छपी-अनछपी: हिजाब पसंद का मामलाः जस्टिस धूलिया, 11 जिलों के 7841 गांव सूखाग्रस्त घोषित
बिहार लोग संवाद डॉट नेट, पटना। बिहार में कम बारिश की वजह से सूखे की स्थिति पर सरकार के उठाये गए कदम और सुप्रीम कोर्ट में हिजाब के मुद्दे पर खंडित फैसले की खबर अखबारों में बड़ी सुर्खियां बनी हैं।
हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी खबर है: 11 जिलों के 7841 गांव सूखाग्रस्त घोषित। इसमें बताया गया है कि मानसून के दगा देने के कारण बिहार में 1 जून से लेकर 31 अगस्त तक उन 39% कम बारिश हुई। यह खबर जागरण में भी लीड है: 11 जिलों के 96 प्रखंडों सूखाग्रस्त घोषित। यह फैसला बिहार कैबिनेट की बैठक में लिया गया जिसके तहत प्रभावित परिवार को ₹3500 की विशेष सहायता मिलेगी। इसके लिए सरकार परिवारों का सर्वे कर आएगी।
अखबारों की दूसरी सबसे बड़ी खबर हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला है। हिन्दुस्तान की सुर्खी है: हिजाब रोकने पर जज एकमत नहीं। जागरण ने लिखा है: हिजाब पर अब बड़ी पीठ में होगी सुनवाई। इन खबरों में बताया गया है कि जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब पहनने को अनुच्छेद 25 के तहत आने वाले धार्मिक प्रथा में शामिल नहीं माना है। दूसरी तरफ जस्टिस सुधांशु धूलिया का कहना है कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने गलत रास्ता अपनाया है। उनके अनुसार हिजाब पहनना अंततः पसंद और नापसंद का मामला है इससे कम या ज्यादा कुछ और नहीं। भास्कर ने दोनों जजों की बातों पर अलग-अलग सुर्खी लगाई है। पहली सुर्खी जस्टिस गुप्ता की बात पर है: खास पहनावे की अनुमति धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ। दूसरी सुर्खी जस्टिस धूलिया की दलील पर है: छात्राओं की शिक्षा जरूरी, यह नहीं कि वे क्या पहनें।
हिन्दुस्तान में पहले पेज पर खबर है: पीएफआई के पूर्व अध्यक्ष को राहत नहीं। पीएफआई के पूर्व अध्यक्ष अबू बकर ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपनी जमानत के लिए अर्जी दी थी। 70 साल के अनुभव करने अपनी बीमारी का इलाज कराने के लिए जमानत की मांग की थी लेकिन जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने याचिका सुनने से इनकार कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने अर्जी वापस लेने की इजाजत मांगी। अदालत ने याचिका को वापस मानते हुए खारिज कर दिया।
इधर, भास्कर की खबर है कि फुलवारी शरीफ कांड के पांचों आरोपियों की न्यायिक हिरासत की अवधि को 17 अक्टूबर तक बढ़ा दिया है। इस साल जुलाई से बेउर जेल मंे बंद इन आरोपियों को गुरुवार को उन्हें एनआईए की विशेष अदालत में पेश किया गया था जहां से उन्हें वापस जेल भेज दिया गया। इन आरोपियों में अतहर परवेज, नरूद्दीन जंगी, जलालुद्दीन और अरमान मलिक पर आरसी 31/2022 के तहत और मरगूब दानिश पर आरसी 32/2022 के तहत केस चल रहा है। उन पर धार्मिक वैमनस्य फैलाने और देश विरोधी कामों में संलिप्त होने का आरोप है।
राजनीतिक उठापटक के शिकार नेपाल में चार मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया गया है। यह चारों मंत्री जनता समाजवादी पार्टी से जुड़े थे। इनकी पार्टी ने नेपाली प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा से अलग दूसरे गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया है, इसलिए उन्हें बर्खास्त किया गया।
