छ्पी-अनछपी: यूपी के सड़क हादसे में बिहार के 16 लोगों की मौत, “मुस्लिम औरतों को गुज़ारा भत्ते का हक़”

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। उत्तर प्रदेश में शिवहर से दिल्ली जा रही बस की टैंकर से टक्कर में बिहार के 16 लोगों की मौत हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में कहा है कि मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता पाने का हक है। बांका के थानाध्यक्ष के पास 69 लाख से अधिक की अवैध संपत्ति मिली है। पटना में नल से गंगाजल की सप्लाई करने की तैयारी चल रही है। बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेजों मैं दाखिले के लिए सीट से भी कम आवेदन आए हैं। आज के अखबारों की यह अहम खबरें हैं।

भास्कर के अनुसार उत्तर प्रदेश के उन्नाव में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर बुधवार तड़के बड़ा हादसा हो गया। यहां एक यात्री बस जोजिकोट गांव के पास सड़क किनारे खड़े दूध के टैंकर से जा भिड़ी। ‘नमस्ते बिहार’ नाम की डबल डेकर स्लीपर बस मंगलवार को दोपहर 1:30 बजे शिवहर से खुली थी, उसे दिल्ली जाना था। यह दुर्घटना भर में 4:30 बजे हुए जिसमें कुल 18 यात्रियों की मौत हो गई। इनमें 16 लोग बिहार के हैं। मरने वालों में पूर्वी चंपारण के एक ही परिवार के 6 लोग थे। बस का फिटनेस सर्टिफिकेट और इंश्योरेंस फेल हो चुका था। बस ड्राइवर के बारे में बताया गया कि उसने एक ढाबे पर शराब पी थी। हादसे में दोनों चालकों की भी मौत हो गई है। हादसे का शिकार हुई जैन ट्रेवल्स की बस ( यूपी 95 टी 4720 ) महोबा एआरटीओ कार्यालय में रजिस्टर्ड है।

मुस्लिम महिलाओं को गुज़ारा भत्ते का हक़: कोर्ट

जागरण की सबसे बड़ी सुर्खी है: शाहबानो 2.0: तलाक़शुदा मुस्लिम महिलाएं भी गुजारा भत्ता की हकदार। अखबार लिखता है कि सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने ऐतिहासिक फैसले में भारतीय राजनीति को गहरे से प्रभावित करने वाले शाहबानो मामले की याद दिलाते हुए एक बार फिर रेखांकित किया कि मुस्लिम महिलाएं भी गुज़ारा भत्ते की हकदार हैं। न्यायमूर्ति बीवी नगरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दूरगामी असर वाले फैसले में व्यवस्था दी है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पति से गुज़ारा भत्ता मांग सकती हैं। अदालत ने कहा कि गुजारा भत्ता खैरात नहीं, बल्कि महिलाओं का अधिकार है। पीठ ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को सीआरपीसी की धारा-125 के धर्मनिरपेक्ष और धर्म तटस्थ प्रावधान पर तरजीह नहीं दी जाएगी।

क्या है मामला?

याचिकाकर्ता अब्दुल समद ने तेलंगाना हाईकोर्ट में दलील दी थी कि दंपति ने वर्ष 2017 में पर्सनल लॉ के अनुसार तलाक ले लिया था। उसके पास तलाक प्रमाणपत्र भी है, लेकिन परिवार अदालत ने इस पर विचार नहीं किया और उसे पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिलने पर समद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील वसीम कादरी की दलीलें सुनने के बाद 19 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। कादरी ने दलील दी थी कि सीआरपीसी की धारा-125 के मुकाबले 1986 का कानून मुस्लिम महिलाओं के लिए ज्यादा फायदेमंद है।

थानेदार के पास 69 लाख की अवैध संपत्ति

प्रभात खबर की सबसे बड़ी खबर के अनुसार आय से अधिक संपत्ति के मामले में निगरानी ब्यूरो की टीम ने बांका जिले के शंभूगंज थाना प्रभारी बृजेश कुमार के शंभूगंज स्थित सरकारी आवास व कार्यालय और उनके पैतृक घर बेगूसराय में एक साथ छापेमारी की। मूल रूप से बेगूसराय के चकिया थाना के अमरपुर गांव के निवासी और 2009 बैच के दारोगा बृजेश कुमार प्रमोशन पाकर इंस्पेक्टर बने हैं। बुधवार की शाम शुरू हुई यह कार्रवाई देर रात तक जारी रही। इंस्पेक्टर बृजेश कुमार के खिलाफ अब तक की जांच में आय से 69 लख रुपए से अधिक की संपत्ति का ब्यौरा मिल चुका है।

पटना में नल से गंगाजल

हिन्दुस्तान की खास खबर है कि पटना में गिरते भू-जलस्तर से होनेवाले पेयजल संकट से निपटने के लिए राज्य सरकार ने बड़ी तैयारी शुरू कर दी है। नगर विकास एवं आवास विभाग की ओर से इस बाबत कार्ययोजना तैयार की गई है। योजना के तहत राजधानीवासियों को पीने के लिए गंगा जल उपलब्ध कराया जाएगा। घरों में इसकी आपूर्ति से पहले पानी को शुद्ध किया जाएगा। इसपर काम शुरू कर दिया गया है। इसकी डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) को अक्टूबर तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा।

