छ्पी-अनछपी: लॉटरी से पोस्टिंग के राजभवन के फैसले पर रोक, ठोस आधार पर हो तो वक़्फ़ क़ानून पर रोक
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। पटना हाई कोर्ट ने राजभवन द्वारा कॉलेज के प्रिंसिपल की नियुक्ति लॉटरी से करने के फैसले पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विवादास्पद वह कानून पर रोक के लिए ठोस आधार होना चाहिए। सिविल जज बनने के लिए 3 वर्ष की वकालत को जरूरी करार दिया गया है। झारखंड शराब घोटाले में एक आईएएस अधिकारी समेत दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
और, जानिएगा कि बिहार के कृषि मंत्री को खरीफ और रबी फसल के नाम पर क्या एतराज है।
पहली खबर
पटना हाई कोर्ट ने राज्य के कांस्टीट्यूएंट कॉलेजों में राजभवन द्वारा सुझाए गए लॉटरी सिस्टम से प्राचार्य की पोस्टिंग प्रक्रिया पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। प्रभात खबर ने इसके बारे में लिखा है कि कोर्ट ने राज्यपाल कार्यालय को कहा है कि अगर वह चाहे तो अधिसूचना में सुधार कर पुनः नए सिरे से कानून के अंदर नई अधिसूचना निकाल सकते हैं। जस्टिस राजेश वर्मा की एकल पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए संबंधित अधिसूचना पर रोक लगाने का आदेश जारी किया। इस मामले में अगली सुनवाई 16 जून को होगी। 16 मई को राजभवन की ओर से बिहार के 13 सरकारी विश्वविद्यालयों के वीसी को जारी पत्र के अनुसार अंगीभूत कॉलेज में प्राचार्य की पोस्टिंग लॉटरी से करने का निर्देश दिया था। इस अधिसूचना के खिलाफ सुहेली मेहता एवं अन्य ने हाई कोर्ट के ग्रीष्मकालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश कुमार की अदालत में अर्जी दी थी।
वक़्फ़ पर रोक के लिए ठोस आधार ज़रूरी
जागरण के अनुसार वक़्फ़ संशोधन कानून 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि हर कानून के पक्ष में संवैधानिकता की धारणा होती है। अंतरिम राहत पाने के लिए आपको एक बहुत ठोस और स्पष्ट कारण पेश करना होता है अन्यथा संवैधानिकता की धारणा बनी रहेगी। अदालत तब तक हस्तक्षेप नहीं करती जब तक की स्पष्ट मामला ना बनता हो। हालांकि याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कानून को मुसलमान के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन और वक़्फ़ संपत्तियों पर कब्जा करने वाला बताते हुए इस पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की। उधर केंद्र ने कानून को सही ठहराते हुए कहा कि वक़्फ़ अपने स्वभाव से ही एक धर्मनिरपेक्ष अवधारणा है और संवैधानिकता की धारणा को देखते हुए इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती।
सिविल जज बनने के लिए तीन साल की वकालत जरूरी
हिन्दुस्तान के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सिविल जज की नियुक्ति को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। कहा कि न्यायपालिका के सबसे निचले स्तर पर जज बनने के लिए न्यायिक सेवा भर्ती परीक्षा में शामिल होने के लिए वकील के तौर पर न्यूनतम तीन साल की वकालत यानी व्यावहारिक ज्ञान अनिवार्य है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि एलएलबी उत्तीर्ण करने के बाद सीधे अभ्यर्थी को न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, क्योंकि एक न्यायिक अधिकारी के लिए सिर्फ किताबी ज्ञान पर्याप्त नहीं होता है। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ जिला न्यायपालिका में नियुक्त होने वाले जज के लिए अदालतों के कामकाज के अनुभव के महत्व को रेखांकित करते हुए यह फैसला दिया। इसी के साथ पीठ ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन) पदों पर आवेदन के लिए तीन साल की न्यूनतम वकालत की अनिवार्यता बहाल कर दी।
झारखंड शराब घोटाले में आईएएस अफसर गिरफ्तार
भास्कर के अनुसार झारखंड में हुए शराब घोटाले की जांच कर रहे भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने मंगलवार को बड़ी कार्रवाई की। एसीबी ने उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग के पूर्व सचिव आईएएस अधिकारी विनय कुमार चौबे और उत्पाद विभाग के संयुक्त आयुक्त गजेंद्र सिंह को गिरफ्तार कर लिया। चौबे अभी पंचायती विभाग के प्रधान सचिव हैं। इन दोनों पर धोखाधड़ी कर झारखंड सरकार को 38 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाने का आरोप है। गिरफ्तारी से पहले एसीबी ने दोनों से करीब साढ़े घंटे तक पूछताछ की। फिर शाम 4:40 पर दोनों को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें एसीबी के विशेष कोर्ट में पेश किया गया जहां से दोनों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में होटवार जेल भेज दिया गया।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक नार्लीकर नहीं रहे
