छ्पी-अनछपी: उपराष्ट्रपति धनखड़ का इस्तीफा, जनसुनवाई का फैसला-एसआईआर रद्द हो
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। राज्यसभा में विवादों में रहने वाले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार की रात अचानक ‘स्वास्थ्य कारणों’ से इस्तीफा दे दिया। पटना में आयोजित जनसुनवाई के दौरान विशेष मतदाता पुनरीक्षण (एसआईआर) को रद्द करने की मांग की गई। मुंबई के ट्रेन धमाकों के सभी 12 सजायाफ्ता मुल्ज़िमों को हाई कोर्ट ने बरी किया। पारस अस्पताल मर्डर केस में पुलिस को तौसीफ की 3 दिनों की रिमांड मिली।
और, जानिएगा कि मंत्री अशोक चौधरी से उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा क्यों भिड़ गए?
पहली खबर
प्रभात खबर के अनुसार मानसून सत्र के पहले दिन सोमवार की रात उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (74 वर्ष) ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देखकर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा भेजा। उन्होंने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति पद संभाला था। अपने पत्र में उन्होंने लिखा, “स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सकीय सलाह का पालन करने के लिए मैं संविधान के अनुच्छेद 67 ए के अनुसार तत्काल प्रभाव से भारत के उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देता हूं।” धनखड़ का अचानक इस्तीफा ऐसे वक्त आया है जब संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ है। इस सत्र में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया है। 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनू में जन्मे धनखड़ ने अपने करियर की शुरुआत वकील के तौर पर की थी। जनता दल और कांग्रेस से जुड़े रहे धनखड़ ने 2003 में भाजपा के सदस्यता ली थी। 2019 में वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बने थे।
जनसुनवाई का फैसला: एसआईआर रद्द हो
हिन्दुस्तान के अनुसार बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर तत्काल रोक लगनी चाहिए। यह लोकतंत्र में लोगों को मिले अधिकार पर हमला है। विशेष गहन पुनरीक्षण पर सोमवार को हुई राज्य स्तरीय सुनवाई के बाद छह सदस्यीय पैनलिस्ट समूह ने ये बातें कहीं। भारत जोड़ो अभियान, स्वराज अभियान, कोसी नवनिर्माण मंच, एनएपीएम, समर चैरिटेबल ट्रस्ट, जेजेएसएस इस जनसुनवाई के आयोजक थे। बीआईए सभागार में पांच घंटे चली जनसुनवाई में राज्य के 14 जिलों के 25 लोगों ने पुनरीक्षण में हो रही समस्याएं पैनलिस्टों के समक्ष रखीं। साथ ही दूसरे राज्यों में रह रहे प्रवासी मजदूरों ने भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से अपनी परेशानी बतायी। पैनलिस्ट पटना हाईकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अंजना प्रकाश ने कहा कि चुनाव आयोग पुनरीक्षण में जो दस्तावेज मांगा रहा है, वह अधिकतर लोगों के लिए देना असंभव है। दस्तावेज के अभाव में किसी को वोट से वंचित करना वैध नहीं है। आयोग ने अव्यावहारिक लक्ष्य तय कर लिया है। लोगों से उनके नागरिक होने का सबूत मांगा जा रहा है।
मुंबई ट्रेन धमाकों में सजा पाने वाले मुलजिम बरी
जागरण के अनुसार वर्ष 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में विशेष अदालत से सजा पाए 12 अभियुक्तों को घटना के 19 वर्ष बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष के सभी दावों की धज्जियां उड़ा दीं और कहा कि वह मामले को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है और यह विश्वास करना कठिन है कि अभियुक्तियों ने कोई अपराध किया है। साथ ही कहा कि यदि अभियुक्त किसी अन्य मामले में वंचित नहीं हैं तो उन्हें तुरंत जेल से रिहा कर दिया जाए। इसके बाद सात अभियुक्तों को विभिन्न जेलों से रिहा भी कर दिया गया। विशेष अदालत ने 2015 में इनमें से पांच को मौत की सजा और सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। मौत की सजा पाए एक अभियुक्त की 2021 में मौत हो गई थी। हाई कोर्ट का फैसला इस मामले की जांच करने वाली एजेंसी महाराष्ट्र एटीएस के लिए बड़ा झटका है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने फैसले को चौंकाने वाला बताते हुए कहा कि इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।
पारस अस्पताल मर्डर केस में तौसीफ पुलिस रिमांड पर
हिन्दुस्तान के अनुसार पटना के पारस अस्पताल में हुए चंदन मिश्रा हत्याकांड में पकड़े गए शूटर तौसीफ उर्फ बादशाह समेत चार को सोमवार की सुबह पुलिस पश्चिम बंगाल से लेकर पटना पहुंची। इसके बाद उससे लंबी पूछताछ की गई। वहीं न्यायालय ने तौसीफ की 72 घंटे की पुलिस रिमांड दी है। पुलिस मंगलवार को बेऊर जेल से तौसीफ को लेकर आएगी, जिसके बाद उससे पूछताछ शुरू होगी। इधर, सुबह के वक्त पटना पहुंचने पर सबसे पहले सुरक्षात्मक दृष्टकोण से चारों शूटरों को लोदीपुर स्थित न्यू पुलिस लाइन में रखा गया। यहां पटना पुलिस के अधिकारियों ने उनसे लंबी पूछताछ की। बाद में सभी को एसटीएफ के दफ्तर ले जाया गया। वहां एसटीएफ के अफसरों ने शूटरों से घटना के बारे में पूछताछ की।
