हेडलाइंस

21वीं सदी की लोक कथाएं

सैयद जावेद हसन

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शाम पांच बजे के बुलेटिन का वक्घ्त हो चला था और मेरे दिमाग में लगभग तय हो गया था कि इसमें किन-किन खबरों को शामिल करना है।
अलग-अलग जिलों से आई खबरों से मुतल्लिक वीजुअल्स को डाउनलोड करके मैंने आज के डेट वाले फोल्डर्स में सेव भी कर लिया था। कम्प्यूटर के डेस्कटॉप पर रखी वर्ड फाइल पर खबरों को कट पेस्ट भी कर दिया था।
अब मुझे क्यू शीट पर स्लग लिखना था और डेटा इंट्री ऑपरेटर को खबरें डिक्टेट करानी थीं।
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आधा घंटे के बुलेटिन के लिए कुल तेरह छोटी-बड़ी खबरों का इंतेखाब करके मैंने न्यूज एडिटर से, उनके चौम्बर में जाकर, क्यू-शीट एप्रूव करा लिया।
वापस न्यूजरूम में आकर मैंने तमाम खबरों को संपादित रूप में डीईओ को डिक्टेट कराया।
उधर, वीडियो एडिटर संपादित समाचारों के अनुसार, वीजुअल्स और बाइट्स एडिट करके एक दूसरे डीईओ के पास भेजता जा रहा था।
डीईओ टेक्स्ट और वीडियो को रन-डाउन पर चढ़ाता जा रहा था।
आखिर में छह हेडलाइंस भी तैयार हो गए।
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बुलेटिन प्रसारित होने में सिर्फ पंद्रह मिनट बचे थे कि न्यूज एडिटर का फोन आया। उन्होंने कहा कि दिल्ली से चार बड़ी और स्पेशल पैकेज स्टोरीज आ रही है, उन्हें लेना है।
हम सभी एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
बड़ी मेहनत से बुलेटिन तैयार हुई थी जिसका अब कोई कोई मतलब नहीं रह गया था।
वक्त बहुत कम बचा था। एक तीसरे डीईओ ने जल्दी-जल्दी चारों पैकेज स्टोरीज को आधिकारिक वेबसाइट से डाउनलोड किया।
तमाम स्टोरीज सरकार का गुणगान करने वाली थीं।
सरकारी न्यूज चौनल था, चुनाव का समय था, इसलिए पैकेज स्टोरीज कों हर हाल में चलाना था।
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नये सिरे से बुलेटिन तैयार करने के लिए नया क्यू-शीट बना।
क्यू शीट के मुताबिक रन-डाउन तैयार हुआ। नये सिरे से हेडलाइंस बनीं। चार नयी और बड़ी पैकेज स्टोरीज को शामिल करने की वजह से बुलेटिन की अवधि पैंतालीस मिनट हो गई।
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बुलेटिन प्रसारित होने में अब सिर्फ दस मिनट रह गए थे और महज चंद लम्हों में तय करना था कि किन-किन खबरों को रन डाउन से निकाल बाहर करना है ताकि बुलेटिन की अवधि आधा घंटा रह जाए।
सबसे पहले उन खबरों को हटाया गया, जो पिछले बुलेटिन में शामिल थीं।
इसके बाद उन खबरों को हटाया गया जो विपक्षी नेताओं से संबंधित थीं।
फिर उन खबरों को हटाया गया जो सॉफ्ट नेचर की थीं और अगले बुलेटिन में जा सकती थीं।
हटाई गई खबरों में कुछ ऐसी भी थीं जिनपर रिपोर्टर ने काफी मेहनत से काम किया था।
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घटाटे-घटाटे अब सिर्फ वही खबरें रह गईं जो हेडलाइंस वाली थीं।
यानी छह खबरें, छह हेडलाइंस।
टीवी पत्रकारिता का उसूल है कि उन खबरों को नहीं हटा सकते जो हेडलाइंस बनती हैं।
और, हेडलाइंस वही खबरें बनती हैं जो बहुत अहम ‘मानी’ जाती हैं।
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बुलेटिन प्रसारित होने के बाद घर पहुंचते-पहुंचते दिमाग काफी थक चुका था।
पत्नी चाय और स्नैक्स लेकर आई तो कुछ राहत महसूस हुई।
इधर-उधर की गुफ्तगू करने के बाद वो कहने लगी, ‘मंझला वाला भाई आपा के पास गया था। पता नहीं उसकी बीवी ने क्या उलटा-सीधा समझाया कि आपा से बहुत लड़ा भी और रिश्ता भी तोड़ आया।’
मैने चौंक कर पत्नी को देखा।
आजकल लोगों को पता नहीं क्या हो गया है। रिश्ते निभाना उन्हें बोझ सा महसूस होता है। जरा-जरा सी बात में रिश्ता तोड़ देते हैं। खुद हमारे परिवार में भी कई लोग एक दूसरे से अलग हो चुके हैं।
कुछ लड़-झगड़ के। कुछ खामोशी से।
कुछ रिश्ते ऐसे रह गए हैं जिनके होने न होने का एहसास तक नहीं होता।
तक्लीफ तब ज्यादा होती है जब नये-नवेले रिश्ते गर्मजोशी से कबूल कर लिए जाते हैं और बड़े जतन, खुलूस से निभाए जा रहे बरसों पुराने रिश्ते एक झटके में खत्म कर दिए जाते हैं।
सिर्फ वही रिश्ते रह जाते हैं जो बेहद जरूरी ‘माने’ जाते हैं।
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चाय पीते-पीते अचानक मेरे जेहन में आज शाम पांच बजे वाली बुलेटिन घूम गई।
बुलेटिन में भी सिर्फ वही खबरें रह गई थीं जो हेडलाइंस के लिए जरूरी ‘मानी’ गई थीं!
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12 जनवरी, 2025

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