आइए, इस चुनाव में नफरत की दीवारों को ढा दें
सैयद जावेद हसन
मुख्य समाचार संपादक
एनडीए के घटक दल भले ही विशुद्ध रूप से विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने का दावा करते हों, लेकिन लड़ाई जीतने के लिए नफ़रत की दीवारें खड़ी करना नहीं भूलते। बात चाहे अमित शाह के पाकिस्तान में पटाख़ा फोड़ने की हो या नरेन्द्र मोदी के कपड़ों से पहचान लेने की या फिर बिहार के कश्मीरी आतंकवादियों का गढ़ बनने की या फिर जिन्ना समर्थक के चुनाव लड़ने की….बात घूम-फिर कर मुसलमानों को अलग-थलग करने और बहुसंख्यक वर्ग को एकजुट करने की कोशिशों पर ही आकर अटक जाती है।
केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता गिरिराज सिंह ने एक बार फिर अपना पुराना अंदाज़ दोहराया है। उन्होंने जाले विधानसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार मश्कूर उस्मानी को निशाने पर लेते हुए कहा कि क्या जाले सीट से गठबंधन के उम्मीदवार जिन्ना का समर्थन करते हैं?
दरअसल यह मामला 2017 का है। एएमयू विवाद के बाद इसके तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष मश्कूर उस्मानी ने कहा था कि स्टूडेंट यूनियन स्वतंत्र संस्थान है। इस निकाय के कामों में कोई दखल नहीं दे सकता। हम जिन्ना की विचारधारा का विरोध करते हैं लेकिन उनकी तस्वीर होना बस एक ऐतिहासिक तथ्य है। तस्वीर का होना ये साबित नहीं करता है कि छात्र जिन्ना से प्रेरणा लेते हैं। जहां तक बात है तस्वीर हटाने की तो पहले संसद से सावरकर की तस्वीर हटाई जानी चाहिए।
गिरिराज सिंह के बयान पर राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन और मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि एनडीए असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहा है। वहीं कांग्रेस प्रवक्ता हरखु झा ने कटाक्ष किया कि मालेगांव आतंक कांड की आरोपी प्रज्ञा को बीजेपी ने उम्मीदवार क्यों बनाया था?
दैनिक भास्कर ने इस सिलसिले में बहुत सीधे-साधे अंदाज में जिन्ना और पाकिस्तान के मुद्दे का मतलब समझाया है। अखबार का कहना है कि बिहार में कुल मुस्लिम आबादी 16.87 फीसदी है। चार जिलों- किशनगंज में 67.98 फीसदी, कटिहार में 44.47 फीसदी, अररिया में 42.95 फीसदी और पूर्णिया में 38.46 फीसदी मुस्लिम आबादी है। इन चारों में मुस्लिम आबादी को देखते हुए बाकी जिलों में हिंदू वोटरों के ध्रुवीकरण के लिए यह मुद्दा काफी मुफीद माना जाता है। इसके अलावा दरभंगा में 22.39 प्रतिशत, प.चंपारण में 21.98 प्रतिशत और सीतामढ़ी में 21.62 प्रतिशत, पू.चंपारण में 19.42 प्रतिशत, सुपौल में 18.36 प्रतिशत और मधुबनी में 18.25 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं। बिहार में मुस्लिम आबादी वाले टॉप-10 जिलों में विधानसभा की एक-तिहाई (78) सीटें आती है।
पिछले कुछ वर्षों में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाए जाने का नतीजा हम देश भर में देख चुके हैं। कुछ मुस्लिम नाम वाले अभिनेताओं ने असहिष्णुता का विरोध किया तो सियासत और मीडिया का एक हिस्सा उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गया। आज नतीजा ये है कि सुशांत सिंह राजपूत के बहाने पूरे बाॅलीवुड पर कीचड़ उछाला जाने लगा। नतीजतन बाॅलीवुड में छटपटाहट पैदा हुई और अब मामला दिल्ली हाईकोर्ट में है।
इसी सियासत और मीडिया के एक हिस्से ने तब्लीगियों द्वारा कोरोना फैलाए जाने की अफवाह फैलाई। लेकिन नतीजा ये हुआ कि सारे लोग कोरोना पीड़ितों से दूर होने लगे। यहां तक कि अपनों का अंतिम संस्कार करने तक से भागने लगे।
नफरत ऐसी फैलाई गई कि मुस्लिम सब्जी और फल फरोश से सामान लेने तक का बायकाट करने की अपील कर दी गई। लेकिन अब बजाज और कुछ दूसरी कंपनियों ने नफरत फैलाने वाले मीडिया हाउस को विज्ञापन देने से ही इंकार कर दिया है।
ये तमाम बातें इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि नफरत का कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि समाज में बंटवारे की दीवारें ऊंची ही होती हैं।
आइए, नफरत की इन दीवारों को ढा दें, अपने वोट की एक चोट से।
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