छ्पी-अनछपी: नीतीश का दावा- सारा काम मेरा, मोदी के खिलाफ चुनाव आयोग पहुंची कांग्रेस

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। बिहार में विकास का काम किसने किया, इस बात की बहस आज के अखबारों में प्रमुखता से छपी है। नीतीश कुमार ने दावा किया है कि सारा काम उन्होंने किया और तेजस्वी यादव के बारे में कहा कि उन्होंने कोई काम नहीं किया। कांग्रेस के घोषणा पत्र को मुस्लिम लीगी बताने के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत की गई है, हालांकि इस खबर को अपनी तवज्जो नहीं मिली है।

प्रभात खबर की सबसे बड़ी सुर्खी है: बिहार में विकास के सारे काम मेरे कार्यकाल में हुए: मुख्यमंत्री। भास्कर की पहली सुर्खी है: हमने किया VS हमने किया। इसके तहत दो बयान हैं। 1. नीतीश बोले- राजद झूठा प्रचार करता है, इन लोगों ने अब तक कुछ काम नहीं किया। 2. तेजस्वी का जवाब- जब उनके साथ थे, तब कहते थे अच्छा काम कर रहा है। अख़बार लिखता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लालू प्रसाद पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी व नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पर इकट्ठे भड़के। नीतीश सोमवार को मीडिया से मुखातिब थे। उनसे पूछा गया था तेजस्वी का दावा है कि उन्होंने बिहार में नौकरियां दीं। नीतीश ने कहा- बिल्कुल गलत। नीतीश ने कहा- “हम उसको (तेजस्वी को) कुछ दिन के लिए अपने साथ लाए थे। इन लोगों ने कुछ नहीं किया। वह (तेजस्वी) सिर्फ झूठा प्रचार करता है। बिहार की बेहतरी, विकास से लेकर नौकरी देने यानी सारा काम हमने किया।

नीतीश कहते थे, इसे ही संभालना है

नीतीश कुमार के आरोप के जवाब में तेजस्वी यादव ने कहा- अब हम गलत और भाजपा के लोग ठीक हो गए हैं। ढाई महीने पहले तक वह हमारी पीठ ठोकते थे और सभी से यही कहते थे कि अब यही बिहार का भविष्य है। इसे ही संभालना है। तेजस्वी ने कहा- जब हम उनके साथ थे, तब वह बोलते थे कि नई पीढ़ी के लोग साथ आ गए हैं तो सबको नौकरियां दे रहे हैं। कहते थे- तेजस्वी अच्छा काम कर रहा है। 10 लाख नौकरी इसका वादा था, पूरा कर रहा है। तेजस्वी ने कहा- आदरणीय नीतीश जी डेढ़ दो महीने पहले तक प्रधानमंत्री मोदी व अमित शाह को तुम ताम करते हुए कहते थे कि ऊ लोग झूठे प्रचार करता रहता है।

मोदी के खिलाफ शिकायत

जागरण के अनुसार कांग्रेस ने उसके घोषणा पत्र की तुलना मुस्लिम लीग से करने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ निर्वाचन आयोग से सोमवार को शिकायत दर्ज कराई है। पार्टी ने इस मामले में कार्रवाई की मांग की है। प्रधानमंत्री ने अपनी चुनावी रैलियों में कहा था कि कांग्रेस के घोषणा पत्र में मुस्लिम लीग की सोच की छाप है। कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने आयोग के समक्ष मामले के साथ कई अन्य मामलों को भी उठाया। इनमें सरकारी इमारत और कॉलेजों में प्रधानमंत्री की तस्वीरों का उपयोग शामिल है। मांग की गई है कि चुनाव में समान अवसर बनाए रखने के लिए इन्हें हटाया जाए। इधर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि भाजपा नेताओं के वैचारिक पूर्वजों ने मुस्लिम लीग का साथ दिया था।

बीएड डिग्री वाले प्राइमरी टीचरों को राहत

जागरण की सबसे बड़ी सुर्खी है: बीएड डिग्री धारक प्राथमिक शिक्षकों की नहीं जाएगी नौकरी: सुप्रीम कोर्ट। सुप्रीम कोर्ट ने प्राथमिक शिक्षक पद पर भर्ती के लिए बीएड डिग्री धारकों को अयोग्य मानने के 11 अगस्त 2023 के फैसले को स्पष्ट करते हुए कहा है कि फैसले से पहले हुई भर्तियों पर इसका असर नहीं होगा। जिन बीएड डिग्री धारक प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति फैसला आने से पहले हो चुकी थी और उनकी भर्ती के विज्ञापन में बीएड को भी योग्यता में शामिल माना गया था, उन लोगों की नौकरी बने रहेगी। बिहार के लगभग 22000 शिक्षकों को इस फैसले से राहत मिलेगी।

भड़काऊ पोस्ट पर नज़र

हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी खबर है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सोशल मीडिया पर भड़काऊ टिप्पणी करने वाले बिहार पुलिस की रडार पर होंगे। ऊल-जलूल बातें तथा किसी की भावना को आहत करने पर कार्रवाई तय है। ऐसे लोगों की पहचान कर कार्रवाई के लिए आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) में सोशल मीडिया यूनिट का गठन किया गया है। आचार संहिता लागू होने के बाद से गठित इस इकाई ने अब तक ऐसे 28 संवेदनशील मामलों को दर्ज किया है। धार्मिक उन्माद से जुड़े मामले नालंदा, नवादा समेत कुछ अन्य जिलों में अधिक सामने आए हैं। इस यूनिट के पास रोजाना औसतन 10 शिकायतें इस तरह की आती हैं। नालंदा साइबर थाने में जो मामला दर्ज किया गया है, वह धार्मिक उन्माद से जुड़ा है। कुछ लोग गाने के माध्यम से दूसरे के धर्म पर आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। जिसके एकाउंट से फेसबुक पर अपलोड किया था, उसकी तलाश चल रही है।

