Metro से जुड़ेगा या बंदा होगा ऐतिहासिक मदरसा शम्सुल होदा
बिहार लोक संवाद डाॅट नेट
बिहार की राजधानी पटना के अशोक राजपथ पर इस मदरसे को जस्टिस नूरुलहोदा ने अपने वालिद मौलवी शम्सुल होदा के नाम पर कायम किया था।
मदरसा इस्लामिया शम्सुल होदा की स्थापना का उद्देश्य भविष्य में ऐसी पीढ़ी तैयार करना था जो धार्मिक और आधुनिक दोनों तरह की शिक्षा में एक्सीलेंस रखती हो। इसी के तहत जूनियर सेक्शन में क्लास वन से लेकर फ़ौकानिया यानी मैट्रिक लेवल तक की पढ़ाई शुरू की गई। वहीं, सीनीयर सेक्शन में मौलवी से लेकर फाजिल यानी इंटर से लेकर एमए तक की शिक्षा आरंभ की गई। पाठ्यक्रम में अंग्रेजी, हिन्दी, गणित, विज्ञान से लेकर अरबी अदब, फिकह, तफसीर, उसूल, मंतक और फलसफा को शामिल किया गया। यहां के विद्यार्थी जहां एक तरफ आईएएस, आईपीएस, आईआरएस, बीडीओ और डीएसपी बने वहीं बेतरीन शिक्षक और मशहूर आलिमे दीन भी हुए। लेकिन धीरे-धीरे इस मदरसे का पतन होने लगा।
आज बिहार के इस एकमात्र सरकारी और शिक्षा विभाग के अंतर्गत काम करने वाले मदरसे के सामने कई चुनौतियां हैं। जूनियर और सीनीयर सेक्शन मिलाकर टीचर के कुल 21 पोस्ट सैंक्शंड हैं। लेकिन 18 पोस्ट खाली हैं। प्रिंसिपल समेत सिर्फ 3 शिक्षक ही कार्यरत हैं। बरसों से शिक्षक की नियुक्ति नहीं हो रही है। नन टीचिंग स्टाफ के भी 7 पोस्ट खाली हैं। शिक्षक नहीं होने की वजह से जूनियर सेक्शन में एडमीशन बंद कर दिया गया। सीनीयर सेक्शन में भी पठन-पाठन का सिलसिला जैसे-तैसे ही चल रहा है।
प्रिंसिपल मशहूद अहमद कादरी नदवी कहते हैं कि सरकार मदरसा पर तवज्जो नहीं दे रही है।
उर्दू के सीनीयर पत्रकार डाॅ. रेहान गनी मदरसा की वर्तमान बदहाली के लिए उर्दू आबादी को दोषी ठहराते हैं।
मदरसा के पूर्व छात्र डाॅ. मोहम्मद अब्दुल
वाहिद कहते हैं कि उर्दू आबादी को चाहिए कि वह सरकार पर दबाव बनाकर रखे।
मदरसा शम्सुल होदा को एक संकट पटना मेट्रो से भी है। मेट्रो वाले मदरसा के पूर्वी हिस्से की जमीन का अधिग्रहण करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंनंे प्रिंसिपल से एनओसी की मांग की है। प्रिंसिपल कहते हैं कि जमीन बिहार स्टेट सुन्नी वक्फ बोर्ड की है इसलिए एनओसी वक्फ बोर्ड ही देगा।
मदरसे के विशाल कैम्पस में बच्चे और बड़े क्रिकेट खेलते मिल जाएंगे। उनके बाॅल ने कई खिड़कियों के शीशे तोड़ दिए हैं और दीवार के प्लास्टर उखाड़ दिए हैं। लेकिन उन्हें रोकने-टोकने वाला कोई नहीं।
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