बिहारशरीफ को सांप्रदायिक उन्माद के लिए सोच समझकर चुना गया: दीपंकर
■ शांति की अपील करने की बजाए अमित शाह ने सांप्रदायिक उन्माद की घटनाओं को चुनाव से जोड़ा.
■ एआइपीएफ के बैनर से पटना में ‘फासीवाद के खिलाफ संघर्ष का बिहार माॅडल’ पर परिचर्चा
■ रामनवमी की आड़ में हुए सांप्रदायिक उन्माद की घटनाओं की कड़ी भर्त्सना
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। पटना के आइएमए हाॅल में एआइपीएफ के बैनर से आयोजित ‘फासीवाद के खिलाफ संघर्ष का बिहार माॅडल’ विषय पर बुधवार को एक परिचर्चा का आयोजन किया गया।
इस परिचर्चा में भाकपा-माले महासचिव कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य, सामाजिक कार्यकर्ता सरफराज, डाॅ. विद्यार्थी विकास और ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने वक्ता के बतौर भाग लिया। परिचर्चा की अध्यक्षता पटना के जाने माने शिक्षाविद् गालिब ने की, वहीं संचालन एआइपीएफ के संयोजक कमलेश शर्मा ने की।
परिचर्चा में भाग लेते हुए माले महासचिव ने कहा कि बिहारशरीफ को सांप्रदायिक उन्माद-उत्पात के लिए बेहद सोच समझकर चुना गया। 100 साल पुराने ऐतिहासिक मदरसे को जला कर राख कर दिया गया। यह एक पहचान गिराने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि अगले दिन अमित शाह की नवादा में रैली हुई। उन्होंने शांति की अपील करने की बजाए सांप्रदायिक उन्माद की घटनाओं को वोट की राजनीति से जोड़ दिया।
“अमित शाह ने कहा कि गुजरात में भाजपा ने ऐसा कर दिया है कि वहां स्थाई शांति कायम हो गई है। यह स्थायी शांति क्या है? यह मुसलमानों के लिए दंगाई भाजपाइयों का कोडवर्ड है। गुजरात माॅडल जनसंहार पर आधारित माॅडल है। आज देश को बिहार माॅडल की जरूरत है। यह माॅडल देश को गुजरात होने से बचाएगा।”
उन्होंने कहा कि भाजपा के राम हिंसा के प्रतीक बना दिए गए हैं, वे आम हिन्दुओं के नहीं है। “बिहार में उन्माद की घटनाएं जो हाल में हुई हैं, उसमें प्रशासन की भी भूमिका बनती है। इसके खिलाफ आज सामाजिक समरसता के मूल्यों को फिर से से स्थापित करना होगा। यह महागठबंधन और हम सबके सामने चुनौती है।”
डाॅ. विद्यार्थी विकास ने कहा कि भारत में फासीवाद का आधार ब्राह्मणवाद है। उन्होंने कहा, “भाजपा शासन में इतिहास की पाठ्य पुस्तकों से बहुत से अध्यायों को हटा दिया गया है। दूसरी ओर देश की 70 करोड़ आबादी आज भी भुखमरी के कगार पर है। लगातार मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। बिहार की धरती से इन फासीवादियों को मुकम्मल जवाब मिलेगा।”
सामाजिक कार्यकर्ता सरफराज ने कहा कि देश में मुसलमानों को डर के साए में जीना पड़ रहा है। “मदरसों को तहस-नहस किया जा रहा है। नमाज पढ़ते वक्त मस्जिदों पर हमला किया गया। राम के नाम पर दंगा-फसाद की इस राजनीति के खिलाफ हम सबको एकजुट होना होगा।”
मीना तिवारी ने कहा कि बिहार की महिलाओं ने काफी जदोजहद के बाद अपने अधिकार पाए और अपनी पहचान हासिल की है। “बिहार में जो संघर्ष चला है, उसमें बिहार की महिलाओं का बराबर का योगदान रहा है. आशा, रसोइया आदि स्कीम वर्करों की दावेदारी और उनकी मांगों को पूरी करने की जरूरत है।”
इसके पहले एआइपीएफ के उद्देश्यों को विस्तार से परिचर्चा में संतोष सहर ने रखा। बिहार में शांति सद्भावना की बहाली, सांप्रदायिक उन्माद के पीड़ितो को मुआवजा व सुरक्षा, एपीएमसी ऐक्ट की पुनर्बहाली की मांग पर चल रहे आंदोलनों, बागमती पर तटबंध बनाने के खिलाफ चल रहे आंदोलन,स्कीम वर्करों, फुटपाथ दुकानदारों, अतिथि सहायक प्राध्यापकों आदि के प्रति एआइपीएफ की ओर से एकजुटपा प्रकट की गई और आने वाले दिनों में इसे मजबूत बनाने का भी संकल्प लिया गया।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में गालिब ने कहा कि सांप्रदायिक उन्माद के खिलाफ एआइपीएफ शांति की अपील के साथ जनता के बीच जाएगा। इस अवसर पर 41 सदस्यीय संयोजन समिति का भी गठन किया गया। एक सलाहकार मंडल का भी गठन किया गया, जिसमें प्रो. भारती एस कुमार, प्रो. संतोष कुमार, केडी यादव, पीएनपी पाल और संतोष सहर के नाम शामिल हैं।
कार्यक्रम में इन वक्ताओं के अलावा रामेश्वर चैधरी, रामलखन चैधरी, कुमार किशोर, विकास यादव, संतोष आर्या, विजयकांत सिन्हा, मंजू शर्मा, गजेन्द्र मांझी, फैयाज हाली, गुलाम सरवर आदि बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
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