छपी-अनछपी: राहुल गांधी माफी मांगने को तैयार नहीं, होटल मौर्या ईडी के निशाने पर

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी सांसदी जाने के बाद प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि वे सावरकर नहीं, गांधी हैं और गांधी माफी नहीं मांगते। राहुल गांधी से संबंधित इस विवाद की खबर सभी अखबारों में प्रमुख है। तेजस्वी यादव और उनकी बहन मीसा से जमीन के बदले नौकरी मामले में पूछताछ की खबर भी पहले पन्ने पर है। कर्नाटक में चुनाव से ठीक पहले अल्पसंख्यकों को मिलने वाला 4% कोटा खत्म करने की खबर भी अहम है।

हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी खबर है: राहुल ने कहा-सरकार डरी, भाजपा बोली-झूठ न फैलाएं। जागरण की मेन हेडलाइन है: सावरकर नहीं गांधी हूं, माफी नहीं मांगूंगा। लोकसभा की सदस्यता खत्म होने पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार पर आरोप लगाते हुए सियासत गरमा दी। शनिवार को उन्होंने दावा किया कि उनके भाषण से सरकार डरी हुई है। दूसरी ओर, भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पलटवार किया कि कांग्रेस कर्नाटक विधानसभा चुनाव में चुनावी लाभ पाने के लिए इस मामले को लेकर झूठ फैला रही है।

राहुल गांधी ने दावा किया कि सरकार उनके अगले भाषण से डरी हुई थी। वह सदन में अडानी मामले पर फिर भाषण देने वाले थे। राहुल गांधी ने यह भी कहा कि वह डरने वाले नहीं हैं और माफी नहीं मांगेंगे, क्योंकि उनका नाम सावरकर नहीं गांधी है और गांधी माफी नहीं मांगते। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा अडानी समूह से जुड़े सवालों से ध्यान भटकाने के लिए उन पर ओबीसी समुदाय के अपमान का आरोप लगा रही है।

तेजस्वी व मीसा से पूछताछ

भास्कर की पहली खबर है: सीबीआई ने तेजस्वी से 8 घंटे, ईडी ने मीसा से 7 घंटे पूछे सवाल। जागरण ने पहले पेज पर खबर दी है: तेजस्वी से सीबीआई व मीसा से ईडी की पूछताछ। हिन्दुस्तान के अनुसार रेलवे में नौकरी के बदले जमीन मामले में शनिवार को उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से आठ और मीसा भारती से छह घंटे पूछताछ हुई। तेजस्वी से सीबीआई की नई दिल्ली स्थित मुख्यालय में सुबह 11 बजे से पूछताछ शुरू हुई। उन्हें सिर्फ एक घंटे लंच करने के लिए मिला। बंद कमरे में सीबीआई के चुनिंदा अधिकारियों की टीम ने उनसे लगातार कई सवाल पूछे। जवाब को बकायदा दर्ज किया गया, जो इस केस में दस्तावेजी सबूत के तौर पर उपयोग किए जाएंगे। इधर, ईडी दफ्तर में मीसा सवालों का जवाब दे रही थी। मीसा से इस मामले में मनी लॉड्रिंग से जुड़े तथ्यों से संबंधित सवाल किए। उनसे पूछा गया कि इस घोटाले में आपकी क्या भूमिका रही है।

होटल मौर्या और ईडी की छापेमारी

कई अखबारों ने पटना के बड़े होटल पर छापेमारी की खबर दी है हालांकि उसका नाम नहीं दिया है लेकिन हिन्दुस्तान ने इस होटल का नाम मौर्या बताया है। होटल मौर्या के मालिक एसपी सिन्हा के ठिकानों पर ईडी की टीम ने शनिवार की शाम छापेमारी की। समझा जा रहा है कि यूपी के किसी धांधली के मामले की जांच ईडी कर रही है और इसमें कुछ तार इस होटल और इसके मालिक से जुड़े हैं। इसी वजह से यह छापेमारी की गई। सूत्रों के अनुसार, मालिक के आरा गार्डेन स्थित आवास और रुकनपुरा में एक अन्य ठिकाने पर दबिश दी गई। इस दौरान होटल मौर्या के सीए से अलग से पूछताछ की गई। मौर्या के तमाम रिकॉर्ड और यहां हाल के दिनों में ठहरे लोगों के बारे में भी जानकारी ली। हालांकि छापे के कारणों के बारे में आधिकारिक तौर पर कोई खुलासा नहीं किया गया है। यह कार्रवाई फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट ‘फेमा’ के तहत की गई है।

