छ्पी-अनछपी: सीरिया में बर्बर तानाशाही खत्म, बांग्लादेश व भारत में एक-दूसरे के खिलाफ प्रदर्शन
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। सीरिया में पचास साल से अधिक की बर्बर तानाशाही खत्म हो गई है और राष्ट्रपति बशर (बश्शार) अल असद रूस भाग गए हैं। बांग्लादेश और भारत में एक दूसरे के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं। पटना के फतुहा लाकर नेपाली युवकों से नौकरी के नाम पर ठगी की गई है। भागलपुर में एक छात्र ने पिता की लाइसेंसी बंदूक से गोलीमार आत्महत्या कर ली।
हिन्दुस्तान के अनुसार सीरिया में रविवार तड़के विद्रोहियों ने राजधानी दमिश्क पर कब्जा कर लिया। इस बगावत से राष्ट्रपति बशर-अल असद के शासन का अंत हो गया। असद परिवार पिछले 50 वर्षों से अधिक समय से सीरिया की सत्ता पर काबिज था। रूसी समाचार एजेंसी ने दावा किया कि रविवार देर रात बशर परिवार के साथ मास्को पहुंच गए हैं। रूस से उन्हें शरण दी है। तख्तापलट की घोषणा होते ही लोगों ने सड़कों पर जश्न मनाना शुरू कर दिया। विद्रोहियों ने कैदियों को रिहा कर दिया। सेना ने बशर के देश छोड़ने की पुष्टि की। रविवार तड़के उन्होंने दमिश्क से उड़ान भरी। रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि बशर शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण का आदेश देने के बाद देश छोड़ चुके हैं। पहले दावा किया गया था कि बशर का विमान रडार से गायब हो गया। देर रात क्रिमलिन सूत्रों ने दावा किया कि बशर परिवार के साथ मास्को पहुंच चुके हैं। यहां उन्हें मानवीय आधार पर शरण दी गई है।
असद परिवार के क़त्लेआम का इतिहास
जागरण के अनुसार सुन्नी बहुल सीरिया में राष्ट्रपति बशर (बश्शार) अल असद के परिवार की 53 साल पुरानी सत्ता रविवार को ढह गई। वैसे असद शासन का इतिहास क़त्लेआम और खून खराबे वाला रहा। असद परिवार का ताल्लुक अल्पसंख्यक अलवी समुदाय से है। इसकी आबादी महज 12 प्रतिशत है। 1971 में बशर अल असद के पिता हाफिज अल असद ने सीरिया में सत्ता हथियाई थी। उन्होंने साल 2000 तक राज किया। हाफिज अल असद की मौत के बाद उनके दूसरे बेटे नेत्र रोग विशेषज्ञ बशर ने सत्ता संभाली।
कौन हैं अबू मोहम्मद अल-जोलानी?
