पाल होटल की आग में इंसान मरेेे, रिश्ते जले और झुलस गईं संवेदनाएं भी

सैयद जावेद हसन, बिहार लोक संवाद।

आज हम आपको एक ऐसे भयानक हादसे की दास्तान सुनाने जा रहे हैं, जिसमें न सिर्फ कई इंसानों की मौत हुई, बल्कि इंसानी रिश्तों से जुड़ी संवेदनाएं भी जलकर राख हो गईं। वाक्या 25 अप्रील, 2024 की सुबह पौने ग्यारह बजे का है। पटना जंक्शन के पास के चार मंजिला होटल पाल में आम दिनों की तरह चहल-पहल थी। कुछ लोग कमरे में लेटे-पड़े थे और कुछ होटल के फर्स्ट फ्लोर पर रेस्तरां में नाश्ता कर रहे थे। अलग-अलग मकसद से आए हुए लोग अपनी-अपनी योजनाओं को अमली जामा पहनाने में लगे थे। तभी रेस्तरां के नीचे बनी रसोई में रसोइये ने छौंक लगाई ही थी कि आग की लपट उठी और लीक कर रहा सिलिंडर ब्लास्ट कर गया। फिर दूसरा सिलिंडर भी ब्लास्ट कर गया। तेज पछुआ हवा के सहारे आग ऊपरी मंजिलों तक फैलने लगा। देखते ही देखते आग ने पूरे पाल होटल को अपनी चपेट में ले लिया। होटल के मुलाजिम किसी तरह जान बचाकर भागे लेकिन होटल में मौजूद 6 लोगों की जान उसी रोज चली गई। संकरी सीढ़ी होने की वजह से उन्हें भागने का रास्ता नहीं मिला। एक की मौत बाद में इलाज के दौरान हो गई। आग पर काबू पाने और होटल में फंसे हुए लोगों की जान बचाने के लिए दमकल की 55 गाड़ियां लगी रहीं। लगभग तीन घंटे की मशक्कत के बाद 50 से ज्यादा लोगों को रिस्क्यू किया गया। आग ने पाल होटल से सटे अमृत होटल और बलबीर साइकिल के गोदाम को भी अपनी चपेट में ले लिया था।

इस दर्दनाक हादसे में मारे गए लोगों की पुलिस ने एक-एक कर पहचान कर ली है। इनमें से कुछ के आपसी रिश्ते रहे थे। हम यहां ऐसे ही तीन रिश्तों की बात करने जा रहे हैं। शुरूआत जीजा और साली से करते हैं। चन्द्रकला कुमारी कैमूर जिले के रामगढ़ के पुरुषोत्तमपुर की रहने वाली थी। उसके पिता का नाम साहेब दयाल है। चन्द्रकला की उम्र 22 साल थी। वह डीएलएड की परीक्षा देने के लिए पटना आई थी। साथ में उसके जीजा रितेश यादव भी थे। घटना वाले दिन दोनों पाल होटल में नाश्ता कर रहे थे तभी भयानक हादसा हो गया। पीएमसीएच में इलाज के दौरान ही 28 अप्रील को चन्द्रकला की मौत हो गई। जीजा रितेश यादव की हालत इस वीडियो के बनाने तक काफी नाजुक बनी हुई थी। चन्द्रकला की मौत के साथ ही एक लड़की के शिक्षक बनने के सपने का भी अंत हो गया।

