हैंडलूम के मेले का आयोजन हो सके। प्रधान निदेशक द्वारा अवगत कराया गया कि एग्रीमेंट की अवधि खत्म नहीं हुई है। इसपर निदेश दिया गया कि एग्रीमेंट को रद किया जाए और साथ ही वहां हैंडलूम हाट बनवाने के लिए प्रस्ताव निदेशालय को उपलब्ध कराएं। 2019 में प्रधान सचिव केके पाठक के समय उद्योग विभाग की एजेंसी आइडा ने हैंडलूम मॉल का डीपीआर भी तैयार कर लिया था जिसके निर्माण पर 46 करोड़ 43 लाख रुपये खर्च होने हैं। लेकिन न गणपति उत्सव हॉल खाली हो रहा है और न ही मॉल का निर्माण हो रहा है।
ये तो बुनकरों की खाली जमीन पर नाजायज कब्जे और उसके नतीजे में एक बड़े प्रोजेक्ट के अटके रहने का मामला है। अब जो हम बताने जा रहे हैं, वो अंधेर नगरी चौपट राजा के मिस्दाक है। भारतीय जनता पार्टी से जुड़ा एक व्यक्ति है अमरनाथ श्रीवास्तव। इस व्यक्ति ने 27 अगस्त, 2024 को पटना के जिला मजिस्टेªट डॉक्टर चंद्रशेखर को पत्र लिखा। पत्र में कमर्शियल बिल्डिंग में बैंक्वेट हॉल के निर्माण पर रोक लगाने की मांग की गई। डीएम ने एक महीने के अंदर ही, 26 सितंबर को, एक तीन सदस्यीय जांच टीम का गठन करके तथ्यों की जांच का हुक्म जारी कर दिया। इससे पहले कि जांच और जांच रिपोर्ट का कुछ अता-पता चलता, अनुमंडल पदाधिकारी, पटना सदर, गौरव कुमार ने 20 अक्तूबर को आदेश जारी करके कमर्शियल बिल्डिंग में बैंक्वेट हॉल में हो रहे निर्माण कार्य पर रोक लगा दी।.
अब बात करते हैं बैंक्वेट हॉल की। हम पहले बता चुके हैं, कमर्शियल बिल्डिंग का मकसद इंकम जेनरेट करना था। चूंकि सरकार से बिश्कोटेक्स कोे एक पैसा नहीं मिलता है, इसलिए स्टाफ के वेतन और बिल्डिंग के रख-रखाव के लिए पैसे इकट्ठा करने की जिम्मेदारी खुद बिश्कोटेक्स की है। इसी के तहत कमर्शियल बिल्डिंग में कई दुकानें बनाई गई थीं और उन दुकानों को किराये पर लगाया गया था। किराये पर दुकान बुनकरों को ही दी गई थी। लेकिन जब दुकान नहीं चली, तब बुनकरों ने बोर्ड की इजाजत के बिना उन दुकानों को दूसरों को किराये पर दे दिया। उधर, चार मंजिला इस बिल्डिंग में नेशनल हैंडलूम डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन का दफ्तर था, जो 1995 में खाली हो गया। जियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का दफ्तर भी 1995 में खाली हो गया। पंजाब नेशनल बैंक ने 2020 में खाली कर दिया। डॉ. विनय कारक की क्लिनिक फिलहाल मौजूद है।
इस खाली होती जा रही इमारत का इंकम जेनरेट करने के लिए बिश्कोटेक्स ने ईवेंट मास्टर सुरजीत सिंह से फरवरी 2024 में एग्रीमेंट किया। एग्रीमेंट के तहत कमर्शियल बिल्डिंग की दूसरी, तीसरी और चौथी मंजिल को 6 लाख रुपये प्रति माह किराये पर लगाया गया। एग्रीमेंट 20 साल के लिए किया गया। एग्रीमेंट के तहत तीनों फ्लोर पर निर्माण कार्य चल ही रहा था कि भाजपा सेे जुड़े अमरनाथ श्रीवास्तव ने डीएम को चिट्ठी लिख दी और अनुमंडल पदाधिकारी पटना सदर ने निर्माण कार्य पर रोक भी लगवा दी।……
किस्सा मुखतसर ये है कि खाली कराना था गणपति उत्सव हॉल को लेकिन हॉल को खाली कराने की बजाय कमर्शियल बिल्डिंग में निर्माण कार्य पर ही रोक लगा दी गई। इससे जहां हैंडलूम मॉल का निर्माण रुक गया और बुनकर उससे होने वाले लाभ से वंचित रह गए, वहीं बैंक्वेट हॉल नहीं बनने से हैंडलूम भवन लाखों की आमदनी से हाथ धो बैठा। कमाल की बात तो ये है कि पिछले दस साल से बिश्कोटेक्स को गणपति उत्सव हॉल से एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिल रही है।
बिश्कोटेक्स के चेयरमैन कहते हैं कि बिहार और झारखंड में बुनकरों की तादाद लगभग 10 लाख है। सिर्फ बिश्कोटेक्स से तकरीबन 500 बुनकर जुड़े हैं। योजना बनाई गई है कि कर्मिशयल बिल्डिंग की आमदनी का 10 फीसद इन बुनकरों को दिया जाएगा। ये बुनकर अलग-अलग काम से जुड़े हैं।
नकीब अंसारी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चिट्ठी लिखकर गणपति उत्सव हॉल को खाली कराने और कमर्शियल बिल्डिंग में निर्माण कार्य पर लगाई गई रोक को हटाने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की है। नकीब अंसारी ने नीतीश कुमार की तारीफ करते हुए कहा कि सीएम की मंजूरी से ही अस्पतालों में सतरंगी चादर और मरीजों को पहनने के लिए ऐपरन की सप्लाई की योजना पर अमल हो रहा है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि उनकी चिट्ठी पर मुख्यमंत्री की तरफ से अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
इस बीच, ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी ने आरोप लगाया है कि बुनकर समाज की पूरी संपत्ति को कारपोरेट के हवाले करने की साजिश की जा रही है। अली अनवर ने बिहार लोक संवाद से फोन पर बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मांग की वो जल्दी से जल्द बिश्कोटेक्स की जमीन पर से नाजायज कब्जा हटवाएं और बुनकर समाज के हित में ठोस पॉलिसी बनाएं।
पटना में गांधी मैदान की पूरब तरफ शानदार खादी मॉल है। अब्दुल कय्यूम अंसारी ने कांग्रेस के शासनकाल में शायद ऐसे ही शानदार हैंडलूम भवन का ख्वाब देखा था, जो चकनाचूर हो गया। अब देखना ये है कि एनडीए के शासनकाल में बचे-खुचे ख्वाब किस तरह शर्मिंदए ताबीर होते हैं।
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