छपी-अनछपी: ज़हरीली शराब से मौत पर मुआवजा देने को राजी सरकार, अतीक मुद्दे पर बोले नीतीश- मारने का नियम है क्या?
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। बिहार में जहरीली शराब पीने से मौत होने पर घरवालों को मुआवजा नहीं देने का लंबा सियासी झगड़ा खत्म हुआ। सरकार ऐसे लोगों को अब मुआवजे के तौर पर चार लाख रुपये देगी। यह जानकारी सभी जगह पहले पेज की पहली खबर है। पूर्व सांसद और माफिया अतीक हत्याकांड के मामले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूछा है कि मारने का नियम है क्या? नीतीश कुमार का यह बयान प्रमुखता से छपा है। भास्कर की खास खबर है कि सृजन घोटाले में भागलपुर दंगा पीड़ितों के लिए जो राशि दी गई थी उसमें से 55 लाख रुपये डकार लिए गए।
भास्कर की सबसे बड़ी सुर्खी है: जिनकी मौत जहरीली शराब से उनके आश्रितों को 4 लाख मुहावरे की घोषणा, छिना बड़ा सियासी मुद्दा। जागरण ने लिखा है: जहरीली शराब से मौत पर चार लाख मुआवजा। हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी हेडलाइन है: फैसला: जहरीली शराब से मौत होने पर आश्रितों को अनुदान। एक अप्रैल, 2016 से अब तक जहरीली शराब पीने से जिनकी मृत्यु हुई है, उनके आश्रितों को चार-चार लाख रुपये का अनुदान राज्य सरकार देगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री राहत कोष से यह राशि पीड़ित परिवार को दी जाएगी। उनकी घोषणा के बाद इसको लेकर सभी जिलाधिकारियों को दिशा-निर्देश भी सरकार ने जारी कर दिया है।
मुआवज़े की शर्त
ज़हरीली शराब से मौत के बाद अनुदान के बारे में उत्पाद एवं मद्य निषेध मंत्री सुनील कुमार ने कहा कि राज्य में 17 अप्रैल 2023 के बाद से अगर किसी व्यक्ति की मौत जहरीली शराब से होती है, तो शव के पोस्टमार्टम कराए बिना अनुग्रह अनुदान की राशि नहीं दी जाएगी। इससे पहले जितने लोगों की सरकारी रिकॉर्ड में मौत हुई है, उन्हें अनुदान दिया जाएगा। जो कोई अनुदान के लिए दावा करेगा, तो संबंधित जिला प्रशासन के स्तर से इसकी पुष्टि कराई जाएगी। उन्होंने कहा कि अनुदान देने वाले परिवार को लिखित शर्त पर हस्ताक्षर करना होगा, जिसमें लिखा रहेगा कि परिवार के सभी सदस्य पूर्ण शराबबंदी कानून का हर तरह से समर्थन करेंगे, शराबबंदी कानून को पूर्ण सहयोग देंगे, लोगों को इसके लिए प्रेरित करेंगे। इन शर्तों का पालन पीड़ित परिवार को करना होगा।
अतीक मुद्दे पर नीतीश
जागरण की सुर्खी है: सीएम नीतीश ने पूछा… जो जेल में जाएगा, उसको मार दीजिएगा, ऐसा नियम है क्या। हिन्दुस्तान की सुर्खी है: अतीक मामले पर कार्रवाई करे योगी सरकार: नीतीश।