बिहार में मुसलमान चौथी बड़ी ताकत लेकिन लीडरशिप में फिसड्डी, हौसला गौहर खान जितना भी नहीं

सैयद जावेद हसन

जिस रोज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इजराइल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू को विश्वास दिला रहे थे कि ‘भारत की जनता मुश्किल घड़ी में इजराइल के साथ मजबूती से खड़ी है’, उसके ठीक एक दिन पहले हिन्दुस्तान टाइम्स ने पेज-3 की एक खबर प्रकाशित की थी। खबर फिल्म अभिनेत्री गौहर खान के X पर कमेंट से जुड़ी थी। कमेंट फिलिस्तीनी आर्म्ड ग्रुप हमास और इजराइली सेना के बीच चल रही जंग के संदर्भ में था।

गौहर खान ने लिखा था, ‘जालिम कब से मजलूम हो गया???? दुनिया के लिए सुविधाजनक नजरिया!!!!! उत्पीड़न के बरसों बरस के इतिहास से अनभिज्ञ….’

इस कमेंट पर लोगों ने गौहर खान की खूब लानत-मलामत की। लेकिन वो जरा भी विचलित नहीं हुईं। गौहर ने ऐसे लोगों का इन शब्दों में जवाब दिया: ‘हमास एक टेरोरिस्ट आउटफिट है, ठीक है, और इसी तरह, इजराइल टेरोरिस्ट स्टेट है। इसलिए कि उन्होंने पहले भी किया है और इस बार भी बिना किसी उकसावे के हमला किया है, 1948 से बिलकुल गलत तरीके से जमीन पर कब्जा कर रखा है….अब हमास के इस हमले को फिलिस्तीनियों पर और हमले के लिए खुला रास्ता के तौर पर देखा जा रहा है। तो क्या फिलिस्तीनियों की जिंदगी की कोई अहमीयत नहीं है?’

हौसले की पहचान: X पर गौहर खान का पोस्ट

ये है गौहर खान का हौसला। गौहर ने इस बात की फिक्र नहीं की कि उनके इस नजरिये के लिए फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें भविष्य में कौनसी कीमत चुकानी पड़ेगी। उस फिल्म इंडस्ट्री में जहां द कश्मीर फाइल और केराला स्टोरी जैसी फिल्में बनती हैं और उन्हें हर स्तर से प्रमोट किया जाता है।

लेकिन मैं गौहर खान का जिक्र क्यों कर रहा हूं?

किसकी कितनी ताकत
बिहार में हाल ही में जाति आधारित गणना हुई है। इसकी रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में ईबीसी की आबादी 36.01 फीसद, ओबीसी की आबादी 27.12 फीसद, अनुसूचित जाति की आबादी 19.65 फीसद और मुसलमानों की आबादी (इराकी बिरादरी को मिलाकर) 19.20 फीसद है। इस तरह मुसलमान प्रदेश में चौथी बड़ी ताकत है। लेकिन इस आबादी का सियासी लीडर कौन है? नीतीश? लालू? तेजस्वी? कोई और? या कोई नहीं?

नीतीश् ने मीटिंग क्यों बुलाई?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 7 अक्तूबर को सीएम आवास में एक मीटिंग बुलाई थी जिसमें तमाम 38 जिलों से आए मुस्लिम समाज के तकरीबन 400 लोगों ने शिरकत की थी। मीटिंग के सूत्रधार एमएलसी डॉ. खालिद अनवर थे। लगभग तीन घंटे तक चली मीटिंग की कोई प्रेस रिलीज जारी नहीं की गई। फिर भी, अखबारों में छपी खबरें एक जैसी थीं। लहजा एक जैसा था। समझाने वाला। सतर्क करने वाला। धमकी देने वाला।

