आक़ा सल्ल. के कफ़न का इंतज़ाम उनके ख़ज़ाने से नहीं हो सकता था मगर…जानिए वली रहमानी रह. ने क्या बताया था

 

समी अहमद

बिहार लोक संवाद डाॅट नेट

पंद्रह फरवरी 2021 को जब किसी ने उलेमा से संबंधित प्र्रोग्राम की सदारत कर रहे मौलाना वली रहमानी रहमतुल्लाह अलैह के सामने माद्दियत को अखलास के लिए जरूरी बताया तो मौलाना ने जज़्बाती होकर कई बातें कही थीं।

मौलाना की ज़बान में उस दिन मज़ाहमज़ाक़ भी था। एक वाक्या सुनाने लगे। उन्होंने कहाकभीकभी मैं अच्छी तक़रीर भी कर लिया करता हूं। अक्सर बेशतर तो यूं ही होती है। कभीकभी ज़ोरदार भी होती है। पढ़े लिखेलोगों का मजमा था। और अवामुन्नास भी थे। तकरीर के बाद किसी ने पूछ लिया कि उलेमाहुफ्फाज की इतनी ही कद्र है तो उनकी माली हालत खराब क्यों है।

मौलाना ने कहायह मुश्किल सवाल था। मैंने जवाब दियानिज़ामे खुदावन्दी हैजो जितना ज़रूरी है अल्लाह ने उसे उतना ही सस्ता रखा है। हवा को अल्लाह ताला ने बिल्कुंल मुफ्त रखा। पानी को अल्लाह ने फ्री रखा लेकिन बंदों ने उसपर टैक्स लगा दिया। इसी तरह मौलवीहाफिज जरूरी हैं तो उन्हें भी सस्ता रखा। अल्लाह ने उन्हें तसल्ली दी कि दुनिया में तुम्हारा माली हाल कमजोर होगा। इसकी तकमील उस दुनिया में होगी जो हमेशा रहने वाली है।

इसके बाद उन्होंने फरमायाहमारीआपकी हैसियत इमारत के पत्थर की है। आपने शाहजहांताजमहल का नाम सुना है। क्या कभी उन हाथों का नाम सुना है जिसने ताजमहल बनाये।तो जाने कोई हमें, जानेअरे अल्लाह तो जानता है।

फिर उन्होंने नबीआखि़र हज़रत मुहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहि वसल्लम का ज़िक्र किया। कहने लगेहमारे आक़ा का जिस हुजरे में विसाल हुआ। आपने कभी ग़ौर किया कि क्या हालत थी उस वक्त। कफ़न के लिए मुकम्मल कपड़े का भी इंतजाम आक़ा के ख़ज़ाने से नहीं हो सकता था। उस वक्त भी हुजरामुबारक में सात तलवारें थीं। हमने इसे मस्जिदे नबवी के हुजरे में छोड़ दिया। आज तो हमारे बहुत से मुफक्किर और नये उलेमा को सिर्फ एक चीज याद हैसुलह हुदैैबिया। उन्हें ग़ज़वा बद्र याद नहीं। ग़ज़वाउहद याद नहीं। सुलह हुदैबिया हयाते तैयबा मंे एक है और ग़ज़वा? सारी कहानी भूल गयेबस सिर्फ तन आसानी वाली कहानी याद है। वह भी गलत अंदाज में।

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