अब बात करते हैं प्रियंका कुमारी उर्फ नूतन और तेज प्रताप उर्फ बबलू की। 25 वर्षीय नूतन सिपाही थीं और समस्तीपुर के रोसड़ा जेल में तैनात थीं। वो भभुआ के अखलासपुर की रहने वाली थीं। प्रियंका छुट्टी लेकर घर आई थीं। वहां से वो तेजप्रताप से मिलेने के लिए पटना आई थीं। तेजप्रताप इंडियन रिजर्व बटालियन के जवान थे और उनकी उम्र 30 साल थी। वो मूल रूप से औरंगाबाद जिले के ओबरा के रहने वाले थे। झारखंड के रांची में तैनात थे और छुट्टी लेकर पटना आए हुए थे। हिन्दुस्तान अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, तेजप्रताप और प्रियंका एक दूसरे से परिचित थे और मिलने के लिए पाल होटल पहुंचे थे। लेकिन इस मुलाकात का अंजाम बेहद दर्दनाक साबित हुआ। यहां तक कि पुलिस को दोनों के शव की पहचान करने में भी काफी दुश्वारी हुई। आग लगने से दोनों बुरी तरह झुलस चुके थे। प्रियंका की पहचान उनेके पर्स से मिली वार्दी वाली तस्वीर से हुई। उनके पर्स में सीतामढ़ी के एक टेलर की रसीद भी मिली जिसपर दर्जी का नंबर दर्ज था। दर्जी से बात करने के बाद पुलिस ने प्रियंका के शव की पहचान की। तेजप्रताप की शिनाख्त उनके हाथ पर बने टैटू से हुई। उनकी पहचान सबसे पहले तेजप्रताप के एक साथी ने की। हादसे के दिन से ही उनका मोबाइल बंद आ रहा था। जब काफी देर तक संपर्क नहीं हुआ तो परिजन झारखंड स्थित उनके कार्यालय गए। फिर घर गए। पता चला कि वो छुट्टी लेकर गए हैं। पुलिस ने पहले से ही उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर अपलोड कर रखी थी। दैनिक भास्कर ने तेजप्रताप के बारे में उनके परिजनों के हवाले से कुछ और जानकारियां दी हैं। रिपोर्ट के मुुताबिक, उनकी मां ओबरा की सरपंच हैं। तेजप्रताप की शादी होने वाली थी और वो सगाई की खरीदारी करने के लिए पटना आए हुए थे। यहां दो तरह के सवाल पैदा होते हैं। क्या तेजप्रताप की शादी प्रियंका से होने वाली थी? अगर नहीं, तो प्रियंका से उनकी जान-पहचान किस तरह की थी?

अब हम तीसरे रिश्ते की बात करेंगे। पाल होटल में लगी आग में 55 साल की राजलोखी और 24 साल की उनकी बेटी राजलक्ष्मी की मौत हो गई। दोनों पश्चिम बंगाल के पुरुलिया की रहने वाली थीं। पुलिस ने सरकारी एम्बुलेंस से मां-बेटी की लाश को पुरुलिया भेजवाने का इंतेजाम किया था। दोनों की लाश को एम्बुलेंस में रख दिया गया था। एम्बुलेंस के पास राजलोखी के भाई मौजूद थे। उन्हें एम्बुलेंस के साथ ही जाना था। अचानक उन्होंने पुलिस वालों से कहा कि वो थोड़ी देर में आ रहे हैं। लेकिन वापस नहीं लौटे। उनका मोबाइल भी स्विच ऑफ बताने लगा। पुलिस ने देर तक मृतक राजलोखी के भाई के आने का इंतेजार किया। जब वो नहीं आए तो पुलिस ने मां-बेटी की लाश को एम्बुलेंस से उतरवा लिया। सवाल ये है कि राजलोखी के परिजन दोनों लाशों को लावारिस हालत में छोड़ कर क्यों चले गए? क्या उन्हें लग रहा था घर जाने केे बाद उन्हें एम्बुलेंस का भाड़ा देना होगा? या उन्हें लाश के साथ इतनी दूर जाते हुए किसी तरह की असुविधा महसूस हो रही थी? या भाई के दिल में बहन और भांजी के लिए जो संवेदना थी, वह भी झुलस कर राख हो गई थी?

घटना के बाद से पुलिस और प्रशासन अपने-अपने तौर पर कार्रवाई कर रहे है। होटलों में सेफ्टी मैनेजमेंट की जांच की जा रही है और होटल मालिकों को नोटिस थमाया जा रहा है। पाल होटल और अमृत होटल के मालिकों की गिरफ्तारी की कोशिशें भी तेज कर दी गई हैं। लेकिन उन रिश्तों, सपनों और संवेदनाओं का क्या होगा, जो इस आग में जल गईं। जली हुई इन संवेदनाओं की बू लंबे समय तक महसूस होती रहे, यह जरूरी है। संवेदनाओं के बगैर रिश्ते वैसे ही हैं, जैसे कफन में लिपटी हुई लाशें।

 160 total views

Share Now

Leave a Reply