लिफाफा देखकर मजमून का अंदाजा इन हेडलांइन्स से लगाया जा सकता है:
-भाजपा की टारगेट पाल्टििक्स से सतर्क रहें, समझदारी से निपटें (दैनिक जागरण)
-अल्पसंख्यकों के लिए हम काम काम करते रहे हैं (हिन्दुस्तान)
-हम अक्लीयतों के लिए काम करते रहेंगे: नीतीश
-वजीरे आला ने अक्लीयती रहनुओं के साथ मीटिंग की (कौमी तंजीम)
-नीतीश की क्यादत पर मुसलमानों का इजहारे एतिमाद (पिंदार)
-नीतीश मीट्स मुस्लिम लीडर्स (हिन्दुस्तान टाइम्स)
-हमने सभी की फलाहो बहबूद के लिए काम किया है, आगे भी करेंगे (इंक्लाब)

असली लीडर: [बाएं से] नीतीश कुमार, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मो. जमां खां और एमएलसी डॉ. खालिद अनवर

खबरों की तफ्सील से स्पष्ट होत है कि नीतीश चाहते हैं कि मुसलमान उनके साथ ही बंधा रहे। कहीं इधर-उधर न जाए। ऑपशन के रूप में वो असदुद्दीन की पार्टी एआईएमआईएम के बारे में बिलकुल न सोचे। भारतीय जनता पार्टी से डरता रहे। और फाइनली, उनके नेतृत्व के प्रति न सिर्फ आश्वस्त रहे, बल्कि गुणगान भी करता रहे।

कौमी तंजीम लिखता है: वजीरे आला ने अक्लीयती बिरादरी से कहा कि वे ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से होशियार रहें। उन्होंने कहा कि ये बीजेपी की बी-टीम है और आने वाले चुनावों में वोट हासिल करने के लिए विभिन्न स्थानों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेंगे। ऐसे में उनका मकसद कभी पूरा नहीं होने देना चाहिए।

पिंदार लिखता है: सैंकड़ों की तादाद में शरीक मुस्लिम सियासतदानों, समाजी कारकुनों, आलिमों और रहनुमाओं ने इस मीटिंग में शिरकत करके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की क्यादत पर अपने भरपूर एतिमाद का इज्हार किया और स्वीकार किया कि उनके नेतृत्व में जहां एक तरफ बिहार ने चहुंमुखी विकास किया और तमाम इलाकों और वर्गों तक तरक्की की रौशनी पहुंची वहीं दूसरी तरफ, लंबे समय से शोषण और अत्याचार से पीड़ित मुसलमानों को दूसरे समुदायों जैसा जीवन के तमाम क्षेत्रों में आगे बढ़ने का अवसर मिला।

दैनिक जागरण नीतीश के हवाले से लिखता है: वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ रहते हुए भी उनके दल के प्रत्याशियों को अल्पसंख्यक समाज के लोगों ने 50 प्रतिशत से अधिक वोट दिया था। मेरे चलते भाजपा को भी अल्पसंख्यक समाज के लोगों का 20 प्रतिशत वोट मिला था। पर अब भाजपा बदल गई है।

भीड़ की खुशी: मीटिंग में शिरकत करने आए मुसलमान

इन खबरों से लगता है कि बिहार के मुसलमानों के पास अपना कोई दिमाग नहीं है। उनके सोचने और समझने की सलाहियत खत्म हो चुकी है। भेड़-बकरियों की तरह जिधर चाहें चरा सकते हैं। नीतीश जब चाहें भाजपा को मुसलमानों का वोट दिलवा सकते हैं। और वो जब चाहें एआईएमआईएम को उसी भाजपा की बी-टीम कहकर मुसलमानों को खौफजदा कर सकते हैं।

एक जमाने में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र मुसलमानों के सबसे बड़े शुभचिंतक हुआ करते थे। इतने बड़े कि उन्हें ‘मौलाना जगन्नाथ’ कहा जाने लगा था।

बाद के दिनों में लालू प्रसाद यादव मुसलमानों के सबसे बड़े हमदर्द कहलाए। इतने बड़े कि मुसलमानों के ‘मसीहा’ हो गए।

