सरकार को बैर सिर्फ़ शिक्षा और इबादत से है

सैयद जावेद हसन

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार से लाॅकडाउन हटा दिया है। रात्रि 7 बजे से सुबह 5 बजे तक कफर््यू का एलान किया है। 15 जून तक के लिए घोषित दिशा निर्देश के अनुसार सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक दुकानें खुलेंगी। 50 प्रतिशत कर्मियों के साथ सरकारी और गैर सरकारी दफ्तर खुलेंगे। सार्वजनिक परिवहन 50 प्रतिशत यात्रियों के साथ चलेंगे। निजी वाहन और पैदल चलने पर से पाबंदी हटा दी गई है। होम डिलीवरी की शर्त पर रेस्त्रां खुलेंगे।

मतलब कि आप सब कुछ कर सकते हैं। लेकिन सिर्फ दो काम नहीं कर सकते। शिक्षा संस्थानों में जाकर पढ़ाई-लिखाई नहीं कर सकते और इबादतगाहों में जाकर सामूहिक इबादत नहीं कर सकते।

इस तरह के फैसले के पीछे सरकार कुछ खास संदेश देना चाहती है। वह यह बताना चाहती है कि आप पढ़-लिखकर हमारे लिए चुनौती मत बनिये और न ही धार्मिक एकता का धौंस जमाइए।

पढ़े-लिखे लोग ही सरकार के फैसले पर सवाल उठाते हैं और समाज को दिशा दिखाने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। वहीं, धर्म लोगों को संगठित करता है।

पिछले एक साल से सरकार इन दोनों ही संस्थाओं को नियंत्रित कर रही है और स्वास्थ्यहित में लोग मौन सहमति देते आ रहे हैं। वरना कोरोना का जितना संक्रमण होना था, हुआ ही। आॅक्सीजन, अस्पताल, वेंटीलेटर का जो संकट होना था, हुआ ही। जितने लोगों को मरना था, मरे ही। जिसे चुनाव जीतना था, वह जीता ही।

आने वाले दिनों में अगर सरकार शिक्षा ओर धर्म को लेकर कुछ अजीबो ग़रीब फैसले ले, तो हैरान नहीं होना चाहिए।

लेखक बिहार लोक संवाद डाॅट नेट के मुख्य संपादक हैं।

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