छ्पी-अनछपी: मंत्रियों को हटाने वाले बिल पर बवाल, ऑनलाइन मनी गेमिंग पर पाबंदी
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। 30 दिन की हिरासत में जाने के बाद पीएम-सीएम और मंत्रियों को पद से हटाने वाले बिल पर बवाल हुआ है और राहुल गांधी ने कहा है कि हम उस दौर में जा रहे जब राजा का मूड ही कानून था। ऑनलाइन मनी गेमिंग पर पूरी तरह पाबंदी लगाने के लिए कानून लाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्यपाल विधानसभा से दूसरी बार बिल वापसी पर उसे राष्ट्रपति को नहीं भेज सकते। रूस ने कहा है कि वह भारत को 5% ज्यादा सस्ता तेल देगा। और, जानिएगा कि सस्पेंशन के बाद ड्यूटी पर लौटे सिवान नगर परिषद के एग्जीक्यूटिव ऑफिसर के तीन ठिकानों पर छापे पड़े हैं।
पहली ख़बर
हिन्दुस्तान के अनुसार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में तीन संविधान संशोधन विधेयक पेश किए। इनमें पीएम, सीएम या किसी भी मंत्री को गंभीर आपराधिक मामलों में 30 दिन की गिरफ्तारी या हिरासत पर हटाने का प्रावधान है। विपक्ष ने हंगामा करते हुए तीनों विधेयक वापस लेने की मांग की और इसकी प्रतियां फाड़ दीं। गृहमंत्री ने संविधान (130वां संशोधन) विधेयक-2025, संघ राज्य क्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक- 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 को पेश किया। इस पर विपक्षी सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया। तृणमूल और कांग्रेस के सांसदों ने शाह को रोकने की कोशिश की। इसके बाद शाह ने तीसरी पंक्ति से विधयेक को पेश किया। विपक्ष से असदुद्दीन औवेसी, मनीष तिवारी, एनके प्रेमचंद्रन, धर्मेंद्र यादव और केसी वेणुगोपाल ने विरोध किया। तृणमूल सांसद आसन के सामने घूम-घम कर नारेबाजी कर रहे थे। केसी वेणुगोपाल के विधेयक को फाड़े जाने के बाद विपक्षी सांसद उत्तेजित हो गए और कई सांसदों ने बिल की प्रतियां फाड़कर हवा में उड़ाई। कागज के टुकड़े गृह मंत्री के सामने फेंके।
राजा का मूड ही कानून वाला दौर: राहुल
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर से संसद में पेश किए गए संविधान संशोधन विधेयकों का विपक्ष ने जोरदार विरोध किया। भास्कर के अनुसार नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा, “हम इस दौर में जा रहे हैं जब राजा मर्जी से किसी को भी हटा सकता था। आपका चेहरा पसंद नहीं तो ईडी से केस करा दिया। 30 दिन में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव व्यक्तिगत खत्म।” राहुल विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के सम्मान समारोह में बोल रहे थे। राहुल ने कहा, “जो सदन में जोरदार बोलते थे, चुप हो गए। इसके पीछे बड़ी कहानी है। वे छिपे क्यों हैं? हम ऐसे दौर में हैं, जहां पूर्व उपराष्ट्रपति एक शब्द नहीं बोल सकते।” कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा बिल एक कांस्टेबल को सरकार बदलने की ताकत देने जैसा है, यह जनादेश का अपमान है। समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने कहा कि गृह मंत्री नैतिकता की बात कर रहे हैं और जिन्हें कहा था चक्का पिसिंग उन्हें महाराष्ट्र में डिप्टी सीएम बना कर घूम रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि यह बिल सुपर इमरजेंसी से भी खतरनाक है। यह हिटलरशाही हमला लोकतंत्र को कुचल देगा। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और केरल के सीएम पिनराई विजयन ने कहा यह बिल विपक्ष को दबाने और लोकतंत्र खत्म करने का षड्यंत्र है।
ऑनलाइन मनी गेमिंग पर पूरी तरह पाबंदी
