प्रवासी मज़दूरों का कोई ‘मालिक’ नहीं, महिला मज़दूरों की स्थिति दयनीय

सैयद जावेद हसन, बिहार लोक संवाद डाॅट नेट पटना

कोरोनाकाल में प्रवासी मज़दूरों की हालत और हैसियत काफ़ी बदतर हुई है। ये जिस राज्य में रोज़ी-रोटी कमाने के लिए रह रहे होते हैं, वहां उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जाता है और वे बुनियादी सुविधाएं हासिल करने से वंचित रह जाते हैं। ये कोई राजनैतिक इल्ज़ाम नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक अध्ययन में यह बात कही गई है।

ये अध्ययन तब सामने आया है जब देश में कोरोना की दूसरी लहर है और प्रवासी मज़दूर अपने-अपने इलाक़ों में तेज़ी से लौटने लगे हैं। मानवाधिकार आयोग ने केरल डेवलपमेंट सोसायटी के सहयोग से चार हजार चार सौ प्रवासी मज़दूरों से बातचीत करके ये रिपोर्ट तैयार की है। बातचीत दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा और चार केन्द्र शासित प्रदेशों में रहने वाले बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ के प्रवासी मज़दूरों से की गई है। इन मज़दूरों ने बताया कि वे निर्माण, हेवी इंडस्ट्री, ट्रांस्पोर्ट, सर्विसेज़ और खेती जैसे हाई रिस्क सेक्टरों में काफ़ी कम आमदनी पर काम करते हैं। लेकिन वे स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक संरक्षण, शिक्षा, हाउसिंग, सैनिटेशन, भोजन और पानी जैसी सुविधाओं से वंचित रहते हैं।

अध्ययन में यह भी बताया गया है कि महिला मज़दूरों की हालत और भी दयनीय है। उन्हें पौष्टि आहार नसीब नहीं होता और रिपरोडक्टिव हेल्थ सेवा के मामले में उनकी हालत और भी नाजुक है। इन सबकी वजह से वे अस्थमा, कैंसर और प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी रोग का शिकार हो जाती हैं। हालत इतनी बदतर है कि 68 फीसद महिलाओं को झुग्गी-झोंपड़ियों में शौचालय की सुविधा प्राप्त नहीं है।

मानवाधिकार आयोग कहता है कि मजदूरों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व न तो उनके अपने राज्य में है और न ही उन राज्यों में, जहां वे जाकर काम करते हैं। राज्य की नीतियों में ये प्रवासी मजदूर शामिल ही नहीं हैं। इसीलिए, वे जिस राज्य में काम करने जाते हैं, वहां उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जाता है। इनमें बिहार के वो 25 लाख मजदूर भी शामिल हैं, जो पिछले लाॅकडाउन के समय बिहार वापस आए थे। कोरोना संक्रमण से राहत मिलने पर वे परदेस पैसा कमाने गए थे, लेकिन दूसरी लहर के बाद फिर वापस लौटने लगे हैं, एक बार फिर बेरोजगारी का सामना करने के लिए।

इन मजदूरों की भी अजीब जिन्दगी है, न यहां चैन है न वहां आराम। ये अलग बात है कि नेताओं के दावे जारी हैं।

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