छपी-अनछपीः मोदी को एसआईटी से मिली क्लीन चिट पर सुप्रीम कोर्ट भी राजी, 69 लोग जिंदा जले थे
बिहार लोक संवाद डाॅट नेट, पटना। पटना के अधिकतर अखबारों में गंगा पथ के उद्घाटन की खबर छायी हुई है। इसके अलावा गुजरात दंगों के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को एसआईटी से मिली क्लीन चिट को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सही ठहराने की खबर भी प्रमुखता से छपी है। बीपीएससी पेपर लीक मामले में गया के एक काॅलेज के प्रिंसिपल की संलिप्तता और उसकी गिरफ्तारी की खबर भी पहले पन्ने पर है।
तत्कालीन गुजरात मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री को मुस्लिम विरोधी गुजरात दंगों के खासकर गुलबर्ग सोसायटी वाले मामले में एसआईटी द्वारा क्लीन चिट देने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी। तब वहां कांग्रेस केेे सांसद एहसान जाफरी समेत 69 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। इस क्लीन चिट के खिलाफ एहसान जाफरी की बेवा जकिया जाफरी लंबी कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं।
आज के अखबारों ने गोधरा और गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की चर्चा तो है लेकिन गुलबर्ग सोसायटी के 69 परिवारों पर क्या बीती होगी, इसकी चर्चा नहीं मिलती।
इस विश्लेषण के साथ जो तस्वीर लगी है वह मनोज मिट्टा की है और गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका के बारे में है। प्रोफेसर अपूर्वानंद कहते हैं कि इसे पढ़ना चाहिए। इसी तरह एएमयू के पूर्व वीसी जमीरुदद्दीन शाह की किताब भी पढ़नी चाहिए जिसमें बताया गया है कि कैसे फौज को दंगा रोकने से रोक दिया गया।
बीस साल पहले हुए उन दंगों के बारे में आज 20-25 साल के हो चुके युवाओं को बताने की जरूरत है।
हिन्दुस्तान ने अपनी पहली खबर में बताया है कि पटना में गंगा पथ का दोनों ओर विस्तार होगा। प्रभात खबर और जागरण ने पीएमसीएच पहुंचने में होने वाली संभावित आसानी को सुर्खी में जगह दी है।
भास्कर की लीड है- गया के काॅलेज के पिं्रसिपल ने ही किया था बीपीएससी पीटी का पेपर लीक, गिरफ्तार। यह एक अनाम सा इवनिंग काॅलेज है। पता नहीं ऐसी महत्वपूर्ण परीक्षा का सेन्टर ऐसे काॅलेज में क्यों बनाया जाता है।
महाराष्ट्र में जारी सत्ता संघर्ष की खबर भी अधिकतर अखबारों के पहले पेज पर है। हिन्दुस्तान ने लिखा है- महाराष्ट्र में सत्ता का संघर्ष आर-पार की ओर।
बिहार में सत्ताधारी दल में शामिल भाजपा और जदयू के नेताओं में जुबानी जंग थमने का नाम नहीं ले रही है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और जदयू के सीनियर लीडर उपेन्द्र कुशावाहा ट्विटर पर एक दूसरे पर तंज कस रहे हैं।
अनछपीः 24 जून को बिहार विधानमंडल का माॅनसून सत्र शुरू हुआ और इससे जुड़ी एक खबर में बताया गया है कि बच्चों की पढ़ाई और गरीबों के घर पर खर्च होंगे 11196 करोड़। यह अनुपूरक बजट का हिस्सा है। सवाल यह है कि इतने रुपये खर्च होने के बावजूद हमारी पढ़ाई और हमारे गरीबों का इतना बुरा हाल क्यों है? कोई इसकी बात क्यों नहीं करता? अभी उच्च शिक्षा के मामले में सत्ताधारी दल के दोनों प्रमुख दल आपस ही में भिड़े हुए हैं। अखबारों में बच्चों के स्कूलों की बदहाली की खबरें क्यों नहीं मिलतीं? ऐसी खबरें जो पटना में भी छपे और सरकार जिसका नोटिस ले और हालात सुधरे।
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