छपी-अनछपी: धाराएं बदलेंगी- धोखाधड़ी के लिए 420 की जगह 316 व मर्डर के लिए 99, नीतीश ने मणिपुर पर मोदी को घेरा

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। आईपीसी, सीआरपीसी और एविडेंस एक्ट में बदलाव के प्रस्ताव की खबर को सभी अखबारों ने बहुत महत्व दिया है। कानून की धाराएं जो बदलेंगी उसमें धोखाधड़ी के लिए 420 नहीं बल्कि 316 का इस्तेमाल होगा। इसी तरह हत्या की धारा 302 नहीं बल्कि 99 होगी। मणिपुर की हिंसा के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घेरा है। यह ख़बर भी पहले पेज पर है।

जागरण की सबसे बड़ी खबर है: बदलेंगे अंग्रेजों के बनाए आपराधिक कानून। हिन्दुस्तान में यह दूसरी सबसे बड़ी खबर है। भास्कर की सबसे बड़ी सुर्खी है: तारीख़् पे तारीख़् नहीं… अब 3 साल में करना होगा इंसाफ।  केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अंग्रजों के जमाने से चले आ रहे आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य कानूनों को बदलने के लिए शुक्रवार को लोकसभा में तीन विधेयक पेश किए। इसके तहत मॉब लिंचिंग के लिए न्यूनतम सात वर्ष का कारावास और अधिकतम मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। वहीं, राजद्रोह कानून को पूरी तरह समाप्त किया जा रहा है। सदन ने तीनों विधेयकों को विचार-विमर्श के लिए संसद की स्थायी समिति को भेज दिया है। सबसे बड़ा बदलाव यह माना जा रहा है कि अब ट्रायल कोर्ट को हर फैसला अधिकतम 3 साल में देना होगा।

नामों में बदलाव

  1. भारतीय दंड संहिता 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता, 2023 लेगी।
  2. दंड प्रक्रिया संहिता 1898 की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता होगी।
  3. भारतीय साक्ष्य संहिता 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम होगा।

मोदी को मणिपुर पर नीतीश ने घेरा

हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी खबर है: प्रधानमंत्री मणिपुर पर कुछ नहीं बोले: नीतीश। जागरण ने लिखा है: संसद सत्र के दौरान बाहर घूमते रहे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री संसद में मणिपुर के मुद्दे पर कुछ नहीं बोले। शुक्रवार को सप्तमूर्ति पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री केन्द्र सरकार पर जमकर बरसे। उन्होंने कहा कि सब जगह घटनाएं घट रही हैं लेकिन उनका कोई बयान नहीं आता है। वे लोग अपने ढंग से जो अच्छा लगता है, वही बोलते हैं। उनको काम करना चाहिए, लेकिन काम नहीं हो रहा है। हाउस चलता है फिर भी वे लोग चुप रहते हैं। पहले ऐसा नहीं होता था। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि 2024 में भाजपा का सफाया तय है। इसीलिए वे लोग घबराहट में हैं।

चीफ मिनिस्टर डॉक्टोरल फ़ेलोशिप

जागरण की खबर है: सभी विश्वविद्यालय में लागू की जाएगी चीफ मिनिस्टर डॉक्टरल फैलोशिप। राज्य के सभी विश्वविद्यालयों में शोध एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिए चीफ मिनिस्टर डॉक्टोरल फेलोशिप योजना जल्द लागू होगी। यह योजना पिछले साल से प्रस्तावित है जिस पर अब शिक्षा विभाग ने सहमति प्रदान की है। इस योजना के क्रियान्वयन पर सालाना 8 करोड़ रुपए तक खर्च होंगे। सभी विषयों में प्रत्येक वर्ष बिहार के 4 से 500 मेधावी यों को पीएचडी करने के लिए फैलोशिप प्रदान की जाएगी। शोधार्थी को ₹10000 प्रतिमाह छात्रवृत्ति प्रस्तावित है जिसे बढ़ाकर बारह से पन्द्रह हज़ार रुपये करने का सुझाव है।

नफरती भाषण के हल के लिए समिति बनाएं: कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को नफरती भाषणों की समस्याओं पर गौर करने और हल निकालने के लिए उच्च स्तरीय समिति गठित करने के लिए कहा है। हिन्दुस्तान के अनुसार नूंह में भड़की हिंसा के बाद एक समुदाय विशेष का सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार की घोषणा और नफरत फैलाने वाले भाषणों पर रोक लगाने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवी भट्टी की पीठ ने कहा कि देश में सभी समुदायों के बीच सद्भाव और सौहार्द होना चाहिए।