एक साल से बिना स्थायी कुलपति के चल चल रही मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी यूनिवर्सिटी को प्रोफेसर मोहम्मद आलमगीर संभालेंगे। उनके कुलपति बनाए जाने की खबर सभी अखबारों में है। मूल रूप से समस्तीपुर के रहने वाले प्रोफेसर आलमगीर यूजीसी के पूर्णकालिक सदस्य रहे हैं।
जहानाबाद के काको अंचल के सीओ दिनेश कुमार ₹100000 घूस लेते निगरानी की टीम द्वारा गिरफ्तार किए गए हैं। उन पर जमीन म्यूटेशन के लिए घूस लेने का आरोप है।
विपक्षी राज्यों में ईडी की कार्रवाई विवाद का विषय रही है। अब ईडी ने छत्तीसगढ़ के एक आईएएस अधिकारी समीर विश्नोई और दो अन्य लोगों को मनी लॉन्ड्रिंग के केस में गिरफ्तार किया है। छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने इसे डराने की कोशिश बताया है। हिन्दुस्तान में यह खबर पहले पेज पर है।
शहरी निकाय चुनाव में अति पिछड़ा के आरक्षण पर सियासी बयानबाजी जारी है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने सरकार पर निकाय चुनाव लटकाने का आरोप लगाया है। उधर, जदयू के अपने पोल खोल कार्यक्रम मैं ललन सिंह ने कहा कि बिना आरक्षण कोई चुनाव नहीं करा सकता। इस मुद्दे पर उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने राजद का रुख साफ किया है। उनका कहना है कि अति पिछड़ा के आरक्षण के साथ ही निकाय चुनाव होगा। यह बयानबाजी आज के अखबारों प्रमुखता से छपी है।
तेजस्वी यादव ने, जिनके पास स्वास्थ्य मंत्रालय भी है, एनएमसीएच का अचानक निरीक्षण किया है। उन्होंने वहां दवा और बेड की कमी दूर करने का निर्देश दिया। इस वक्त बिहार में डेंगू कहर मचाये हुए है, ऐसे में सरकारी अस्पतालों पर नजर रखना बेहद जरूरी है।
अनछपी: स्कूलों में हिजाब लगाकर जाना कभी विवादास्पद नहीं रहा था। कर्नाटक की सरकार ने इस पर पाबंदी लगाकर अदालतों के लिए एक गैरजरूरी मुद्दा खड़ा कर दिया। इसके बाद कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मायूसी भरा फैसला दिया जिससे कई लड़कियों ने स्कूल जाना छोड़ दिया। इस फैसले में हिजाब बैन को जारी रखा गया। अब सुप्रीम कोर्ट में भी इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट निर्णय नहीं हुआ लेकिन जस्टिस सुधांशु धूलिया ने जो तर्क दिए हैं उस पर सरकार को अवश्य गौर करना चाहिए। इसीलिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कर्नाटक सरकार से यह कहा है कि वह हिजाब से बैन हटा ले। इस फैसले की व्याख्या दोनों तरफ से हो सकती है। पहला यह कि सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को सही नहीं ठहराया है और दूसरा यह कि उसे गलत भी नहीं कहा है क्योंकि 2 जजों की खंडपीठ ने खंडित निर्णय दिया है। चूंकि हिजाब बैन से लड़कियों की पढ़ाई प्रभावित हुई है इसलिए उचित यही प्रतीत होता है कि इस बैन को तत्काल हटाया जाए और लड़कियों की पढ़ाई जारी रहने दी जाए। जस्टिस धूलिया ने इसे व्यक्तिगत पसंद या नापसंद का मामला बताया है, इसलिए जरूरी है कि जिसे हिजाब पहनना पसंद है उसे अनुमति दी जाए लेकिन यह मुद्दा सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को वोट हासिल करने के लिए ध्रुवीकरण करने में मददगार लगता है, इसलिए इसकी उम्मीद कम ही है। वैसे, कर्नाटक सरकार अगर हिजाब बैन पर अपना फैसला बदल दे तो सुप्रीम कोर्ट का बहुमूल्य समय बच सकता है और समाज में सद्भावना का संदेश भी जाएगा।
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