अब जमाना नीतीश कुमार का है। पिछले चालीस साल में बिहार के मुसलमान अपना कोई सर्वसम्मत बड़ा मुस्लिम लीडर नहीं ढूंढ़ जाए। इसके उलट ब्राह्मणों ने डॉ. मिश्र को, यादवों ने लालू-तेजस्वी को और कोयरी-कुर्मी ने नीतीश-उपेन्द्र कुशवाहा को अपना लीडर चुन लिया।

चूक गई मुस्लिम आबादी
जातीय आधारित गणना के फौरन बाद मुसलमानों के विभिन्न वर्गांे का नेतृत्व करने वाले लोगों को एक मंच पर आकर आगे की रणनीति तैयार करनी चाहिए थी। सत्ता और विपक्ष को अपनी ताकत का एहसास कराना चाहिए था। इसके लिए 15 लाख की आबादी वाली इराकी बिरादरी की मुस्लिम जाति के रूप में नहीं की गई गिनती का एक मुद्दा भी था। लोकसुभा चुनाव के मद्देनजर ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले संसदीय क्षेत्रों में मुस्लिम उम्मीदवार के लिए सहमति बनाने पर विचार-विमर्श हो सकता था। लेकिन अलग-अलग जातियों, मसलकों और संगठनों में बंटे मुसलमान यह मौका गंवा बैठे। इसके उलट सियासत के खिलाड़ी नीतीश कुमार ने अपने सामने मुद्ठी भर मुसलमानों को बुलाकर मीडिया के माध्यम से यह संदेश दे दिया कि वही मुसलमानों के भी सर्वसम्मत नेता हैं। एक तरह से उन्होंने मुसलमानों पर दबाव बना दिया।

यही वजह है कि बैठक में शरीक किसी नेता ने मुसलमानों की किसी समस्या का जिक्र नहीं किया। किसी तरह के विरोध-प्रतिरोध की आवाज नहीं उठी। हजारों उर्दू टीईटी शिक्षकों और सैंकड़ों उर्दू अनुवादकों की लटकी बहाली, स्कूलों से खत्म होती जा रही यूनिटों, उर्दू में पाठ्यपुस्तकों की अनुपलब्धता, उर्दू अकादमी-उर्दू परामर्शदातृ समिति का खाली होना, मदरसा बोर्ड की स्वायत्तता को खत्म कर दिया जाना, वक्फ की संपत्तियों पर सरकारी कब्जा जैसे अनेक मुद्दे थे, जिनपर नीतीश के रूबरू होकर बात हो सकती थी। लेकिन जैसे सभी किसी एहसान तले दबे थे। किसी में कुछ कहने का हौसला ही नहीं था।

नीतीश से मुलाकात करके लौटे ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अनिसुर्रहमान कासमी बिहार लोक संवाद से कहते हैं, ‘नीतीश कुमार ने मुसलमानों का 70 फीसद काम कर दिया है। बाकी बचे 30 फीसद काम भी हो ही जाएंगे।’

सियासी विडंबना
पिछले बिहार विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में मुस्लिम लीडरशिप की उम्मीद जगी थी। एआईएमआईएम के पांच मुस्लिम विधायक जीतकर आए थे। लेकिन के बाद दिनों में चार विधायक लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो गए। अकेले रह गए अखतरुल ईमान ने बिहार लोक संवाद से खास बातचीत करते हुए कहा था, ‘आरजेडी ने मुस्लिम लीडरशिप को खत्म करने का गुनाह किया है।’

गुनाह आरजेडी ने विधायकों को खरीदकर किया या विधायकों ने बिक कर किया, यह बहस का विषय हो सकता है। लेकिन सच्चाई तो यही है कि सियासी लीडरशिप के नाम पर फिलहाल मुसलमानों के हाथ खाली हैं। खाली हाथ की पहचान धीरे-धीरे याचक की हो जाती है।

बिहार के 2 करोड़ 31 लाख 49 हजार 925 मुसलमानों की विडंबना यही है।

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