छपी-अनछपी: मुख्य चुनाव आयुक्त की चयन समिति से चीफ जस्टिस बाहर होंगे, मणिपुर पर बोले मोदी

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। मणिपुर के मुद्दे पर ले गए अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतत इस विषय पर बोला जिसकी खबर सभी अखबारों में छाई हुई है। एक तरफ अविश्वास प्रस्ताव पर बहस हो रही थी तो दूसरी तरफ सरकार ने राज्यसभा में एक बिल लाया है जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनने वाली समिति से भारत के चीफ जस्टिस को बाहर करने की तैयारी है। इस खबर को भी तवज्जो मिली है।

जागरण की दूसरी सबसे बड़ी खबर है: मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन करने वाली समिति से बाहर होंगे सीजेआई। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (सेवा की नियुक्ति शर्तें और कार्यकाल) विधेयक, 2023 पेश किया। विधेयक के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले पैनल द्वारा किया जाएगा। इसमें लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे जबकि सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) को इससे बाहर रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में फैसला दिया था कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और आयुक्तों की नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश की सदस्यता वाली समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। यह मानदंड इस पर संसद में कोई कानून बनने तक लागू रहेगा। विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार इस विधेयक के जरिए चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को कमजोर करने की कोशिश कर रही है।

मणिपुर में शांति का सूरज उगेगा: मोदी

हिन्दुस्तान और भास्कर की सबसे बड़ी खबरें प्रधानमंत्री मोदी का वह बयान है जिसमें उन्होंने मणिपुर में शांति का सूरज उगने की बात कही है। जागरण ने मोदी के दूसरे बयान पर सुर्खी लगाई है जिसमें उन्होंने कहा है कि देश की जनता को कांग्रेस पर अविश्वास है। मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा में विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव गुरुवार को ध्वनिमत से खारिज हो गया। प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर की स्थिति को लेकर कहा कि प्रदेश में शांति का सूरज शीघ्र उगेगा और वह नए आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ेगा। इस दौरान मोदी ने सरकार की उपलब्धियां गिनाईं और विपक्ष पर हमले भी किए। काफी देर तक मणिपुर पर न बोलने के बाद विपक्षी दलों ने मोदी के भाषण के समय वाकआउट किया।

किसने क्या कहा

  • मणिपुर की घटनाओं की तुलना दूसरी जगह से करना गलत: टीएमसी संसद महुआ मोइत्रा
  • सरकार स्पष्ट करे कि देश बड़ा है या हिंदुत्व और संघ की विचारधारा: असदुद्दीन ओवैसी
  • सवालों के जवाब नहीं मिले इसलिए प्रधानमंत्री के भाषण के समय वॉकआउट: गौरव गोगोई
  • बीते 40 वर्षों में मणिपुर में हिंसा के लिए कांग्रेस जिम्मेदार: भजपा सांसद राज्यवर्धन राठौर
  • भगवाकरण के भारत छोड़ने का समय: कांग्रेस सांसद; अधीर रंजन

मणिपुर में हिंसा के 100 दिन

भास्कर की सुर्खी है: बच्चे कैंप में, युवा बंकर में, महिलाएं सड़क पर …और प्रशासन गायब। अखबार लिखता है कि मणिपुर में हिंसा शुरू हुए 100 दिन हो चुके हैं। हर शहर, कस्बों की तस्वीर लगभग एक सी है- जली हुई बस्तियां, टूटे हुए मकान और बंद पड़े बाजार। सूनी सड़कों पर अचानक कहीं से शोर आ रहा है तो समझो नया संघर्ष शुरू हो चुका है। मणिपुर को असम से जोड़ने वाले इकलौते हाईवे पर बसा कांगपोकपी शहर लकड़ी के सामान के लिए मशहूर है लेकिन आजकल यहां जगह-जगह मकानों का मलबा पड़ा है। स्कूल कॉलेज बंद है या उनमें रिलीफ कैंप चल रहे हैं। 300 कैंपों में 40 हज़ार लोग हैं। कहीं-कहीं एक कमरे में 30-40 लोग ठूंसे गए हैं। ज्यादातर बच्चे और महिलाएं हैं  क्योंकि युवा अपनी जाति या सोशल स्टेटस के नाम पर हथियार उठा चुके हैं। वह बंकरो में हैं या पुलिस की तरह नाका लगाकर डटे हैं। 160 मौतें हो चुकी हैं। प्रशासनिक अफसर ग्राउंड पर नहीं है, दफ्तरों से भी गायब हैं।