न्यूज़क्लिक के खिलाफ पत्र

जागरण की खबर है: न्यूज़क्लिक के खिलाफ राष्ट्रपति और सीबीआई को पत्र। पूर्व न्यायाधीशों और राजदूतों सहित 250 से अधिक बुद्धिजीवियों ने राष्ट्रपति और भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर समाचार पोर्टल न्यूज़क्लिक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। न्यूज़क्लिक पर चीनी प्रचार प्रसार के लिए अमेरिकी अरबपति नेविल राय सिंघम से धन प्राप्त करने का आरोप है। बुद्धिजीवियों ने कहा कि चीन द्वारा गुप्त रूप से वित्त पोषित यह पोर्टल हमारे लोकतंत्र को चुनौती दे रहा है। इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को ईडी की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यूज़क्लिक और उसके प्रधान संपादक से उनका रुख पूछा है।

कुछ और सुर्खियां

  • B.Ed डिग्री धारी नहीं बन सकेंगे प्राथमिक शिक्षक, D.El. Ed. ही बन पाएंगे: सुप्रीम कोर्ट
  • पीएमसीएच में 77 प्रोफेसर की जगह 17 से चल रहा काम, पीजी सीटों पर अनुमति का संकट
  • कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी के निलंबन के खिलाफ विपक्षी दलों का मार्च
  • नियमों के उल्लंघन में आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा राज्यसभा से निलंबित
  • बिहार में 92000 बेरोजगार युवाओं को मिलेगा भत्ता
  • नगर निकायों में 18 वर्ष में बहाल हो सकेंगे क्लर्क
  • कोसी, बागमती, गंडक समेत सभी नदियों में उफान, मधेपुरा के 50 गांव पर संकट
  • पटना से हावड़ा के बीच वंदे भारत की चेयर कार का किराया 1460 रुपए

अनछपी: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा भारतीय कानून में बड़े बदलाव की जो खबर है उसे बेहद सतर्कता से देखने की जरूरत है। यह सुनने में अच्छा लगता है कि अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून में बदलाव लाया जा रहा है लेकिन क्या बदलाव के नाम पर सिर्फ धाराओं की संख्या बदल देना काफी है? बल्कि सवाल तो यह है कि क्या धाराओं की संख्या बदलना जरूरी भी था? धाराओं की संख्या बदलने से पूरी न्यायिक व्यवस्था में व्यवधान पैदा होगा क्योंकि वकील से लेकर जज तक को नए-नए नाम याद करने होंगे। इसलिए सरकार को धारा बदलने से बचना चाहिए था और वह अब भी पुरानी धाराओं को संभव हद तक जारी रखने के बारे में सोच सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती के काफी पुराने कानून को बदलना चाहिए लेकिन इसके लिए यह कहना कि यह अंग्रेजो के बने कानून है हास्यास्पद बात है क्योंकि नए कानून का आधार भी वही पुराने कानून होंगे। गवाही के कानून जैसे मामले जरूर बदलाव चाहते थे क्योंकि आधुनिक तकनीक से कई चीजें ऐसी हैं जिनको पुराने कानून में जगह नहीं मिल पाई थी। यह सवाल भी किया जाना चाहिए कि क्या यह सही नहीं है कि अंग्रेजों ने पहली बार भारत में कानून को एक नियमित शक्ल दी थी। खुद भारतीय संविधान कई देशों के संविधान से लिए गए सिद्धांतों पर आधारित है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह यह दावा कर रहे हैं कि नए कानून में न्याय का प्रावधान है जबकि अंग्रेजों के जमाने के कानून का मकसद दंड देना था। हालांकि यह एक ऐसा दावा है जिस पर विवाद हो सकता है लेकिन यह दावा करना आसान है, इसे धरातल पर उतरना आसान नहीं है। भारत में अगर आम आदमी से कानून के बारे में पूछा जाए तो वह यही कहेगा कि यह पैसे वालों और पैरवी वालों के लिए मजबूत है और बाकी लोगों के लिए कमजोर। उदाहरण के लिए किसी एक मामले में महंगे वकील और सस्ते वकील का अंतर जाना जा सकता है। देखना होगा कि नए कानून में आम आदमी को इंसाफ दिलाने के लिए क्या व्यवस्था की गई है।

 

 

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