एक झटके में बिहार के सभी थाने हो गए उर्दू मुक्त। नीतीश मौन।
बिहार लोक संवाद
बिहार में हालात बेहद नाजुक हैं। जैसे-जैसे नीतीश कुमार भाजपा की गोद में समाते जा रहे हैं, बिहार की हालत उत्तर प्रदेश जैसी होती जा रही है। दावा किया जा रहा है कि मौजूदा नीतीश कुमार मुसलमानों पर बेहद मेहरबान है, लेकिन सच्चाई बिलकुल वैसी नहीं है। आगे बढ़ने से पहले गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान का अभिभाषण सुनिये जिसमें वो मुसलमानों के ताल्लुक से बिहार सरकार की तारीफ करते नजर आ रहे हैं। ये अभिभाषण उन्होेंने 28 फरवरी को बिहार विधानमंडल के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए दिया।
अब हम तस्वीर के दूसरे रुख की तरफ आते हैं। इसकी शुरूआत भी हम आरिफ मोहम्मद खान के संबोधन से ही करते हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इन तमाम थानों में एक-एक सहायक उर्दू अनुवादक यानी असिस्टेंट उर्दू ट्रोंस्लेटर की तैनाती होनी थी। बस, दो-चार दिनों में कामयाब उम्मीदवार ज्वायन करने ही वाले थे कि ऐन मौके पर नीतीश सरकार ने पलटी मारते हुए थानों के दरवाजे उर्दू ट्रांस्लेटरों के लिए बंद कर दिए। ये वही नीतीश सरकार है, जिसने हर एक थाने में एक-एक सहायक उर्दू अनुवादक की नियुक्ति के लिए 2018 में एक हजार 64 पदों के सृजन की मंजूरी दी थी। सवाल ये है कि थानों में उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति का कंसेप्ट क्या था? दरअसल, इसके पीछे एक बड़ी सोच थी और ये सोच 2005 से पहले, राष्ट्रीय जनता दल की सरकार के दौर में डेवलप हुई थी। बहैसियत दूसरी सरकारी जबान, उर्दू को फरोग देने के साथ-साथ उर्दू आबादी को इंसाफ दिलाने के लिए हर थाने में एक उर्दू दारोगा बहाल करने की घोषणा की गई थी। सत्ता परिवर्तन और सियासी दांव-पेंच की वजह से ये घोषणा फाइलों में बंद पड़ी रही। लेकिन, 17 अप्रील, 2018 को सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने एक अहम फैसला करते हुए एक हजार 7 सौ 65 पदों के सृजन की मंजूरी दी। ये सभी पद मंत्रिमंडिल सचिवालय विभाग, उर्दू निदेशालय के ‘‘बिहार राज्य उर्दू अनुवादक संवर्ग नियमावली 2016’’ के तहत क्रियेट किए गए थे। इन्हीं एक हजार 7 सौ 65 पदों में से 1 हजार 64 पद पर सहायक उर्दू अनुवादक नियुक्त करके बिहार भर के थानों में तैनात किए जाने थे। कैबिनेट में लिए गए फैसले को 29 मई, 2018 को नोटिफाई भी कर दिया गया। कमाल की बात ये है कि उन दिनों नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से ही सरकार चला रहे थे। लेकिन फर्क ये था कि तब नीतीश कुमार भाजपा के सामने नतमस्तक नहीं थे। नोटिफिकेशन के बाद नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया अपनाई गई। बिहार स्टाफ सेलेक्शन कमीशन ने विज्ञापन प्रकाशित किया, लोगों ने आवेदन दिया। पीटी परीक्षा हुई, पीटी का रिजल्ट निकला। फिर मुख्य परीक्षा हुई। तीन बार से ज्यादा काउंसिलिंग हुई। रिजल्ट तैयार हुआ। रिजल्ट के मुताबिक, चयनित उम्मीदवारों के लिए थाने की लिस्ट तैयार भी हो गई थी। सूत्रों के अनुसार, अनुमोदन के लिए तत्कालीन राजभाषा निदेशालय के निदेशक मोहम्मद इमरान ने फाइल मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के अपर मुख्य सचिव एस सिद्धार्थ के पास भेज भी दी थी। लेकिन, इसी बीच एक बड़ी साजिश हो गई। इस साजिश का पता तब चला जब 25 फरवरी को हुई कैबिनेट बैठक की ब्रीफिंग सामने आई। ब्रीफिंग खुद एस सिद्धार्थ ने की।
साजिश ये हुई कि सहायक उर्दू अनुवादक के तमाम 1 हजार 46 पदों को सरेंडर कर दिया गया और अंतिम रूप से चयनित तमाम उम्मीदवारों को थाने में तैनात करने की बाजय उन्हें अन्य कार्यालयों में भेजने का फरमान जारी कर दिया गया। कैबिनेट नोट के मुताबिक, अब ये सभी सहायक उर्दू अनुवादक तमाम कलेक्ट्रियेट के जिला उर्दू भाषा सेल, अनुमंडल कार्यालयों, प्रखंड कार्यालयों और अंचल कार्यालयों में ड्यूटी बजाएंगे। मतलब ये, कि जिस मकसद से सरकार ने इन सहायक उर्दू अनुवादकों को बहाल किया था, वह उससे पलट गई। थाने में सहायक उर्दू अनुवादक नियुक्त किए जाने के दो मकासिद थे। पहला मकसद तो ये था कि उर्दू आबादी की तरफ से उर्दू में लिखी जो भी शिकायत थाने में आएगी, उसका हिन्दी में अनुवाद सहायक उर्दू अनुवादक करेंगे। फिर, प्रॉपर-वे में हिन्दी में एफआईआर दर्ज होगी और प्रक्रिया के अनुसार, आगे की कार्रवाई होगी। दूसरा मकसद ये था कि पुलिस विभाग के जो भी सर्कुलर हिन्दी में होंगे उनका उर्दू में तर्जुमा सहायक उर्दू अनुवादक करेंगे और फिर उर्दू अनूदित सर्कुलर को उर्दू आबादी तक पहुंचाया जाएगा।
सैद्धांतिक रूप से ये एक शानदार कंसेप्ट था। लेकिन भाजपाई मंत्रियों से लबालब नीतीश सरकार को ये कंसप्ट पसंद नहीं आया क्योंकि ये सरकार नहीं चाहती कि बिहार के एक हजार से ज्यादा थानों में, यानी हर एक थाने में, एक-एक उर्दू जानकार मौजूद हो। इसके पीछे की वजह आप आसानी से समझ सकते हैं। इसीलिए एक झटके में तमाम थानों को उर्दू मुक्त कर दिया गया।
इस मामले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राजद के एमएलसी कारी मोहम्मद सोहैब ने कहा कि नीतीश सरकार उर्दू की हत्या कर रही है।
इन सबके बीच, मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के उर्दू निदेशालय की तरफ से बिहार के अलग-अलग जिलों में उर्दू सेमिनार और मुशायरे का आयोजन धूम-धाम से जारी है। ये तस्तीरें औरंगाबाद की हैं। आपको याद दिला दें कि ये वही मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग है जो नीतीश कुमार के जिम्मे है, और इसी मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के निवनियुक्त सहायद उर्दू अनुवादक थानों की बजाय अलग-अलग जगहों पर शिफट कर दिए गए।
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