जागरण के अनुसार देश के 45 करोड़ से अधिक लोगों को ऑनलाइन गेमिंग के चंगुल से आजाद करने के लिए लोकसभा ने प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025 को पारित कर दिया है। बुधवार दोपहर पेश इस बिल को बिना किसी बहस के पारित कर दिया गया क्योंकि विपक्षी सदस्यों ने चुनाव आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर चर्चा की मांग करते हुए नारे लगाए। बिल के कानून बनने पर पैसे से जुड़ी सभी ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लग जाएगा। इस कानून के अमल में आने पर लोग गूगल प्ले स्टोर से पैसे से जुड़े ऑनलाइन गेमिंग ऐप को डाउनलोड नहीं कर पाएंगे। ऑनलाइन गेमिंग के चक्कर में पड़े लोग सालाना 20 हज़ार करोड़ का नुकसान उठाते हैं जिस वजह से उनका घर तबाह हो रहा है, वह आत्महत्या कर रहे हैं और उनका बैंक अकाउंट खाली हो रहा है। बिना पैसे के खेले जाने वाले ई स्पोर्ट्स और सोशल गेमिंग को सरकार प्रोत्साहित करेगी।
राज्यपाल दूसरी बार बिल वापसी पर राष्ट्रपति को नहीं भेज सकते: सुप्रीम कोर्ट
प्रभात खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को विधायकों की मंजूरी देने के संबंध में राज्यपाल की शक्तियों पर केंद्र से सवाल करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि कोई भी विधेयक राज्य विधानसभा द्वारा पारित करके राज्यपाल को भेजे जाने की स्थिति में वह उसे विचार के लिए राष्ट्रपति को नहीं भेज सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर या तो अपनी अनुमति देनी होती है या वह अपनी अनुमति रोक सकता है या फिर उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज सकता है। इसके तहत राज्यपाल को विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानसभा में वापस भेजने का भी अधिकार है बशर्ते वह धन विधेयक ना हो। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ की यह टिप्पणी केंद्र के इस रुख के मद्देनजर आई है कि राज्यपाल विधानसभा द्वारा विधेयक को दूसरी बार पारित करने के बाद भी उसे राष्ट्रपति के पास भेजने के अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल विधानसभा से दूसरी बार बिल वापसी पर उसे राष्ट्रपति को नहीं भेज सकते। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर राज्यपाल विधेयकों को पुनर्विचार के लिए विधानसभा को लौटाए बिना ही उन्हें मंजूरी देने से इनकार कर देते हैं तो इससे निर्वाचित सरकार राज्यपाल की मर्जी पर निर्भर हो जाएगी। कोर्ट ने कहा कि अगर राजपाल अनिश्चितकाल तक स्वीकृति रोक सकते हैं तो बहुमत के समर्थन से गठित सरकारें एक अनिर्वाचित नियुक्त व्यक्ति की दया पर निर्भर रहेंगी।
भारत को 5% ज्यादा सस्ता तेल रूस
भास्कर के अनुसार अमेरिका से चलते टैरिफ वॉर के बीच रूस ने भारत के पक्ष में बड़ा ऐलान किया है। नई दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान रूस के उप व्यापार प्रतिनिधि एवगेनी ग्रिवा ने कहा कि रूस अभी भारतीय तेल खरीदारों को 5% की छूट देता है। अमेरिकी टैरिफ के बावजूद भारत ने रूस से तेल की खरीद सामान्य रखी है। उन्होंने कहा कि भारत के लिए मुश्किल वक्त है लेकिन रूस साथ खड़ा है। हम तेल खरीद पर भारत को 5% की ओर छूट दे सकते हैं जो भी एक्स्ट्रा खर्च पड़ेगा वह भी कम करेंगे।
सस्पेंशन से लौटे अधिकारी पर आय से अधिक संपत्ति मामले में छापेमारी
