हर शाख़ पे उल्लू बैठा है……..अंजामे मुसलमां क्या होगा?
सैयद जावेद हसन
शॉक बहराइची का एक मशहूर शेर है –
बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था
हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा
ये एक ऐसा शेर है जो किसी खास सूरते हाल को बयान करने के लिए तंज के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। ये अलग बात है कि बिहार में मुसलमानों के हालात को समझने और समझाने के लिए किसी और शेर का भी सहारा लिया जा सकता है। लेकिन चूंकि मैं साहित्य जैसे गुलिस्तां का परिंदा नहीं हूं, इसलिए मेरे जेहन में कोई और शेर नहीं आया।
बात बिहार विधान परिषद् में अल्पसंख्यक आवासीय विद्यालय को लेकर उठाए गए सवाल से शुरू करते हैं। 23 जुलाई को प्रश्नकाल के दौरान गुलाम गौस ने कहा कि सरकार जल्द से जल्द अल्पसंख्यक रिहाइशी स्कूलों के कयाम के फैसले और एलान को अमली जामा पहनाए। इसपर जवाब देते हुए अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहम्मद जमां खां ने कहा कि अल्पसंख्यक रिहाइशी स्कूलों में जल्द पढ़ाई शुरू हो जाएगी। इसपर गुलाम गौस नाराज हो गए और कहा कि मंत्री महोदय ऐसा ही जवाब पिछले दो साल से दे रहे हैं। इस बहस में एक दूसरे एमएलसी डॉक्टर खालिद अनवर कूद पड़े। उन्होंने आरोप लगाया कि अफसरान अक्लीयतों के काम में अड़ंगा लगा रहे हैं।
दिलचस्प बात ये है कि मंत्री जमां खां और दोनों एमएलसी गुलाम गौस और खालिद अनवर एक ही पार्टी जनता दल यू से ताल्लुक रखते हैं। तीनों हर बात में नीतीश कुमार की कसीदाख्वानी करते हैं और नीतीश कुमार पिछले कई साल से बिहार के मुख्यमंत्री हैं। इसके बावजूद पांच साल में एक भी अल्पसंख्यक आवासीय विद्यालय में न तो बच्चों का एडमिशन हुआ और न ही पढ़ाई शुरू हुई। बिहार स्टेट सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अलहाज मोहम्मद इरशादुल्लाह के एक अखबारी बयान के मुताबिक, बीबी कनीज फातिमा वक्फ स्टेट नंबर 485, इसराहा, जिला दरभंगा और अंजुमन इस्लामिया वक्फ स्टेट नंबर 1257, किशनगंज में अक्लीयती रिहायशी स्कूल का निर्माण हो चुका है। जबकि शीया वक्फ बोर्ड की जमीन पर पूर्णिया में स्कूल बनाने की कार्रवाई चल रही है। इस बीच, 19 जुलाई, 2024 को हुई कैबिनेट की बैठक में तीन और जिलों में अक्लीयती रिहाइशी स्कूलों के निर्माण की मंजूरी दी गई। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के तहत नालंदा के बिहारशरीफ के देवीसराय में 560 सीट वाले अक्लीयती रिहाइशी स्कूल की इमारत के लिए 56 करोड़ 61 लाख 3 हजार रुपये, जमूई के खेरा सर्किल के बानपुर में 560 सीट वाले अक्लीयती रिहाइशी स्कूल की स्थापना के लिए 55 करोड़ 91 लाख 67 हजार रुपये और कैमूर जिले में चैनपुर सर्किल के नौघरा में 560 सीट वाले अक्लीयती स्कूल के क्याम के लिए 58 करोड़ 17 लाख 99 हजार रुपये की मंजूरी दी गई।
उर्दू दैनिक इंक्लाब ने 2021 में अक्लीयती रिहाइशी स्कूल पर जावेद अखतर की एक तफ्सीली रिपोर्ट छापी थी। रिपोर्ट के मुताबिक अक्लीयतों के लिए बिहार के हर जिले में अक्लीयती रिहाइशी स्कूल खोले जाने की योजना नीतीश सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-19 में शुरू की थी। स्कूल खोलने के लिए जमीन मुहैया कराने की जिम्मेदारी बिहार स्टेट सुन्नी और शीया वक्फ बोर्ड को सौंपी गई थी। गुलाम गौस के हवाले से उर्दू दैनिक कौमी तंजीम में छपी रिपोर्ट के मुताबिक अक्लीयती रिहाइशी स्कूलों में अक्लीयती तबका के बच्चों की मुफ्त तालीम और रिहाइश का पुख्ता इंतजाम किया जाना है। साथ ही, अक्लीयती छात्र-छात्राओं को हर तरह की सहूलत भी दस्तयाब कराई जानी है ताकि वे आला तालीम हासिल करके अपनी जिंदगी बेहतर बना सकें। गुलाम गौस का कहना है कि जब दरभंगा, किशनगंज और पूर्णिया जिले में अक्लीयती रिहायशी स्कूल के लिए इमारतें तैयार हो चुकी हैं और इनमें से दो स्कूलों की इमारतों का उद्घाटन भी हो चुका है तो बच्चों की पढ़ाई क्यों नहीं शुरू हो रही है? उनका ये भी कहना है कि 13 जिलों में अक्लीयती रिहायशी स्कूल कायम करने के लिए 481 पद स्वीकृत किए जा चुके हैं तो उन पर अब तक नियुक्ति क्यों नहीं की गई?
इस बारे में जब हमने एआईएमआईएम के विधायक अखतरुल ईमान से बात की तो उन्होंने अपने खास अंदाज में जवाब दिया।
अखतरुल ईमान कहते हैं कि अक्लीयतों जुड़ी और भी कई समस्याएं हैं जो बरसों बाद भी हल नहीं हुईं। इसके लिए वो अक्लीयतों की लीडरशिप को ही जिम्मेदार ठहराते हैं।
अखतरुल ईमान मुस्लिम बुद्धिजीवियों की राजनैतिक समझ पर भी सवाल उठाते हैं। उन्होंने कहा कि मुस्लिम बुद्धिजीवियों की तंगनजरी की वजह से पूरी मुस्लिम आबादी हाशिये पर चली गई।
हम वापस लौटते हैं बिहार विधान परिषद् में। गुलाम गौस जिस गुलिस्तां में खड़े होकर अक्लीयती रिहाइशी स्कूल का ईशू उठा रहे थे, खुद वहां भी न तो उर्दू की हालत अच्छी है और न ही मुसलमान की। उर्दू रिपोर्टर को हटा दिया गया और तीन उर्दू रिपेार्टर के ओहदों पर हिन्दी रिपोर्टर बहाल कर दिए गए। पिछले दस साल में तीन चेयरमैन हुए- ताराकांत झा, देवेशचंद्र ठाकुर और अवधेश नारायण सिंह। जानकार बताते हैं कि इन तीनों के कार्यकाल में विभिन्न पदों पर बड़ी संख्या में नियुक्तियां हुईं। इन नियुक्तियों में मुसलमान को ढूंढना भूसे के ढेर में से सूई तलाश करने के बराबर है। वहीं, हरा-भरा उर्दू सेक्शन लगभग बर्बाद हो गया। बर्बादीये गुलिस्तां की अक्कासी के लिए अगर आपके जेहन में शौक बहराइची के अलावा किसी और का शेर आ रहा हो तो हमें जरूर बताइये।
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