बच्चों को मस्जिद में पढ़ने-खेलने दीजिएः फैसल रहमानी

बिहार लोक संवाद डाॅट नेट, पटना।
इमारत शरीया बिहार, झारखंड और उड़ीसा के अमीर हजरत फैसल रहमानी ने शुक्रवार को फुलवारी शरीफ की अलबा काॅलोनी की मस्जिद ए सादिक में जुमा की नमाज पढ़ाई। इस मौके पर अपने खुत्बे में अमीर ए शरीयत ने बच्चों को मस्जिद में पढ़ने और खेलने देने की बात कही।
उन्होंने कहा कि जिसका दिल मस्जिद में अटका होगा उसे अल्लाह की रजा मिलेगी। देखना होगा कि मस्जिद का इस्तेमाल सिर्फ नमाज के लिए हो रहा या हमलोग मस्जिद से लोगों का दिल भी लगा रहे। मस्जिद से दिल कैसे लगेगा। दिल बच्चों से लगेगा। अगर बच्चे मस्जिद में खेलेंगे। बच्चे मस्जिद में पढ़ेंगे। बच्चे मस्जिद का इस्तेमाल करेंगे। हो सकता है कि आपकी नमाज में खलल पड़े लेकिन जब ये बच्चे बड़े होंगे तो उनका दिल मस्जिद से लगा होगा। उन्हें यह जगह अपनी लगेगी। तब उनका दिल कुरआन और इस्लाम की बात मानने में लगेगा। उन्होंने बड़ों और बच्चों को अरबी पढ़ाने पर भी जोर दिया।
इमारत शरीया की स्थापना
अमीर ए शरीयत हजरत फैसल रहमानी ने कहा कि भारत के संविधान की आर्टिकल 25 से 30 तक मजहब की आजादी देती हैं। कुछ आजादी जो मजहब की थी, वो ले ली गयीं। यानी यह कहा गया कि क्रिमिनल लाॅ की आजादी नहीं है, वह संविधान के अनुसार होगा। लेकिन शरीयत एप्लीकेशन एक्ट के तहत पर्सनल लाॅ की इजाजत होगी। 1920-21 में इमारत शरीया की स्थापना की गयी और यह धारा 25 और काॅन्ट्रैक्ट लाॅ के तहत काम कर रही है। इमारत शरीया मजहब की आजादी के जायज इस्तेमाल के तहत आरबिट्रेशन लाॅ के तहत मामले में समझौता कराती है। बहुत से लोगों को यह गलतफहमी है कि यह समानांतर न्याय व्यवस्था है। ऐसा नहीं है।
इमारत शरीया किसका संगठन है
इमारत शरीया हर उस व्यक्ति की है जो ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूल अल्लाह पढ़ता हो, चाहे वा शिया हो या सुन्नी हो। यहां तक कि हर उस व्यक्ति के लिए है जो इमारत शरीया से मदद चाहता हो। इमारत शरीया किसी खास फिरके का संगठन नहीं है।
उन्होंने कहा कि इमारत शरीया की जो रीढ़ की हड्डी है वह है दारुल कजा। उन्होंने पूछा कि क्या हम लोग अपने झगड़ों-परेशानियों को लेकर दारुल कजा या दारुल इफ्ता आते हैं।
वसीयत करें
उन्होंने पूछा कि आपमें से कितने लोगों ने वसीयत कर ली है। उन्होंने कहा कि बहुत कम लोग मिलते हैं जिन्होंने वसीयत कर दी हो कि मेरे। अक्सर विरासत का झगड़ा खत्म हो जाए अगर हममें से हर आदमी वसीयत कर दे। उन्होंने यह भी कहा कि वसीयत करने में देर नहीं करनी चाहिए और इसमें इस्लाम का ख्याल रखना जरूरी है। उन्होंने आक करने को गैर इस्लामी बताया।
बंटा हुआ समाज
अमीर ए शरीयत ने कहा कि हम लोगों का समाज बंटा हुआ है। कुछ लोग जात में बंटे हुए हैं। कुछ लोग इलाके में बंटे हुए हैं। मर्द और औरत में बंटे हुए हैं। यानी हर उस चीज में बंटे हुए हैं जिसमें आपका और हमारा कोई बस नहीं चलता। अगर हम मर्द पैदा हुए, या औरत पैदा हुए तो इसमें हमने क्या कर लिया। हम यह नहीं कह सकते कि अलबा काॅलोनी अच्छी है और दूसरी काॅलोनी खराब है। हम यह नहीं कह सकते कि मर्द अच्छे हैं, और औरतें खराब हैं। यह भेदभाव है। और भेदभाव गुनाह है। यह शैतान का बहकावा है जिससे नफरत फैलती है। अल्लाह ने इंसान को इम्तिहान के लिए पैदा किया। इंसान की जिम्मेदारी है कि वह अल्लाह की रजा हासिल करे।

 

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