खुदाबख्श लाइब्रेरी: विधानसभा पुस्तकालय समिति के सामने हाजिर होंगे पथ निर्माण विभाग के अधिकारी

बिहार लोक संवाद डाॅट नेट

दुनिया भर में मशहूर और भारत की धरोहर पटना स्थित खुदाबख्श लाइब्रेरी के अगले हिस्से का तोड़ने के प्रस्ताव के मामले में बिहार विधानसभा की पुस्तकालय समिति के अध्यक्ष व माले विधायक सुदामा प्रसाद पथ निर्माण विभाग के अधिकारियों को तलब करने की घोषणा की है। उन्होंने इस संबंध में शुक्रवार को बताया कि पुस्तकालय समिति की अगली बैठक में पथ निर्माण विभाग के अधिकारियों को बुलाकर इस विषय पर बातचीत की जा सकती है।
उन्होंने यह भी कहा कि जल्द ही इस मसले पर बिहार के बुद्धिजीवियों व शिक्षाप्रेमियों की एक बैठक बुलाई जाएगी और यदि सरकार नहीं मानती है तो इस पर आंदोलनात्मक कार्रवाई की रूपरेखा बनाई जाएगी।
श्री सुदामा ने कहा कि ऐतिहासिक धरोहर खुदाबख्श ओरियंटल लाइब्रेरी के गार्डेन व उसके भवन के कुछ हिस्से को सरकार द्वारा तोड़ने के निर्णय के खिलाफ बिहार विधानसभा अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री के नाम पत्र लिखकर इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष से इस अतिसंवेदनशील मसले पर अपने स्तर से हस्तक्षेप करने की भी अपील भी की है।
बिहार विधानसभा की पुस्तकालय समिति की बैठक में इस विषय पर गहन विचार-विमर्श किया गया। श्री प्रसाद ने कहा है कि यदि सरकार को फ्लाई ओवर बनाना ही है, तो वह विशेषज्ञों की राय ले और लाइब्रेरी को बिना किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाए उसके निर्माण के बारे में प्लानिंग करे। आज सिविल इंजीनियरिंग जब इतनी डेवलप हो चुकी है, तो ऐसा करना क्यों नहीं संभव हो सकता है?
उन्होंने कहा कि बिहार के शैक्षणिक जगत में इस लाइब्रेरी का महत्वपूर्ण योगदान है, जिसकी न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति है। इतिहास को जानने-समझने का यह एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह ऐतिहासिक अध्ययनों का भी एक बड़ा केंद्र है, इसलिए इसकी एक इंच जमीन को भी नुकसान पहुंचाना विधानसभा की पुस्तकालय समिति और बिहार के नागरिकों को मंजूर नहीं है।
उन्होंने सवाल किया कि इस अनमोल व बिहार के ऐतिहासिक पहचान व गौरव को आखिर कैसे नष्ट होने दिया जा सकता है? यह लाइब्रेरी दक्षिण तथा मध्य एशिया की बौद्धिक तथा सांस्कृतिक विरासत का सबसे बड़ा भंडार है। इसमें लगभग 21000 पांडुलिपियां और 2.5 लाख मुद्रित पुस्तकों का अद्वितीय संगह है। इसके मूल्यवान संग्रह के असीम ऐतिहासिक व बौद्धिक महत्व को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने सन 1960 में इस लाइब्रेरी को एक संसद अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया था।
इस लाइब्रेरी में कागज, ताड़पत्र, मृगचर्म, कपड़े और विविध सामग्रियों पर लिखित पांडुलिपियां हैं. जर्मन, फ्रेंच, पंजाबी, जापानी व रूसी पुस्तकों के अलावा अरबी, फारसी, उर्दू, हिंदी व अंग्रेजी में मुद्रित लाखों पुस्तकें हैं. प्राच्य अध्ययनों तथा अनुसंधान कार्यों के लिए छात्र-युवाओं व नागरिकों की आवश्यकताओं को पूरा करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। अनुसंधानकर्ताओं व स्काॅलरों तथा अनियमित पाठकों के लिए अलग-अलग दो अध्ययन कक्ष हैं।

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