राजनीतिक जंग में ईडी का इस्तेमाल क्यों: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ईडी से पूछा कि ‘राजनीतिक लड़ाई’ में उसका इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? शीर्ष कोर्ट ने कर्नाटक के सीएम सिद्धरमैया की पत्नी बी.एम. पार्वती और राज्य मंत्री बिरथी सुरेश के खिलाफ जारी समन रद्द करने के हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए यह सवाल किया। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा कथित अवैध भूमि आवंटन से जुड़े धन शोधन मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ ईडी की अपील पर विचार करने पर अनिच्छा जताई। मुख्य न्यायाधीश गवई ने ईडी से कहा कि हमें अपना मुंह खोलने के लिए न कहें। अन्यथा हमें ईडी पर कठोर टिप्पणियां करने को मजबूर होना पड़ेगा। दुर्भाग्य से, मुझे महाराष्ट्र का कुछ अनुभव है। सियासी लड़ाई मतदाताओं के सामने लड़ी जाए। आपको राजनीतिक लड़ाई के रूप में क्यों इस्तेमाल किया जा रहा है? शीर्ष कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ ईडी की अर्जी खारिज कर दी।
अशोक चौधरी से अपने ही गठबंधन के नेता भिड़े
भास्कर के अनुसार बिहार विधान मंडल के सेंट्रल हॉल में सोमवार को एनडीए विधानमंडल दल की बैठक हुई। इसमें उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा और ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी के बीच तू तू मैं मैं हुई। विजय ने अशोक पर ग्रामीण कार्य विभाग के काम में स्थानीय विधायकों की उपेक्षा का आरोप लगाया। कहा, इस विभाग के कार्यक्रम में स्थानीय विधायकों को नहीं बुलाया जाता है। उनका समर्थन भाजपा और जदयू के विधायकों ने मेज थपथपा कर किया। विजय का कहना था कि ग्रामीण सड़कों का निर्माण मानकों के अनुरूप नहीं हो रहा है। इस पूरे हंगामा के दौरान मुख्यमंत्री खामोश रहे। चुपचाप देखते रहे। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी शांत रहे। अंत में मुख्यमंत्री ने विधायकों से कहा कि जनता को अपनी सरकार के काम और उपलब्धियां तो बताए ही उनका 2005 के पहले और भी के बिहार का फर्क भी समझाएं।
कुछ और सुर्खियां:
- मुंबई में भारी बारिश के कारण एयर इंडिया का विमान लैंडिंग के दौरान रनवे पर फिसला, तीन टायर फटे- हादसा टला
- विपुल एम पंचोली को पटना हाई कोर्ट के 45वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई गई
- पटना जिला प्रशासन ने विदेश मंत्रालय को गर्दनीबाग में पासपोर्ट ऑफिस के लिए एक एकड़ 46 डिसमिल जमीन दी
- घर पर नकदी मिलने से विवादों में घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग के लिए संसद के दोनों सदनों में नोटिस
- केरल के पूर्व मुख्यमंत्री और सीपीएम के वरिष्ठ नेता वीएस अच्युतानंदन का निधन
अनछपी: मुंबई में 2006 के ट्रेन धमाके के मामले में जिन लोगों को विशेष अदालत ने दोषी करार दिया था उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट ने रिहा करते हुए साफ तौर पर कहा कि उन्हें मुजरिम मानने के लिए कोई सबूत नहीं है। इस फैसले से दो अहम सवाल खड़े होते हैं। एक तो यह है कि जिस विशेष अदालत ने इस मामले के पांच मुलजिमों को फांसी की सजा और सात को उम्र कैद की सजा सुनाई थी, आखिर उसने इस बात पर क्यों गौर नहीं किया जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने उजागर किया है। यह कहा जा सकता है कि निचली अदालतें गलतियां करती हैं लेकिन जिस तरह खास तौर पर निचली अदालतों में एक विशेष विचारधारा की घुसपैठ हुई है और फैसला देने से पहले जाति धर्म देखने का शक बढ़ा है, उससे इसे केवल मानवीय भूल मनाना मुश्किल लगता है। इन मुलजिमों ने इतना लंबा समय जेल में बिताया और उनमें से एक की तो मौत भी हो गई तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है और उन्हें कौन मुआवजा दिलाएगा? यह मुआवजा मिल भी सकता है या नहीं? अगर सरकारें बेकसूर लोगों को लंबे वक्त तक जेल में रखती है तो ऐसे मामलों में जिम्मेदारी तय होनी चाहिए और पीड़ितों को उचित मुआवजा मिलना चाहिए। यहां यह बात कहना जरूरी है कि कई बार सरकार और पुलिस बेकसूर लोगों को भी पकड़ लेती है और अदालत की कार्यवाही इतने लंबे समय तक चलती है कि यह प्रक्रिया ही उनके लिए सजा बन जाती है। दरअसल बेकसूर लोगों को पकड़ कर जेल में डाल देने को सरकार ने अपने विरोधियों के खिलाफ एक हथियार बना लिया है। दूसरा अहम सवाल यह है कि अगर यह मुलजिम बरी हो गए तो असली मुजरिम कौन हैं और उन्हें क्यों नहीं पकड़ा गया? पुलिस की तैयारी में इतनी कमी रह जाती है कि कई बार बड़ी घटनाओं के बाद भी किसी को सजा नहीं मिल पाती है। सरकार और समाज दोनों को इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि बेकसूरों को जेल में ना रखा जाए और जो जुर्म हो उसके लिए जिम्मेदार लोगों को जरूर पकड़ा जाए।
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