जागरण के अनुसार भ्रष्टाचार की लत एक बार लग जाए तो फिर आसानी से छूटती नहीं। आय से अधिक संपत्ति के मामले में घिरे कार्यपालक पदाधिकारी अनुभूति श्रीवास्तव की यही कहानी है। चार साल पहले आय से अधिक संपत्ति के आरोप में विशेष निगरानी इकाई ने कार्रवाई की। निलंबित हुए। अभी मामला कोर्ट में विचाराधीन है। इसी बीच उन्हें विभाग ने निलंबन मुक्त कर दिया। इसके बाद वापस मलाईदार कुर्सी मिली। रक्सौल, सहरसा होते हुए वर्तमान में सीवान नगर परिषद में कार्यपालक पदाधिकारी के पद पर हैं। इस बार आय से अधिक मामले में बुधवार को आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) ने छापेमारी की है। अनुभूति के लखनऊ के गोमती नगर, पटना के रुकनपुरा और सिवान नगर परिषद के ठिकानों पर देर शाम तक ईओयू की टीम छापेमारी करती रही। उनके ठिकानों से कैश गहने और जमीन से जुड़े दस्तावेज मिले हैं। कई ऐसे बैंक खाते भी मिले हैं जिनका जिक्र उनके सर्विस बुक में नहीं है। फिलहाल उनके खिलाफ आय से 78% अधिक संपत्ति की बात मालूम हो पाई है।
कुछ और सुर्खियां:
- बिहार सरकार ने साढ़े छह लाख बाढ़ प्रभावितों के खाते में भेज 7-7 हजार, कुल 456 करोड़ रुपए ट्रांसफर
- रेलवे ने छठ और दिवाली के अवसर पर 12000 ट्रेनें चलाने का ऐलान किया
- केंद्र सरकार हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस से जीएसटी हटाने की तैयारी में
- सीवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाबुद्दीन राजद के माइनॉरिटी सेल की नेशनल वाइस प्रेसिडेंट बनीं
- दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर हमला, हाथ और सर में चोट लगी, हमलावर राजकोट का राजेशभाई खीमजी गिरफ्तार
- इस सेशन से पूरे देश में मेडिकल यूजी और पीजी सिलेबस की 8000 सीटें बढ़ेंगी
अनछपी: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपनी इस बात से अपने भक्त लोगों को जरूर दिग्भ्रमित कर सकते हैं कि क्या जेल से सरकार चलाया जाना चाहिए लेकिन हकीकत यह है कि सरकार किसी को बेकसूर जेल में रख सकती है? इसके अनगिनत सबूत भारत में मिलते हैं। सबसे बड़ा उदाहरण दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का है जिन्हें जेल में डाला गया तो उन्होंने बहुत दिनों तक इस्तीफा नहीं दिया। सवाल यह है कि जब उन्हें मुजरिम करार नहीं दिया गया तो उन्हें जेल में क्यों डाला गया? केवल इल्जाम की बुनियाद पर किसी को जेल में डालने की जो असीमित शक्ति सरकार ने अपने पास कर ली है वह बहुत ही चिंता का विषय है। अमित शाह ने अपनी यह बात उस बिल के समर्थन में कही है जिसके तहत 30 दिनों के लिए अगर कोई मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री जेल में रहे तो उसे पद से हटा दिया जाएगा। अमित शाह इस नैतिकता की उम्मीद करते हैं कि अगर किसी को 30 दिन तक जेल में रहना पड़े तो उसे पद से हट जाना चाहिए लेकिन वह इस नैतिकता को कैसे निभाएंगे कि किसी बेकसूर को जेल में ना डाला जाए। दरअसल संसद को अब ऐसे कानूनों को पास करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है जो तानाशाही को कानूनी रूप देने का षड्यंत्र है। इसके लिए संविधान संशोधन बिल लाया गया है और उम्मीद यह है कि दो तिहाई बहुमत न होने के कारण यह बिल कानून न बन सके लेकिन इससे सरकार के इरादे जाहिर होते हैं। वैसे जोड़-तोड़ में माहिर इस सरकार ने अगर इस बिल को पास कर लिया तो बहुत ताज्जुब भी नहीं होगा। कहने के लिए तो इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जा रहा है लेकिन हम जानते हैं कि ऐसी समितियों में सरकारी दलों का बहुमत रहते हुए उनके खिलाफ कुछ नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट से भी आजकल लोगों की उम्मीदें कम होती जा रहे हैं। ऐसे में बस जनता की अदालत ही है जहां इंसाफ की गुहार लगाई जा सकती है। जनता को सरकार की ऐसी तानाशाही के खिलाफ उठ खड़ा होना चाहिए और हर उस कानून का विरोध करना चाहिए जो किसी एक पार्टी को सारे अधिकार दे दे और विपक्ष को पंगु बनाने वाला हो।
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