बशर अल असद को सीरिया की सत्ता से बेदखल करने वाला विद्रोही गुट हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) है। इसके प्रमुख अबू मोहम्मद अल-जोलानी हैं। जोलानी ने जनता के बीच अपनी उदारवादी छवि पेश की और उसका भरोसा जीता। जोलानी पहले आतंकी संगठन अल कायदा से जुड़े थे, लेकिन बाद में उससे नाता तोड़ लिया। जनता के बीच उदारवादी छवि से अपनी पैठ बनाई। अब उसकी छवि एक आतंकी से भावी राज्य निर्माता के तौर पर बन रही है। 2016 में अल-जोलानी ने पहली बार एक वीडियो संदेश में अपना चेहरा जनता के सामने उजागर किया, जिसमें घोषणा की गई कि उनका समूह अपना नाम बदलकर जबात फतेह अल-शाम (सीरिया विजय मोर्चा) रख रहा है।
बांग्लादेश में भारत के खिलाफ प्रदर्शन
भास्कर के अनुसार बांग्लादेश में भारत विरोध की सियासत खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) से जुड़े तीन संगठनों ने रविवार को भारत के खिलाफ सबसे बड़े प्रदर्शन का आह्वान किया। बीएनपी के जातीयबादी छात्र दल, जुबो दल और स्वच्छा सेबक दल के 15000 से ज्यादा कार्यकर्ता पार्टी मुख्यालय पर सुबह 10 बजे एकत्रित हुए। इसके बाद पार्टी के कई नेताओं ने कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। बीएनपी के कार्यकर्ता भारत के अगरतला में बांग्लादेश सहायक उच्च आयोग में तोड़फोड़ और बांग्लादेश के खिलाफ भड़काऊ प्रचार के विरोध में मार्च के लिए एकत्रित हुए। इस दौरान बीएनपी से जुड़े तीनों संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भारतीय उत्पादों के बहिष्कार कभी ऐलान किया। इसके बाद जब बीएनपी का मार्च भारतीय दूतावास की ओर बढ़ा तो पहले से मौजूद पुलिसकर्मियों ने प्रदर्शनकारियों का रास्ता रोक लिया।
भारत में बांग्लादेश के खिलाफ प्रदर्शन
हिन्दुस्तान के अनुसार बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के विरोध में देशभर में उबाल है। रविवार को उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश समेत कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन हुए। पश्चिम बंगाल के कई इलाकों में प्रदर्शन हुए। कोलकाता में ढाकाई जामदानी साड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया। बांग्लादेशी सामानों के बहिष्कार का आह्वान किया गया। दिल्ली के मौजपुर में यूनाइटेड हिंदू फ्रंट ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर नाराजगी जताते हुए विरोध प्रदर्शन किया। गाजियाबाद में हिंदू समाज सुरक्षा समिति के बैनर तले हजारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। कविनगर रामलीला मैदान में आयोजित कार्यक्रम में 43 हिंदू संगठन शामिल हुए।
नेपाली युवकों से ठगी
भास्कर के अनुसार फतुहा के सुनारू गांव में नेपाल का एग्रो ठगी करते हुए पकड़ाया है। गिरोह नौकरी और बिजनेस का झांसा देकर लोगों को फंसाता था। घुसपैठ का शक होने के बाद लखनऊ मिलिट्री इंटेलीजेंस की टीम ने फतुहा थाने पुलिस के साथ मिलकर छापेमारी की। गिरोह का मुख्य संचालक गंगेश्वर सिंह फरार है। शातिर नेपाल के लोगों को प्रीमियम फैशन कंपनी में नौकरी देने का लालच देकर 2 से 5 लख रुपए तक ठग लेते थे। छापे की नारी के दौरान मौके पर 250 लोग मिले। दो आरोपियों के पास नेपाल और भारत की दोहरी नागरिकता के दस्तावेज मिले हैं। पांच शातिरों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है।
पिता के लाइसेंसी बंदूक से आत्महत्या
