बेहद ख़ौफ़नाक है बिहार में बेरोज़गारी की सूरतेहाल

सैयद जावेद हसन, बिहार लोक संवाद डाॅट नेट पटना

देश में नरेन्द्र मोदी और प्रदेश में नीतीश कुमार रोज़गार दिलाने के नाम पर चाहे जितने वादे कर लें, सच्चाई तो यही है कि बेरोज़गारी की सूरतेहाल दिन पर दिन ख़ौफ़नाक होती जा रही है। कोरोना की वजह से पिछले साल अप्रील में 12 करोड़ लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। इस साल कोरोना की दूसरी लहर में एक करोड़ लोगों की नौकरी चली गई।

मशहूर अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने कहा है कि आर्थिक मंदी के कारण बेरोज़गारी की स्थिति और विस्फोटक हो सकती है यानी लोगों की आर्थिक स्थिति और खराब हो सकती है। पूरी महामारी के दौरान 97 प्रतिशत लोगों की आमदनी घटी है।

जहां तक बिहार का संबंध है, यहां के हालात भी चिंताजनक हैं। पिछले साल 25 लाख प्रवासी मज़दूर अपने गांव घर लौट आए थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन सबको उनके स्किल के अनुसार रोज़गार दिलाने का वादा किया था। रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया भी शुरू हुई थी। लेकिन यह पता नहीं चला कितने लोगों को रोज़गार मिला। अलबत्ता रोज़ी-रोटी के लिए प्रवासी मज़दूरों के वापस महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश जाने की ख़बरें ज़रूर आने लगीं। लेकिन विडम्बना देखिये कि दूसरी लहर शुरू होने के बाद ये प्रवासी मज़दूर फिर अपने गांव-घर आने लगे क्योंकि जहां वे काम कर रहे थे, लाॅकडाउन की वजह से फ़रवरी से ही फ़ैक्ट्रियां बंद होने लगीं।

क़िस्मत का खेल देखिये कि जब दूसरी लहर में भी नीतीश बाबू की सरकार इन लोगों को नौकरी दिलाने में नाकाम रही, तो ये लोग फिर बोरिया-बिस्तर समेट कर बाहर जाने के लिए रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों का रुख़ करने के लिए मजबूर हो गए।

बदहाली की कहानी सिर्फ़ प्रवासी मज़दूरों की नहीं है। बिहार के जो लोग खाड़ी सहित अन्य देशों में काम कर रहे हैं, उनमें से काफ़ी बड़ी तादाद में लोग बेरोज़गार हो गए हैं। इसकी वजह घर आने के बाद लाॅकडाउन लगना और संबंधित देशों के लिए फ़्लाइअ का रद् हो जाना है। इस कारण ऐसे लोगों की मार्फ़त विदेशों से बिहार आने वाली राशि में 5 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक की कमी दर्ज की गई है। साथ ही विदेशों से मनीआर्डर के पैसे आने में 60 फ़ीसद तक की कमी हो गई है। इसका सीधा असर प्रदेश के लाखों परिवारों की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है।

वहीं 20 फ़ीसदी पैसेंजर और 10 फ़ीसदी से ज़्यादा एक्सप्रेस ट्रेनों के रद होने से बिहार के विभिन्न स्टेशनों पर कार्यरत कुलियों की कमर टूट गई। जब मुसाफ़िर ही नहीं हंै तो ये बोझ किसका उठाएं। इसकी वजह से कुलियों की माली हालत दिन पर दिन ख़स्ता होती जा रही है।

जहां तक शिक्षा और शिक्षकों का सवाल है, तो बिहार में 4 हज़ार 352 प्ले स्कूलों के बंद होने से 20 हज़ार 272 प्राइवेट शिक्षक बेरोज़गार हो गए। वहीं, कोरोना संक्रमण से अब तक 600 सरकारी शिक्षकों की मौत हो चुकी है। इसकी वजह से दोनों तरह के शिक्षकों के बच्चे दाने-दाने को मुहताज हो गए हैं।

प्राइवेट स्कूल एंड चिल्डेªन वेलफ़ेयर एसोसिएशन के नेशनल प्रेसिडेंट सैयद शमाएल अहमद और टीचर सैयद सलमान ग़नी ने पीएम नरेन्द्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार से शिक्षकों और बच्चों के हित में तुरंत कोई ठोस क़दम उठाने की मांग की है।

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