बच्चे के पालन पोषण के लिए पैसे की मांग दहेज नहीं: कोर्ट

जागरण की खबर है कि पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि पति अपने नवजात बच्चे के पालन पोषण और भरण पोषण के लिए पत्नी के पैतृक घर से धन की मांग करता है तो ऐसी मांग दहेज अधिनियम 1961 के अनुसार दहेज की परिभाषा के दायरे में नहीं आती है। न्यायाधीश विवेक चौधरी की एकल पीठ ने नरेश पंडित द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकृति देते हुए यह निर्णय सुनाया। याचिकाकर्ता ने आईपीसी की धारा 498 ए और दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 4 के तहत सजा को हाई कोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता पर ₹10000 मांगने का आरोप था।

शिक्षा विभाग की बैठक में फिर नहीं आए वीसी

शिक्षा विभाग में सोमवार को आयोजित बैठक में एक बार फिर किसी भी विश्वविद्यालय के कुलपति नहीं पहुंचे। विभाग की ओर से बुलायी गयी यह लगातार छठी बैठक थी, जिसमें कुलपतियों ने भाग नहीं लिया है। राजभवन की ओर से कुलपतियों के बैठक में शामिल होने के लिए इस बार भी अनुमति नहीं दी गयी थी, जिस कारण कोई नहीं आये।

कुछ और सुर्खियां

  • ईद और रामनवमी पर नहीं होगा शिक्षकों का प्रशिक्षण
  • सऊदी अरब में ईद का चांद नहीं दिखा, बिहार में आज या कल दिख सकता है चांद
  • झारखंड में कुड़मी को आदिवासी दर्जा देने पर सुनवाई के लिए हाई कोर्ट तैयार
  • महाराष्ट्र में मराठी साइन बोर्ड नहीं लगा तो 1 मई से लगेगा दुगना प्रॉपर्टी टैक्स
  • पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र सिंह बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल होंगे
  • दिल्ली में धरना दे रहे 10 टीएमसी नेता हिरासत में लिए गए

अनछपी: नवजात बच्चे के पालन पोषण के लिए पत्नी के मायके से मांगी गई रकम को दहेज मानने से पटना हाई कोर्ट ने इंकार तो कर दिया लेकिन यह नहीं बताया कि ऐसी मांग जायज है या अत्याचार। न्यायाधीश विवेक चौधरी की एकल पीठ ने नरेश पंडित द्वारा आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकृति देते हुए यह फैसला सुनाया। याचिकाकर्ता ने आईपीसी की धारा 498 ए और दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 4 के तहत दी गई अपनी सजा को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

समस्तीपुर के याचिकाकर्ता नरेश पंडित का विवाह सृजन देवी के साथ 1994 में हिंदू रीति रिवाज के अनुसार हुआ था। इस दौरान उन्हें तीन बच्चे हुए- दो लड़के और एक लड़की। पत्नी ने आरोप लगाया कि बेटी के जन्म के 3 साल बाद याचिकाकर्ता ने लड़की की देखभाल और भरण पोषण के लिए उसके पिता से ₹10000 की मांग की। मांग पूरी न होने पर पत्नी को प्रताड़ित किया गया। ऐसा लगता है कि हाई कोर्ट ने तकनीकी आधार पर पैसे मांगने वाले पति को सजा से बरी कर दिया और इसे दहेज मानने से इनकार कर दिया। यह सही है कि पैसे की हर मांग को दहेज प्रताड़ना के दायरे में नहीं रखा जा सकता लेकिन अगर इस मांग के लिए मजबूर किया जाए यो यह प्रताड़ना है, इससे किसे इंकार हो सकता है? आम समझ यह है कि दहेज की मांग शादी करने के लिए की जाती है, लेकिन यह बात भी आम है की शादी के कुछ सालों बाद तक दहेज के नाम पर ही पैसे या अन्य सामान की मांग की जाती है। इसलिए इस मामले में पैसे की मांग को तकनीकी आधार पर दहेज ना करार दिया जाए लेकिन क्या इस तरह पैसे की मांग करना जुर्म नहीं है? खासकर तब जब पत्नी यह आरोप लगा रही है कि पैसे की मांग पूरी न होने पर उसे प्रताड़ित किया गया। बच्चों की परवरिश की व्यवस्था करना मां-बाप की जिम्मेदारी होती है ना कि पत्नी के मायके वालों की। जरूरत पड़ने पर कर्ज या मदद की मांग करना अलग बात है लेकिन उसे हक के तौर पर मांगना कहीं से उचित करार नहीं दिया जा सकता। हाईकोर्ट के विस्तृत फैसले की जानकारी तो नहीं लेकिन अगर हाई कोर्ट यह भी कहता कि इस तरह पैसे की मांग करना सही नहीं है तो शायद बेहतर होता। हाई कोर्ट का काम सिर्फ तकनीकी आधार पर फैसला देना है बल्कि समाज के लिए स्वस्थ संदेश देना भी उसकी जिम्मेदारी मानी जानी चाहिए।

 

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