हिन्दुस्तान के अनुसार भागलपुर के कहलगांव थाना क्षेत्र के वार्ड नंबर -3 आनंद विहार कॉलोनी में 10वीं कक्षा के छात्र ने पिता की लाइसेंसी दोनाली बंदूक से खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। घटना रविवार सुबह सात बजे की है। मृतक की पहचान राजीव कुमार सिंह के पुत्र 14 वर्षीय सोमिल राज के रूप में हुई। सूचना पर पहुंची पुलिस ने कागजी प्रक्रिया के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। एसडीपीओ शिवानंद सिंह ने घटनास्थल पर पहुंचकर परिजनों से जानकारी ली। पुलिस ने मृतक के मोबाइल को जब्त कर लिया है। छात्र ने खुद को गोली मारने से पहले सुबह 6:45 बजे इंस्टाग्राम पर वीडियो और मैसेज डालकर वायरल किया। मैसेज में उसने लिखा, फाइनली आई कैन से दैट आई डाइड हैप्पली। मैसेज पर उसके इंस्टाग्राम में जुटे छात्रों ने कमेंट भी किया है।
पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट कोर्ट से बरी
भास्कर के अनुसार आईपीएस अफसर रहे संजीव भट्ट को 27 साल पुराने हिरासत में यातना के मामले में बरी कर दिया गया है। पोरबंदर की अदालत ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित नहीं कर सका है। भट्ट फ़िलहाल राजकोट सेंट्रल जेल में बंद हैं। अक्सर अखबारों ने इस खबर को नजरअंदाज किया है। संजीव भट्ट गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी कई गंभीर आरोप लगा चुके हैं।
कुछ और सुर्खियां
- दिल्ली कूच कर रहे किसानों को शंभू बॉर्डर पर पुलिस ने आंसू गैस छोड़कर और पानी की बौछार से रोक दिया
- मदरसा बोर्ड की फ़ौकानिया और मौलवी की परीक्षा 26 जनवरी से
- बांग्लादेश ने भारत को 59 रनों से हराकर अंडर-19 एशिया कप क्रिकेट ट्रॉफी जीती
- दानापुर-सिकंदराबाद समेत 12 ट्रेनें रद्द, 6 के रूट बदले
- बीपीएससी की 70 वीं की पीटी 13 दिसंबर को ही होगी
- एनएमसीएच के पूर्व डॉक्टर को दो दिन डिजिटल अरेस्ट रख कर 48 लख रुपए ठगे
अनछपी: सीरिया के बश्शार (बशर) अल असद शासन की बर्बर तानाशाही का अंत इतनी तेजी से होगा, इसका अंदाज़ा बहुत कम लोगों को रहा होगा। इससे पहले बांग्लादेश में शेख हसीना की तानाशाही का अंत छात्रों के संघर्ष के बाद हुआ और हसीना को भी देश छोड़कर भागना पड़ा। इससे भी पहले अशरफ गनी को भी अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर भागना पड़ा था। इन सबके पीछे साम्राज्यवादी शक्तियां थीं। इससे यह साबित होता है कि तानाशाही की जकड़न चाहे जितनी मज़बूत हो, एक दिन उसका अंत होता है। दुनिया में बर्बर तानाशाही का अंत होते देखना बहुत सुखद होता है लेकिन इसके पहले लाखों लोग क़त्लेआम और ज़ुल्म-ज़्यादती का शिकार होते हैं। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि इस्लामी जगत में इतनी सारी तानाशाही क्यों फैली? इसका ऐतिहासिक कारण यह है कि उपनिवेशवादी शक्तियों ने जब अपनी सत्ता छोड़ी तो उन्होंने वहां अपने पिट्ठू को बादशाह या किसी और पद के साथ शासक बना दिया। इसके बाद इन पिट्ठुओं ने अपनी सत्ता बचाने के लिए उन्हीं उपनिवेशवादियों की मदद से अपने ही लोगों पर अत्याचार का पहाड़ तोड़ा। सीरिया के तानाशाह असद के बारे यह बात साफ है कि उसे रूस का ज़बर्दस्त समर्थन मिला हुआ था। हद तो यह है कि ईरान भी असद समर्थक माना जाता है। जिन क्षेत्रों को विद्रोही बताया गया वहां असद ने रूस से बमबारी करवाई और हज़ारों लोग मारे गए। इसी तरह खुद असद ने अपनी जेलों में अनगिनत लोगों को ठूंसकर उन्हें यातनाएं दीं। सीरिया दूसरे अब राज्यों के मुकाबले एक बड़ी आबादी वाला देश है और वहां के लोग हुनरमंद भी बताए जाते हैं। अब असद सीरिया छोड़कर भाग चुका है तो जिन लोगों ने सत्ता संभाली है, उन लोगों पर सही से राज करने की ज़िम्मेदारी है। अगर नए शासकों ने ज़ुल्म ज़्यादती रोकी तो इस्लामी जगत में अच्छी मिसाल बनेगी। मिस्र समेत इस दुनिया में अब भी बहुत से देश में तानाशाह हैं और उनका हटना अभी बाकी है।
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