छपी-अनछपी: विधानसभा उपचुनाव में कांटे की टक्कर, बिहार के 30 ज़िलों में बेटियां घटीं
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। बिहार विधानसभा की चार सीटों पर होने वाले उप चुनाव में कांटे की टक्कर की उम्मीद है। बिहार के 30 जिलों में बेटियों का अनुपात कम हुआ है। आधार कार्ड नंबर नहीं जुड़ने से 26 लाख स्कूली बच्चों को योजनाओं के लाभ से वंचित होना पड़ सकता है। आज से राजगीर में एशियाई महिला हॉकी की शुरुआत हो रही है। मेडिकल प्रवेश परीक्षा ‘नीट’ में अनगिनत मौके देने का नियम बदल सकता है।
यह हैं आज के अखबारों की अहम खबरें।
प्रभात खबर के अनुसार 13 नवंबर को बिहार विधानसभा की चार सीटों पर होने वाले उपचुनाव को 2025 के विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। गया जिले के इमामगंज और बेलागंज, भोजपुर के तरारी और कैमूर के रामगढ़ में उप चुनाव होना है। गया की इमामगंज सीट केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की गया लोकसभा सीट से हुई जीत के बाद खाली हुई है। वहीं बेलागंज में उपचुनाव राजद विधायक सुरेंद्र यादव के जहानाबाद से सांसद बनने के कारण हो रहा है। तरारी की सीट पर भाकपा माले के विधायक सुदामा प्रसाद के आरा लोकसभा सीट से निर्वाचित होने के कारण उपचुनाव कराया जा रहा है। रामगढ़ सीट राजद के विधायक सुधाकर सिंह के बक्सर लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के कारण खाली हुई है। इन चारों सीटों पर मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच है लेकिन जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं। बेलागंज में साफ तौर पर आरजेडी, जदयू और जनसुरज में टक्कर नजर आ रही है। इसी तरह इमामगंज में हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, राजद और जन सुराज के बीच मुकाबला बताया जा रहा है।
30 जिलों में बेटियों का अनुपात कम हुआ
जागरण के अनुसार बिहार के 30 जिलों में बीते वर्षों की अपेक्षा लिंग अनुपात में काफी कमी आई है। हाल ही में समाज कल्याण विभाग की ओर से आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम में लिंगानुपात में कमी पर चिंता जाहिर करते हुए जिलों को भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान चलाने के सुझाव दिए गए। समाज कल्याण विभाग की ओर से आयोजित कार्यक्रम में हेल्थ मैनेजमेंट इनफार्मेशन सिस्टम की रिपोर्ट के हवाले से बताया गया कि राज्य में बेटियों की संख्या प्रति हजार पर केवल 882 रह गई है जबकि 2022-23 में यह संख्या 894 थी। आठ जिले ऐसे हैं जहां पुरुषों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या बढ़ी है। इन आठ जिलों में भागलपुर, किशनगंज, मधुबनी, सिवान, रोहतास, कैमूर और दो अन्य जिले हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार मुजफ्फरपुर में पिछले साल 1000 लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या 906 थी जो अब घटकर 880 हो गई है। पटना में पिछले साल लिंग अनुपात 889 था जो अब घटकर 862 हो गया है। इसी तरह गया में भी लिंगानुपात 917 से घटकर 870 रह गया है।
26 लाख बच्चे योजनाओं से हो सकते हैं वंचित
हिन्दुस्तान के अनुसार छात्रवृत्ति, पोशाक और साइकिल आदि योजनाओं से राज्य के करीब 26 लाख स्कूली बच्चे वंचित हो सकते हैं। इसका कारण है कि इन बच्चों का आधार कार्ड नंबर के साथ ई-शिक्षा कोष पोर्टल पर नाम दर्ज नहीं है, जबकि शिक्षा विभाग का निर्णय है कि आधार कार्ड नंबर के साथ सूची में दर्ज बच्चों को ही योजनाओं का लाभ दिया जाएगा। शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले एक करोड़ 76 लाख बच्चों की सूची ई-शिक्षा कोष पोर्टल पर अपलोड हुई है। इनमें करीब 22 लाख ऐसे बच्चे हैं, जिनका आधार नंबर नहीं दिया हुआ है। वर्तमान में राज्य के सरकारी स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या करीब एक करोड़ 80 लाख अनुमानित है। इस तरह से करीब 26 लाख बच्चे जिनका आधार कार्ड जल्द नहीं बना तो इन्हें योजनाओं की राशि से वंचित रहना पड़ सकता है।
महिला एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी हॉकी आज से
