छपी-अनछपी: “न्यूज़ चैनलों पर कमाई के हिसाब से जुर्माना लगे”, दरभंगा एम्स के लिए नई जगह पर अड़े नीतीश
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। आज अखबारों में इश्तहार बहुत ज्यादा हैं। आजादी की लड़ाई से जुड़ी कहानियों को भी अच्छी जगह दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज़ चैनलों पर लगाए गए जमाने को बहुत कम बताते हुए कहा है कि यह उसकी कमाई के हिसाब से होना चाहिए। हालांकि इस खबर को उतनी तवज्जो नहीं मिली है। दरभंगा के शोभन इलाके में ही एम्स के निर्माण पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयान को पहले पेज पर अच्छी जगह मिली है।
भास्कर में एक छोटी सी खबर है: न्यूज़ चैनलों पर कमाई के हिसाब से लगे जुर्माना: सुप्रीम कोर्ट। सुप्रीम कोर्ट ने देश के टीवी न्यूज़ चैनलों की स्व-नियमन व्यवस्था को कमजोर बताते हुए इसे लेकर दिशा निर्देश जारी करने के संकेत दिए हैं। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ जस्टिस एस नरसिंह और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा जब तक नियम सख्त नहीं होंगे तब तक टीवी चैनलों के ऊपर बाध्यता नहीं होगी। बेंच ने न्यूज़ ब्रॉडकास्ट एंड डिजिटल संगठन के दिशा निर्देशों के उल्लंघन पर चैनल पर लगने वाले एक लाख रुपए के जमाने को नाकाफी बताया। जुर्माना उस चैनल की कमाई के अनुपात में लगना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की। बॉम्बे हाईकोर्ट ने टीवी चैनलों के स्व-नियमन को नाकाफी बताते हुए इसे सख्त बनाने की बात कही थी। इसके खिलाफ न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
दरभंगा में एम्स कहां बने?
हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी खबर है: दरभंगा के शोभन में एम्स का निर्माण कराए केंद्र: नीतीश। जागरण की लीड भी यही है: दरभंगा में एम्स अगर बनाना है तो शोभन में ही बनाना होगा: नीतीश। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि दरभंगा एम्स के लिए जो जमीन हमने चुनी है, वह सबसे उपयुक्त है। उसका स्थल काफी अच्छा है। एम्स बनाना है तो वहीं शोभन में ही बनाना होगा। अन्यथा केन्द्र सरकार जो चाहे करे। हमने दरभंगा एम्स के लिए सबसे अच्छी जमीन दी। उसे विस्तारित कर रहे थे। मुख्यमंत्री सोमवार को लोहिया पथ चक्र फेज-2 और जेपी गंगा पथ फेज-2 के उद्घाटन के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने दरभंगा एम्स की जमीन के नीची होने के आरोप को भी खारिज किया। उन्होंने कहा कि हम जमीन ऊंची करके देंगे। इसके लिए तो काम शुरू भी हो गया था। हम तो और भी सुविधा देने को तैयार हैं। दोनों तरफ रास्ता बनाने की योजना थी, ताकि एम्स के लिए बेहतर कनेक्टिविटी हो सके।
हिमाचल में कुदरत का कहर
हिमाचल प्रदेश में पिछले 24 घंटे में भूस्खलन, बादल फटने और बारिश से जुड़ी अलग-अलग घटनाओं में 52 लोगों की मौत हो गई। अभी 35 और लोगों के मलबे में दबे होने की सूचना है। मौसम विभाग ने राज्य में 16 अगस्त तक भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है। वहीं, राज्य सरकार ने मंगलवार को स्वतंत्रता दिवस पर सांस्कृतिक कार्यक्रम रद्द कर दिए। भारी बारिश से शिमला, हमीरपुर, मंडी, सोलन, कांगड़ा और सिरमौर जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
शिक्षकों के सर्टिफिकेट की जांच
भास्कर की सबसे बड़ी खबर है: शिक्षकों के सर्टिफिकेट अपलोड, 73 हज़ार की निगरानी जांच अभी बाकी। अखबार लिखता है कि राज्य के 3 लाख 52 हज़ार 927 नियोजित शिक्षकों के सर्टिफिकेट की जांच 7 साल बाद भी अधूरी है क्योंकि 73 हज़ार शिक्षकों के सर्टिफिकेट निगरानी विभाग के पास नहीं हैं। शिक्षा विभाग का कहना है कि जिन शिक्षकों के फोल्डर नियोजन इकाइयों से नहीं मिले उनके सर्टिफिकेट विभाग के पोर्टल पर अपलोड हैं। वहीं से सर्टिफिकेट लेकर निगरानी जांच कर ले। इस मामले की सुनवाई पटना हाई कोर्ट में हो रही है। कोर्ट ने ही शिक्षा विभाग से निगरानी को सर्टिफिकेट उपलब्ध कराने को कहा था। अगली सुनवाई 17-18 अगस्त को संभावित है।
चलती ट्रेन से छात्र को फेंका, मौत