उत्तर प्रदेश में अतीक अहमद की हत्या से संबंधित सवाल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि यह दुखद घटना है। कहा कि झूठ बोल दिया कि प्रेसवाला खड़ा होकर पूछ रहा था। प्रेस के लोग यह सब करेंगे? कौन आकर वहां खड़ा हो गया, यह सब पुलिस को पहले से देखना चाहिए था। कोई जेल में है और आप उसको इलाज के लिए ले जा रहे हैं और रास्ते में इस तरह की घटना घट जाती है, यह बहुत ही दुखद है। इसपर निश्चित रूप से योगी सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सोमवार को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि किसी को सजा होती है और किसी पर केस होता है, कोई जेल में है तो उसपर हमको कुछ नहीं कहना है। हमारा कहना है कि कोई भी जेल में रहेगा और वह बाहर जाएगा तो उसकी सुरक्षा का पूरा प्रबंध होना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि जो जेल में जाएगा उसे मार दीजिएगा क्या? ऐसा नियम है क्या? फैसला तो न्यायालय करता है।
यूपी पुलिस ने कानून का जनाजा निकाला: तेजस्वी
अतीक हत्याकांड के मामले में यह बयान सभी जगह है। उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने कहा कि यूपी में अतीक जी (अतीक अहमद) का नहीं बल्कि कानून का जनाजा निकला है। कस्टडी में हत्या होती है तो सवाल तो उठना लाजमी है। उपमुख्यमंत्री ने सोमवार को नई दिल्ली से पटना पहुंचने के बाद एयरपोर्ट पर मीडिया से बातचीत में कहा कि जो लोग भी अपराधी हैं या अपराध में शामिल हैं, उनसे हमलोगों को खासकर मुझको कोई सहानुभूति नहीं है। मगर इस देश में कानून है और अगर अपराध का खात्मा होना चाहिए तो इसके लिए कानून व संविधान है, कोर्ट है, इसके जरिए होता है। हमने देखा है कि प्रधानमंत्री की भी हत्या हुई तो हत्यारों का ट्रायल हुआ और सजा हुई। पुलिस कस्टडी में सबसे ज्यादा हत्या हुई है, तो यूपी में।
अशरफ के बंद लिफाफ़े
जागरण की सुर्खी है: अशरफ के बंद लिफाफे में हो सकता है हत्या का राज। अख़बार लिखता है कि भाई अतीक और अपनी हत्या के कुछ दिन पहले अशरफ ने तीन बंद लिफाफों में चिट्ठियां लिखकर अपने विश्वस्त को सौंपी थी। इसमें उसने अंदेशा जताया था कि उन्हें जेल से निकालकर मार दिया जाएगा। इन चिट्ठियों में उस पुलिस अधिकारी का नाम होने की बात कही जा रही है जिसमें दोनों भाइयों को मारने की साजिश रची थी। वह अधिकारी कौन है, यह रहस्य बना हुआ है। यह लिफाफे सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और मुख्यमंत्री के नाम थे।
पांच मेडिकल कॉलेजों की फीस
स्वास्थ्य विभाग ने राज्य के पांच निजी मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों के लिए शैक्षणिक शुल्क तय कर दिया है। विभाग की अधिसूचना में हॉस्टल फीस, ट्रांसपोर्ट फीस, मेस चार्ज आदि शामिल नहीं है। ये शुल्क संबंधित संस्थानों की ओर से शिक्षण शुल्क निर्धारण समिति से पारित कराना होगा। समिति के निर्णयानुसार ही कॉलेज संचालकों को वह राशि लेनी होगी। राज्य कैबिनेट में लिए गए निर्णय के आलोक में विभाग के संयुक्त सचिव सुधीर कुमार की ओर से अधिसूचना जारी की गई है। जो फीस तय हुई वह इस तरह है:
- राधा देवी जागेश्वरी मेडिकल कॉलेज मुजफ्फरपुर-79 लाख 8 हज़ार
- श्री नारायण मेडिकल कॉलेज अस्पताल, सहरसा-13 लाख
- लॉर्ड बुद्धा कोसी मेडिकल कॉलेज, सहरसा-12 लाख
- नेताजी सुभाष इंस्टीट्यूट, बिहटा-15 लाख 50 हज़ार
- मधुबनी मेडिकल कॉलेज, मधुबनी-95 लाख 3 हज़ार