बिहार पहली बार हॉकी के महासंग्राम का गवाह बनने जा रहा है। राजगीर के नवनिर्मित एस्ट्रोटर्फ हॉकी स्टेडियम में सोमवार से एशिया की छह धुरंधर टीमों के बीच महिला हॉकी चैंपियंस ट्रॉफी का आगाज होगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार टूर्नामेंट का शुभारंभ करेंगे। दोपहर 12.15 बजे से पहला मैच शुरू होगा। यहां 20 नवंबर तक हॉकी का रोमांच, एक्शन और जोश देखने को मिलेगा। चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए भारत, चीन, जापान, कोरिया, मलेशिया और थाईलैंड टीमें बिहार पहुंच चुकी हैं। हर रोज तीन मैच खेले जाएंगे।
नीट में बदलाव की सिफारिश
जागरण की सबसे बड़ी खबर के अनुसार नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) में सुधार को लेकर इसरो के पूर्व प्रमुख के राधाकृष्णन की अगुवाई में गठित उच्च कमेटी की सिफारिश को स्वीकार किया गया तो आने वाली परीक्षाओं में काफी बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। इसमें सबसे अहम मेडिकल में प्रवेश की नीट यूजी परीक्षा में छात्रों को मिलने वाले अनगिनत मौके अब खत्म भी हो सकते हैं। इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में प्रवेश की परीक्षा जेईई मेन की तर्ज पर इस परीक्षा के लिए भी उन्हें अब अधिकतम कर मौके दिए जा सकते हैं। कमेटी ने जो एक और अहम सिफारिश की है, वह सभी परीक्षाओं को हाइब्रिड मोड में करने को लेकर है। यानी परीक्षा का पेपर ऑनलाइन मिलेगा जबकि सवालों के उत्तर ओएमआर शीट पर पेन से भरने होंगे।
कुछ और सुर्खियां
- बिहार के 1580 पैक्सों के चुनाव के लिए नामांकन आज से
- 51 वें चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया के रूप में संजीव खन्ना आज लेंगे शपथ
- बाबा सिद्दीकी को मारने वाला शूटर शिवकुमार उत्तर प्रदेश से गिरफ्तार
- आईजीआईएमएस में बिहार की पहली डीएनए जांच लैब बनेगी
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- लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे पर उन्नाव जिले में कंटेनर से भिड़ी कार, गया के गुरारू के पिता और जुड़वा बेटों की मौत
- नवादा में निजी कंप्यूटर शिक्षक की भयानक हत्या, बोरी में बंधा शव बाइक के साथ जलाया
अनछपी: बिहार में अलग-अलग कामों के लिए सर्टिफिकेट बनाने का काम आसान नहीं माना जाता हालांकि सरकार ने इसके लिए काफी कोशिश की है। इसी तरह का एक सर्टिफिकेट है डेथ सर्टिफिकेट जिसके बारे में एक रिपोर्ट आई है कि भारत में बनने वाला 98% मृत्यु प्रमाण पत्र कई मामलों में खरे नहीं उतरता। यह सुनने में अजीब लग सकता है लेकिन इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि 12 मानकों पर केवल दो फीसद मृत्य प्रमाण पत्र सही निकलते हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि डेथ सर्टिफिकेट में बड़ी गलतियां 99% और छोटी गलतियां 100% तक पाई गई हैं। आधा अधूरे डेथ सर्टिफिकेट होना आम बात है। जो 6 बड़ी खामियां डेथ सर्टिफिकेट में मिलती हैं उनमें मौत किस वजह से हुई यह नहीं लिखा पाया जाता है। इसी तरह मौत का तात्कालिक कारण भी नहीं बताया गया होता है। डेथ सर्टिफिकेट पर जो सिलसिलावर ब्योरा मिलना चाहिए, वह भी नहीं बताया जाता। कई बार मौत की ऐसी वजह लिख दी जाती है जिसे मानना मुश्किल होता है। इस रिपोर्ट में जिन छोटी गलतियों की जानकारी दी गई है उसमें सही पहचान नहीं लिखना, जांच करने वाले डॉक्टर का सही विवरण नहीं देना, संक्षिप्त शब्दों का ज्यादा इस्तेमाल होना और लिखावट पढ़ने योग्य नहीं होना बताया गया है। इसके अलावा मौत का समय भी कई सर्टिफिकेट पर दर्ज नहीं होता। इन गलतियों का खामियाजा सर्टिफिकेट लेने वालों को भुगतना पड़ता है। बीमा या कोई और क्लेम इस वजह से खारिज कर दिया जाता है। इसी तरह बंटवारे के मामले में भी गलत या अधूरे डेथ सर्टिफिकेट से परेशानी हो सकती है। यह भी देखा गया है कि गलत डेथ सर्टिफिकेट मिलने से हत्या के मामले में शक की वजह से मुलजिम को बरी कर दिया जाता है। डेथ सर्टिफिकेट की इन गड़बड़ियों की एक वजह तो यह हो सकती है कि रिश्तेदार सही जानकारी नहीं देते लेकिन सर्टिफिकेट जारी करने वाले को जिस तरह ध्यान देना चाहिए वह भी नहीं देते। आमतौर पर लोगों को इसकी वजह से होने वाली परेशानी की चर्चा मीडिया में नहीं होती लेकिन इस रिपोर्ट को सामने लाकर एक अच्छा काम किया गया है।
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