सृजन घोटाले में बड़ी गिरफ्तारी

हिन्दुस्तान की दूसरी सबसे बड़ी खबर है: सृजन घोटाले में मनोरमा की बहू रजनी गिरफ्तार। राज्य के बहुचर्चित सृजन घोटाले की सरगना रजनी प्रिया को सीबीआई ने दिल्ली के पास गाजियाबाद के साहिबाबाद इलाके से गुरुवार सुबह गिरफ्तार कर लिया। राजेंद्र नगर के वेद इन्क्लेव से गिरफ्तारी के बाद उसे गाजियाबाद की विशेष अदालत में पेश किया गया। यहां से सीबीआई को उसे दो दिन की ट्रांजिट रिमांड पर बिहार लाने की अनुमति मिल गई। रजनी भागलपुर की सृजन सहयोग समिति की संस्थापक स्वर्गीय मनोरमा देवी की बहू है।

शीर्ष नक्सली गिरफ्तार

प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के शीर्ष नेता व पोलित ब्यूरो सदस्य प्रमोद मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया गया है। उसके साथ नक्सली अनिल यादव को भी पकड़ा गया। गया पुलिस ने एसटीएफ व सीआरपीएफ के साथ संयुक्त अभियान में टिकारी थाना क्षेत्र के हुड़रही गांव से दोनों को दबोचा। प्रमोद मिश्रा अपने रिश्तेदार के घर आया हुआ था। इसकी जानकारी गया एसएसपी आशीष भारती ने गुरुवार को प्रेसवार्ता कर दी।

कुछ और सुर्खियां

  • ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के बारे में दावों की मीडिया कवरेज पर कोर्ट की रोक
  • सरकारी बैठकों में सांसद विधायक के प्रतिनिधियों को प्रवेश नहीं मिलेगा
  • भारतीय जनता युवा मोर्चा ने राज्य भर में निकला धिक्कार मार्च
  • शिक्षक नियुक्ति परीक्षा में आंखों की पुतली व चेहरे का होगा मिलान
  • मध्यमा छात्रों को भी मिलेगी साइकिल वह पोशाक राशि
  • मणिपुर में सामूहिक दुष्कर्म का एक और मामला सामने आया

अनछपी: भारत में लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव के दावों के बीच यह बात भी सच्चाई है कि चुनाव में धांधली होती है और इसे रोकने में चुनाव आयोग विफल होता है। ऐसा नहीं है कि यह किसी खास सरकार में हुआ हो और दूसरी सरकार में ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ हो। हर सरकार चुनाव आयोग को अपने नियंत्रण में रखना चाहती है लेकिन कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यवस्था दी थी जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनने वाली समिति में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को भी शामिल किया गया था। अब सरकार ने एक बिल लाया है जिसके तहत मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनने वाली समिति में प्रधानमंत्री के अलावा एक कैबिनेट मंत्री और विपक्ष का नेता होगा। यानी जो स्थान भारत के प्रधान न्यायाधीश के लिए था वह अब सरकार के ही एक मंत्री को मिलेगा इससे इस समिति के झुकाव का पता आसानी से लग सकता है। अब अगर सरकार द्वारा प्रस्तावित नाम पर विपक्ष के नेता असहमत भी हों तो बहुमत के आधार पर सरकार के लिए अपने पसंद के व्यक्ति को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाना आसान होगा। एक टीएन शेषन को छोड़ दिया जाए तो भारत के अन्य किसी मुख्य निर्वाचन आयुक्त के नाम पर शायद ही सहमति बने कि वह निरपेक्ष और निडर थे। ऐसे में जरूरी था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और दूसरे चुनाव आयुक्त को चुनने वाली समिति में सरकार और विपक्ष का पलड़ा बराबर रहे और निर्णायक वोट के लिए प्रधान न्यायाधीश उस समिति में हों जो इनका चयन करती है। मौजूदा सरकार यह कह सकती है कि पहले की सरकारों ने भी अपने हिसाब से चुनाव आयोग के सदस्यों और मुख्य निर्वाचन आयुक्त को चुनने की व्यवस्था की थी लेकिन भारत के प्रधान न्यायाधीश को इस समिति से बाहर कर मौजूदा सरकार ने अपने ऊपर शक पैदा कर लिया है। ऐसे में साफ-सुथरे चुनाव के बारे में भी शक पैदा होता है और यह भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छी निशानी नहीं है। सरकार से उम्मीद करनी चाहिए कि वह विपक्ष की बातों पर ध्यान देगा और चुनाव आयोग को एक स्वतंत्र और निष्पक्ष इकाई बनाने में पहल करेगी।

 

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