भागलपुर दंगा पीड़ितों के पैसे
भास्कर की खास खबर है: सृजन के घोटाले बाजों ने भागलपुर दंगा पीड़ितों की अनुदान राशि के 55 लाख रुपए भी डकारे। अख़बार लिखता है सृजन के घोटालेबाजों ने वर्ष 1989-90 के भागलपुर दंगा पीड़ितों की अनुदान राशि में भी सेंधमारी की है। 84 के सिख विरोधी दंगा पीड़ितों की तरह यहां भी अनुदान मिलना था। इसमें 1.37 करोड़ रुपये जिले में बचे थे। इनमें से 55.17 लाख रुपये घोटालेबाजों ने डकार लिए। इसका खुलासा तब हुआ जब गृह मंत्रालय ने राज्य के गृह विभाग की विशेष शाखा से अनुग्रह राशि का वर्षवार ब्योरा और उपयोगिता प्रमाण पत्र मांगा।
कुछ और सुर्खियां
- भाजपा को झटका, कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार
- पहले ममता के भतीजे को समन भेजा, फिर वापस लिया, विवाद में फंसी सीबीआई
- बिना ऑनलाइन रिकॉर्ड वाली जमीन के दाखिल-खारिज पर रोक
- आरक्षण की 50% सीमा खत्म हो: राहुल गांधी
- बिहटा में बालू खनन रोकने गए अफसरों पर हमला, महिला अधिकारी को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा, पुलिस भी छोड़कर भागी
- बठिंडा में जवान ने ही साथियों को मारा था
- अध्ययन: बिहार में प्रदूषण से बढ़ रहा है तापमान
- डीडीसी को दोबारा जिला परिषद के एग्जक्यूटिव ऑफिसर का प्रभार
- शर्मनाक: लंदन से लौटे बेटे ने दिल्ली में संपत्ति के लिए मां को जलाकर मार डाला
अनछपी: जहरीली शराब से मौत होने के बाद परिवार वालों को मुआवजा नहीं देने पर नीतीश कुमार लंबे समय से अड़े थे। उनका कहना था कि जो पिएगा, वह मरेगा। उनकी यह बात बार-बार दोहराई जाती है। इस मामले में नीतीश कुमार को अपने सहयोगी दल भाकपा माले से भी बार-बार सवाल का सामना करना पड़ रहा था जबकि भारतीय जनता पार्टी तो उन्हें लंबे समय से कटघरे में खड़ा कर रही थी। सवाल नैतिकता का है कि अगर किसी परिवार का कमाने वाला मारा जाए तो उसका पालन पोषण कैसे हो? दूसरा सवाल यह है कि अगर कोई गैरकानूनी हरकत करते मारा जाता है तो क्या उसके परिवार को मुआवजा मिलना चाहिए? इन सवालों के बीच यह हकीकत भी थी कि मारे जाने वाले अक्सर लोग बेहद गरीब परिवार के थे। ऐसे लोगों के लिए शराब पीना एक लत बन चुकी थी और इसका फायदा उठाते हुए शराब माफिया जहरीली शराब बेचते थे। ज़हरीली शराब से हुई मौतों का बहाना बनाकर कई लोग बिहार से शराबबंदी को खत्म कर आना चाहते हैं। यह एक अलग मुद्दा है लेकिन मुआवजे का मामला राजनीतिक लाभ-हानि का बनता जा रहा था, इसलिए नीतीश कुमार ने मुआवजा देने का फैसला किया जिसके लिए उन्हें एक बार फिर ‘पलटने वाले’ के ताना का सामना है। कहा जा रहा है कि एक बार फिर उन्होंने पलटी मारी है। नीतीश कुमार की राजनीतिक मजबूरी है कि उन्हें मुआवजे का ऐलान करना पड़ा लेकिन शराबबंदी पर टिके रहना उनके लिए बेहद जरूरी हालांकि मुश्किल काम है। वैसे भी मुआवजे के लिए जिन शर्तों को लागू किया गया है उन्हें पूरा करना भी एक मुश्किल काम होगा।
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