इंजीनियरिंग कॉलेजों में खाली सीटें

भास्कर की खबर है: बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेजों में सीटों से भी कम आवेदन, पिछले वर्ष 7942 सीटें खाली रह गई थीं। बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेजों में नामांकन के लिए बच्चे कम दिलचस्पी ले रहे हैं। इस बार भी राज्य के इंजीनियरिंग कॉलेजों में सीटों से कम आवेदन मिले हैं। सरकारी आंकड़े के अनुसार 2024-25 में 13675 सीटों पर नामांकन होना है जिसके लिए करीब 12000 आवेदन प्राप्त हुए हैं। सत्र 2023 में राज्य के 38 सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में 13675 सीटों पर मात्र 5733 सीटों पर ही एडमिशन हो सका था।

नीतीश कुमार फिर बोले- कहिए तो पैर छू लूं

जागरण के अनुसार अधिकारियों की सुस्ती और निर्माण एजेंसियों की देरी से आजिज़ज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने निर्माण एजेंसी के एक इंजीनियर से कहा, कहिए तो हम आपका पैर छू लेते हैं। ऐसा कहते हुए वह कुर्सी से उतरे और इंजीनियर की ओर बढ़ चले लेकिन अधिकारियों ने हाथ जोड़कर उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। यह घटना बुधवार की है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जेपी गंगा पथ के कंगन घाट के हिस्से का लोकार्पण करने पहुंचे थे। उन्हें इस सड़क के अगले हिस्से के निर्माण में देरी पर ताज्जुब हुआ। मुख्यमंत्री का तमतमाया चेहरा देख पथ निर्माण विभाग के अपर मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत हाथ जोड़कर बीच में आ गए।

कुछ और सुर्खियां

  • रुपौली विधानसभा उपचुनाव में 52.75 फीसद वोटिंग, 13 जुलाई को फैसला
  • एनटीए का दावा- नीट यूजी में पटना पेपर लीक और गोधरा में धांधली का व्यापक असर नहीं
  • कोसी तटबंध पर चार जगह दबाव से बाढ़ के हालात, गोपालगंज में 21 गांव पानी से घिरे
  • बिहार में बिजली गिरने से 21 लोगों की मौत
  • भारत के धुरंधर बल्लेबाज और पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर 75 वर्ष के हुए
  • बड़ी बीमा कंपनियों का टर्म इंश्योरेंस 10% महंगा हुआ
  • रेलवे ग्रुप डी भर्ती परीक्षा के पेपर लीक मामले में यूपी के दो विधायकों के खिलाफ वारंट
  • उत्तराखंड में भारी बारिश से दरक रहे पहाड़, एक हफ्ते में 245 लैंडस्लाइड

अनछपी: तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अखबारों ने जिस तरह बढ़ा चढ़ा कर पेश किया है वह हैरत में डालने वाला है। कई अखबारों ने इसकी तुलना शाह बानो मामले से की है और यह जताने का प्रयास किया है कि राजीव गांधी के समय में मुस्लिम महिलाओं के संबंध में जो कानून बनाया गया था वह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से ठंडे बस्ते में चला गया है। कानून के कई जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला पहली बार नहीं दिया बल्कि इससे पहले भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत इस तरह का फैसला दिया जा चुका है। ताजा मामले की संक्षिप्त जानकारी यह है कि अब्दुल समद ने सुप्रीम कोर्ट में यह अर्जी दी थी कि मुस्लिम पर्सनल लॉ और 1986 के कानून के मुताबिक उसे अपनी तलाक़शुदा बीवी को सिर्फ 3 महीने की इद्दत की अवधि तक गुजारा भत्ता देना है जबकि फैमिली कोर्ट और हाई कोर्ट ने उसे तब तक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था जब तक कि उसकी तलाकशुदा पत्नी दोबारा शादी न कर ले। फिलहाल ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह कहा है कि वह फैसले का अध्ययन कर रहा है लेकिन कांग्रेस ने एक बात यह कही कि इस फैसले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। कांग्रेस ने इस मामले में साजिश के तहत और जानबूझकर राजनीति करने के विरुद्ध सावधान किया है। कांग्रेस ने बीजेपी का नाम नहीं लिया लेकिन ऐसा लगता है कि भारतीय जनता पार्टी इस मामले का राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। अब सवाल यह है कि संसद द्वारा पारित 1986 का कानून आखिर किस काम का है? सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ऐसा लगता है कि उसकी नजर में 1986 के कानून के ऊपर सीआरपीसी की धारा 125 को तरजीह दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में कानूनी चर्चा तो होती रहेगी लेकिन इतना तय है कि देश में ऐसे तत्व मौजूद हैं जो चाहते हैं कि मुसलमानों के बचे खुचे पर्सनल लॉ का नामोनिशान मिटा दिया जाए। ऐसे तत्वों को महिलाओं के अधिकार से कोई मतलब नहीं है, उनसे सावधान रहने की जरूरत है।

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