मोबाइल छिनतई के दौरान सोमवार शाम फिर एक छात्र की ट्रेन से कटकर मौत हो गई। यह घटना भी मुजफ्फरपुर-रामदयालुनगर स्टेशन के मध्य बीबीगंज रेल गुमटी के पास हुई है। मृत छात्र जगदीश कुमार (25) मधुबनी जिले के खिरहर थाना क्षेत्र के झिटकी का निवासी था। वह पटना में रहकर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करता था। छात्र छुट्टी होने पर पटना-जयनगर इंटरसिटी से मधुबनी जा रहा था। शाम करीब 5.40 बजे वह चलती ट्रेन में सेल्फी ले रहा था। तभी बीबीगंज गुमटी के पास बदमाश ने मोबाइल छीनने की कोशिश की। छात्र ने विरोध किया। इस दौरान दोनों आपस में भिड़ गए। फंसता देखकर बदमाश ने छात्र को धक्का दे दिया। इससे वह चलती ट्रेन से गिर पड़ा और उसके दोनों पैर कट गए। इस कारण मौके पर ही उसकी मौत हो गई।
सीवान की ज़ेवर दुकान में 62 लाख का डाका
हिन्दुस्तान की खबर है: सीवान की आभूषण दुकान में दिनदहाड़े 62 लाख का डाका। सीवान के एमएच नगर हसनपुरा थाने के उसरी बाजार पुल से पश्चिम स्थित सिमी ज्वेलर्स में सात हथियारबंद डकैतों ने सोमवार को दिनदहाड़े डाका डाला और करीब 61.88 लाख रुपये के सोने-चांदी के गहने ले गए। यह जानकारी दुकान के मालिक व उसरी बुजुर्ग निवासी युगल किशोर सोनी ने लिखित आवेदन में पुलिस को दी है। दूसरी ओर एसपी दफ्तर ने इस संबंध में विज्ञप्ति जारी कर छह लाख के गहने लूटे जाने की बात कही है।
कुछ और सुर्खियां
- जातीय गणना की रिपोर्ट जारी करने पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
- झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ईडी दफ्तर नहीं गए भिजवाया बंद लिफाफा
- भागलपुर में कुएं में जहरीली गैस से तीन लोगों की मौत
- आईएमए की मांग: जेनेरिक दवाएं अनिवार्य करने वाला नियम लागू न करें
- भाजपा को वोट देने वालों को राक्षसी प्रवृत्ति का कहने पर घिरे कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला
- बिहार में गंगा, गंडक, कोसी व कमला खतरे के निशान के पार
अनछपी: डॉक्टरों को धरती का भगवान कहा जाता है लेकिन अफसोस की बात यह है कि डॉक्टरों पर यह इल्जाम भी लगता है कि वह अनावश्यक जांच करवाते हैं और महंगी दवाएं लिखते हैं। यह बहस पुरानी हो चुकी है कि डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखनी चाहिए या ब्रांडेड दवाएं। अब जबकि केंद्र सरकार ने जेनेरिक दवाएं लिखना अनिवार्य नियम बनाया है तो इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि इस पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए। आईएमए की दलील यह है कि भारत में बनने वाली जेनेरिक दवाओं की 1% से भी कम की गुणवत्ता की जांच की जाती है। आईएमए का यह भी कहना है कि अगर ब्रांडेड दवाएं डॉक्टरों को नहीं लिखनी है तो ऐसी दवाओं को लाइसेंस ही क्यों दिया जाता है? दिक्कत तो यह है कि भारत की कई ब्रांडेड दवाएं भी विदेशों में अपनी गुणवत्ता की कमी के कारण बदनाम हुई हैं। इस समय यह जरूरी है कि जेनेरिक दावों और ब्रांडेड दावों के बारे में बात खुलकर की जाए और दवा लिखने में एक संतुलन बनाने की बात पर सहमति बने। अगर जेनेरिक दावों की एक प्रतिशत से भी कम की गुणवत्ता जांच की जाती है तो सरकार को यह बताना चाहिए कि आखिर उनके दावे में कितनी सच्चाई है और अगर सच्चाई है तो इसे कैसे ठीक किया जा सकता है। ब्रांडेड दवाओं पर अगर आईएमए को इतना ही भरोसा है तो उसे इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि आखिर बहुत सारी ब्रांडेड दवाएं गुणवत्ता में भी कमजोर क्यों पाई जाती हैं। खुद भारत सरकार प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के तहत कम कीमत पर जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराती हैं लेकिन अफसोस की बात यह है कि उसकी गुणवत्ता के बारे में कोई भरोसेमंद रिपोर्ट अब तक नहीं आई है। आईएमए को चाहिए कि जन औषधि योजना के तहत बाजार में उतारी गई दवाओं की भी जांच करे और उसके बारे में बताए कि उसमें क्या कमी है ताकि सरकार उसे दूर कर सके। ध्यान देने की बात यह भी है कि सरकारी जन औषधि दावा केंद्र पर भी कई दवाई नहीं मिलती है ऐसे में लोगों को ब्रांडेड दवा लेना मजबूरी बन जाती है। आईएमए को यह भी बताना चाहिए कि आखिर ब्रांडेड दवाएं इतनी महंगी क्यों होती हैं और इस आरोप में कितना दम है कि दवा कंपनियां डॉक्टरों को इसके बदले भारी-भरकम उपहार देती हैं। जेनेरिक और ब्रांडेड दवा के बीच का रास्ता निकाला जाना चाहिए ताकि मरीजों को आर्थिक नुकसान भी ना हो और उन्हें सही इलाज मिल सके।
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