बिहार की चार शख़्सीयतों को मिल चुका है भारत रत्न

सैयद जावेद हसन, बिहार लोक संवाद डाॅट नेट

पटना, 2 जनवरी: 2 जनवरी बिहार के इतिहास के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत रत्न जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान की शुरूआत 2 जनवरी 1954 को हुई थी। अब तक बिहार की चार शख़्सीयतों को यह सम्मान प्राप्त हो चुका है।

1961 में पहली बार किसी बिहारी विधानचंद्र राय को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। राय का जन्म 1 जुलाई 1882 में राजधानी पटना में हुआ था। उन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा पटना काॅलेजियेट स्कूल से हासिल की थी जबकि गणित से स्नातक पटना काॅलेज से किया था। उसके बाद मेडिकल की पढ़ाई की थी। विधानचंद्र राय पेशे से चिकित्सक थे। उन्हीं के जन्म दिन पर 1 जुलाई को हर साल चिकिसा दिवस मनाया जाता है। इससे भी ख़ास बात यह कि राय पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रह चुके थे। उन्होंने देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उनका देहांत 1962 में हुआ था।

1962 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डाॅक्टर राजेन्द्र प्रसाद को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। सीवान ज़िले के ज़ीरादेई में 3 दिसंबर, 1884 को जन्म लेने वाले राजेन्द्र प्रसाद भारत रत्न प्राप्त करने वाले देश की ग्यारहवीं विभूति थे। उनके प्रयास से महात्मा गांधी ने पटना में बिहार विद्यापीठ की स्थापना की थी। राजेन्द्र प्रसाद बिहार विद्यापीठ के प्रथम प्राचार्य थे और और राष्ट्रपति पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद यहीं रहने लगे थे। इन दिनों विद्यापीठ में कई प्रकार की शैक्षणिक गतिविधियों होती हैं। राजेन्द्र प्रसाद का देहांत 18 फरवरी, 1963 को हुआ था।

1998 में जयप्रकाश को, उनके मरणोपरांत, भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। जयप्रकाश नारायण का जन्म सारण जिले के सिताब दियारा में हुआ था। वे संपूर्ण क्रांति के नायक माने जाते हैं और लोक नायक और जेपी के रूप में प्रसिद्ध हैं। वर्तमान समय में बिहार की सत्ता में वर्षाें से अहम भूमिका निभा रहे लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, स्वर्गीय रामविलास पासवान, सुशील मोदी वग़ैरह लोक नायक की ही देन हैं। जेपी ने नागालैंड में शांति वार्ता की पहल की थी और चंबल के डाकुओं को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया था। जेपी का देहांत 8 अक्तूबर, 1979 को हुआ था।

2001 में शहनाई सम्राट उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। उनका असल नाम कमरुद्दीन खान था। उनका जन्म वर्तमान में बक्सर जिले के डुमरांव में 21 मार्च, 1916 को हुआ था। शहनाई वादन की शिक्षा अपने चचा अली बख़्श से हासिल करने वाले बिमिल्लाह ख़ान आगे चल कर देश के सर्वोच्च शहनाई वादक बने। उन्होंने जहां एक तरफ भारतीय शास्त्रीय संगीत को समृ़द्ध किया, वहीं देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब में भी चार चांद लगाया। बिस्मिल्ला खां की अहमीयत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1947 में, आजाद भारत की पूर्व संध्या पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हीं को आजाद देश की सुबह के स्वागत में, मंगलकारी धुन बजाने के लिए निमंत्रण दिया था। एक तरफ लाल किले पर देश का तिरंगा फहरा रहा था, दूसरी तरफ़ उस्ताद बिस्मिल्ला खां अपनी शहनाई के माध्यम से भारत की आजादी का शुभ संदेश देश के जन-जन तक पहुंचा रहे थे। उन्होंने गूंज उठी शहनाई, जल सागर जैसी कुछ फिल्मों में संगीत भी दिया था। उनका देहांत 21 अगस्त, 2006 को वाराणसी में हो गया था।

 

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