जदयू को कमजोर बनाकर ही भाजपा अपनी दावेदारी मजबूत कर सकती है

मंजर आलम, स्वतंत्र टिप्पणीकार

बिहार में विधानसभा चुनाव-2020 की सरगर्मियाँ तेज है।विभिन्न राजनीतिक दलों के द्वारा उम्मीदवारों का चयन भी जोरों पर है।टिकट न मिलने, सम्मानजनक सीटों पर समझौता न होने जैसे मुद्दों से असंतुष्ट नेताओं का दल बदलना, गठबंधनों के समीकरण में बदलाव जैसी प्रक्रिया भी अनवरत जारी है।सीधा मुकाबला एनडीए और महागठबंधन में देखने को मिलेगा हालांकि तीसरा गठबंधन भी मैदान में है।देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की सत्ता में बदलाव होता है या फिर नीतीश कुमार की ही सरकार पुनः सत्ता पर काबिज होती है।

आज हम बात एनडीए की करते हैं। भाजपा बिहार में भले ही एनडीए के बैनर तले नीतीश कुमार के नेतृत्व में  विधानसभा चुनाव-2020 चुनाव लड़ रही है परंतु वह अपनी पार्टी के नेता को मुख्यमंत्री बनाने की हार्दिक ईच्छा रखती है जिसकी रणनीति उन्होंने तय कर रखी है। उन्हें पता है कि बिहार में वह स्वयं अलग होकर चुनाव लड़ेगी तो संभवतः अच्छा परफॉर्मेंस नहीं कर पाएगी और ठीक यही स्थिति जदयू की भी है।भाजपा तो कैडर्स बेस्ड पार्टी है इस लिहाज से वह कुछ न कुछ सीटें जीत सकती है परंतु जदयू की स्थिति ऐसी नहीं है। इसलिए जदयू भाजपा गठबंधन एक मजबुरी है।जदयू बगैर गठबंधन किए चुनाव लड़ भी चुकी है और उन्हें अपनी स्थिति की बेहतर समझ है।

जाहिर है कि जदयू को कमजोर बनाकर ही भाजपा अपनी दावेदारी मजबूत कर सकती है इसलिए उन्होंने लोजपा को आगे किया है।लोजपा का अपने वोटरों पर एक मजबुत पकड़ जरूर है । लोजपा ने साफ ऐलान कर दिया है कि जिन सीटों पर भाजपा अपना उम्मीदवार घोषित करेगी वहाँ लोजपा का कोई उम्मीदवार नहीं होगा इस तरह जदयू लोजपा भाजपा सहित एनडीए के अन्य घटक दलों के समर्थक उन्हें वोट करेंगे इससे उनकी जीत सुनिश्चित हो सकती है।

जिन सीटों पर एनडीए की ओर से जदयू का उम्मीदवार होगा, वहाँ लोजपा अपने उम्मीदवार घोषित करेगी। स्थिति स्पष्ट है कि जदयू को लोजपा समर्थकों का वोट नहीं मिलेगा बाकी गठबंधन के अन्य घटक दलों का कितना वोट जदयू के पक्ष में जाएगा यह तो समय पर पता चलेगा।यद्यपि भाजपा समर्थकों के वोट की उम्मीद जदयू को रहेगी परंतु यह भी संभव है कि भाजपा समर्थक वोटर्स लोजपा कैंडिडेट के पक्ष में मतदान कर दें तो फिर ऐसे में जदयू के उम्मीदवारों के जीत की आश कम हो जाती है।यदि उन सीटों पर लोजपा जीत जाए तो वह भाजपा के लिए  कोई चिंता की बात नहीं होगी क्योंकि लोजपा प्रमुख चिराग पासवान जी ने  चुनाव बाद भाजपा लोजपा की सरकार की घोषणा पहले से ही कर दी है और केंद्र स्तर पर वह एनडीए का अभिन्न हिस्सा है। जदयू को सतर्कता बरतनी होगी कि एनडीए के सभी घटक दलों का वोट उन्हें निश्चित रूप से मिले।

चुनाव परिणाम के मुताबिक अगर भाजपा बड़ी पार्टी के रूप में उभरती है और जदयू की सीटें अपेक्षाकृत कम हो जाती है तो भाजपा मुख्यमंत्री की प्रबल दावेदारी ठोक सकती है ।लोजपा प्रमुख की मानें तो लोजपा का समर्थन उन्हें पहले से ही प्राप्त है।अधिकांशतः निर्दलीय विधायक स्वभाविक रूप से सत्ता पक्ष की ओर आकर्षित हो ही जाती है और कुछ विधायक तो मंत्री पद की आश में दल भी बदल लेते हैं जैसा कि भारतीय राजनीति में देखने को मिलता रहा है। सरकार बनाने में भाजपा की रणनीति किसी से छिपी हुई नहीं है।

इस तरह सत्ता की चाहत में अपने सिद्धांतों से समझौता करने वाले और बार बार पाला बदलने वाले नीतीश कुमार जी और उनकी पार्टी जदयू अब केंद्र बिंदु से बाहर हैं।अभी भाजपा केन्द्र बिंदु में है और बाकी घटक दल उनके चक्कर काट रहे हैं।

लोजपा एक तरह से जदयू को एक बड़ी सीख दे रहा है। सत्ता के लिए सिद्धांत से समझौता करना और जनादेश की अवहेलना करने वाली पार्टियाँ शायद इससे सबक हासिल करें। हालांकि राजनीति में निश्चित रूप से कुछ भी कह पाना संभव नहीं है।

 

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