प्रख्यात खगोल वैज्ञानिक, विज्ञान संचारक और पद्म विभूषण से सम्मानित डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर का मंगलवार को पुणे में निधन हो गया। डॉ. नार्लीकर ने देर रात नींद में ही आखिरी सांस ली और मंगलवार सुबह अपनी आंख नहीं खोलीं। हाल में पुणे के एक अस्पताल में उनके कूल्हे की सर्जरी हुई थी। उनके परिवार में तीन बेटियां हैं। उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। डॉ. नार्लीकर को व्यापक रूप से ब्रह्मांड विज्ञान में उनके अग्रणी योगदान, विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के उनके प्रयासों के लिए जाना जाता है।
खरीफ और रबी शब्द पर कृषि मंत्री विजय कुमार को एतराज़
प्रभात खबर के अनुसार उपमुख्यमंत्री और कृषि मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि मुगल काल के समय शुरू हुए रबी और खरीफ शब्द का अब उपयोग नहीं होगा। इसके बदले शारदीय और बसंतीय फसल का उपयोग होगा। उन्होंने कहा कि मुगलों ने हमारी संस्कृति और भाषा खराब कर दी। श्री सिन्हा ने कृषि सचिव को इस संबंध में फाइल बनाने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि इसका प्रस्ताव व केंद्रीय कृषि मंत्री को भेजेंगे। वे मंगलवार को पटना के बामेती सभागार में राज्य स्तरीय खरीफ महा अभियान सह कर्मशाला 2025 को संबोधित कर रहे थे।
कुछ और सुर्खियां:
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अनछपी: बिहार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहेंगे या नहीं और क्या अगली सरकार भाजपा की होगी, इसे जानने में अभी 6 महीने लगेंगे लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नाम और शब्द बदलो एजेंडे पर काम तेज़ हो गया है। हाल में बिहार में इसकी शुरुआत वैसे तो गया का नाम बदलकर गया जी करने से हुई है लेकिन अब उपमुख्यमंत्री और कृषि मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने फसलों के नाम को लेकर नया फरमान जारी किया है। विजय सिंह भारतीय जनता पार्टी के कोटे से उपमुख्यमंत्री हैं और उनका कहना है कि मुगल काल के समय से शुरू हुए रबी और खरीफ शब्द का अब इस्तेमाल नहीं होगा। उनका कहना है कि मुगलों ने हमारी संस्कृति और भाषा खराब कर दी और उन शब्दों की जगह शारदीय और बसंतीय फसल का इस्तेमाल होगा। यह अपनी अपनी समझ की बात है वर्ना इतिहासकार मानते हैं कि मुगलों ने भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया है और यहां उनका सांस्कृतिक योगदान बहुत बड़ा है। विजय कुमार सिन्हा को सबसे पहले यह बताना चाहिए कि शारदीय और बसंतीय तो संस्कृत का शब्द है लेकिन इसके साथ लगने वाला शब्द फसल क्या अरबी नहीं है? अगर उन्हें मुगल और अरबी से इतने ही दिक्कत है तो शारदीय और बसंतीय फसल बोलने के बजाय उन्हें इसमें शामिल फसल को भी बदलना चाहिए। हालांकि उन्होंने रफू करते हुए यह जरूर कहा कि ब्रैकेट में खरीफ और रवि लिख सकते हैं। हद तो यह है कि मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने राज्य भर से आए कृषि अधिकारियों और मंच पर बैठे वरीय अधिकारियों की सहमति मांगी तो सभी ने हाथ उठाकर सहमति दी लेकिन इस प्रस्ताव पर कृषि सचिव आईएएस अधिकारी संजय अग्रवाल ने हाथ नहीं उठाया। श्री सिन्हा वैसे तो कहते हैं कि किसानों से क्षेत्रीय भाषा में बात करें लेकिन क्या उन्हें यह बात नहीं मालूम है कि आम किसान खरीफ और रबी शब्द का इस्तेमाल करता है, वह शारदीय और बसंतीय शब्द का इस्तेमाल नहीं करता। श्री सिन्हा की भाषा या कृषि की शिक्षा के बारे में हम बहुत कुछ नहीं जानते, लेकिन शायद उन्हें यह बात नहीं मालूम कि भाषा के स्तर पर इस तरह का बदलाव संभव भी नहीं है और इसकी जरूरत भी नहीं है। जरूरत इसलिए नहीं है कि आम लोगों को इससे कोई परेशानी नहीं और संभव यह नहीं है क्योंकि समय के बदलाव के साथ भारतीय समाज में अनगिनत नए शब्द आए हैं जो संस्कृत के नहीं हैं और या तो अंग्रेजों या मुगलों की देन हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कृषि रोडमैप की बात करते हैं तो क्या श्री सिन्हा पहले रोडमैप के लिए कोई संस्कृत शब्द लाएंगे? क्या हम बसों और ट्रेनों के लिए कोई संस्कृत शब्द ला सकते है? खेती में इस्तेमाल होने वाले ट्रैक्टर के लिए संस्कृत शब्द ला सकते हैं? मुगल काल के शब्दों का अतार्किक रूप से विरोध दरअसल भाषा की नासमझी और बेमतलब की नफरत का नतीजा है। अगर विजय कुमार सिन्हा जैसे लोगों का बस चले तो वह मुगलई खाने से भी मुगलई निकाल कर इसकी जगह संस्कृत का कोई शब्द ला सकते हैं। कहने को तो हिंदी में चलचित्र शब्द बना लिया गया लेकिन लोग आज भी फिल्म ही देखने जाते हैं। अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पकड़ सरकार पर बनी हुई है तो इस तरह की भाषाई नफरतों को अपनी सरकार में जगह नहीं बनाने देना चाहिए।
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