कर्नाटक में अल्पसंख्यकों का कोटा खत्म

कर्नाटक सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए चार प्रतिशत कोटे को समाप्त कर दिया है। इसकी एक छोटी सी खबर हिन्दुस्तान ने पहले पेज पर दी है। राज्य कैबिनेट ने धार्मिक अल्पसंख्यकों को ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत लाने का फैसला किया है। मुसलमानों को दिए गए 4 प्रतिशत आरक्षण को अब दो भागों में विभाजित किया जाएगा। जो कोटा समाप्त किया गया है उसे 2 बी कैटेगरी कहा जाता है।

कॉलेजों में नियमों की धज्जियां

भास्कर की खास खबर है: कॉलेजों की संबद्धता के नियम टूटे, फेल छात्रों को पास करने से लेकर टेंडरों में धांधली, 100 करोड़ का हिसाब नहीं। अखबार के अनुसार बिहार में 8 यूनिवर्सिटीज और 591 में 427 कॉलेज को नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रीडिटेशन काउंसिल ‘नैक’ की मान्यता तक नहीं है। बीआरए बिहार यूनिवर्सिटी, मुजफ्फरपुर और जेपी यूनिवर्सिटी छपरा ने नियम विरुद्ध कई कॉलेजों को संबद्धता दे दी जबकि उनके पास पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर तक नहीं थी। तिलकामांझी यूनिवर्सिटी में प्री पीएचडी में 354 फेल छात्रों को गलत ढंग से ग्रेस मार्क्स देकर पास कर दिया गया। पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी में दो एजेंसियों को नियम तोड़कर टेंडर दिए गए। और तो और तमाम यूनिवर्सिटी 100 करोड़ रुपए की ग्रांट का कोई हिसाब नहीं दे रही हैं। ये सारी बातें अकाउंटेंट जनरल की गोपनीय जांच में सामने आई हैं जो राजभवन को भेजी गई है।

कुछ और सुर्खियां

  • गर्मी में नहीं लगेगी सुबह की अदालत, पूरे वर्ष सुबह 10:00 से शाम 5:00 बजे तक चलेंगी जिला अदालतें
  • नीतू व स्वीटी बॉक्सिंग में बनी वर्ल्ड चैंपियन
  • 28 मार्च को जारी हो सकता है मैट्रिक का रिजल्ट
  • नहाए खाए के साथ शुरू हुआ चैती छठ, खरना आज
  • 15 साल पुराने कमर्शियल वाहन जुलाई से नष्ट होंगे
  • कक्षा 8 तक के बच्चों को 15 मई तक मिलेंगी किताबें
  • पटना के सभी 75 वार्डों में मिलेगी फ्री वाई-फाई की सुविधा, मोहल्ला क्लीनिक भी खोले जाएंगे
  • आरा के पास जमीन के झगड़े में मुल्ज़िम ने दरवाजा खुलवाया ,बच्ची से पिता के बारे में पूछा, नहीं मिले तो गोली मार दी
  • देश में अघोषित आपातकाल, सारी संस्थाओं पर कब्जा, 2024 में भाजपा मुक्त होगा भारत: ललन

अनछपी: बिहार के विश्वविद्यालयों के बारे में भास्कर की खबर में कोई नई बात नहीं है लेकिन यह जरूर है कि ऐसी खबरें अगर बराबर छपे तो शायद उन पर कुछ कार्रवाई भी हो। सच्चाई यह है कि बिहार में पढ़ाई का मामला पूरी तरह चौपट हो चुका है। स्कूलों की पढ़ाई को कुछ हद तक प्राइवेट स्कूल तो संभाल लेते हैं लेकिन उसके बाद उच्च शिक्षा का मामला आता है तो बिहार के विद्यार्थी पूरी तरह असहाय नजर आते हैं। यहां यह बात बताना जरूरी है कि विश्वविद्यालयों की कमान राज्यपाल के हाथ में होती है जिन्हें कुलाधिपति भी कहा जाता है और उनकी नियुक्ति केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के हाथों में होता है। 2014 के बाद से लगातार बिहार में राजभवन की कमान औपचारिक रूप से भारतीय जनता पार्टी के हाथ में रही है। इस दौरान विश्वविद्यालयों में धांधली के गंभीर आरोप लगे लेकिन कार्रवाई सिर्फ वाइस चांसलर तक सीमित रही है। ज़रूरत इस बात की है कि विश्वविद्यालयों में धांधली की जांच को राजभवन तक ले जाया जाए और यह देखा जाए कि आखिर वहां से कैसे आदेश पारित हुए जो ऐसी धांधलियों की वजह बने। विश्वविद्यालयों में सारा जोर वीसी और रजिस्ट्रार आदि की बहाली पर होती है और वहां की पढ़ाई पर शायद ही कभी कोई चर्चा सुनने को मिलती हो। विश्वविद्यालय का सेशन 2-3 साल लेट हो जाता है लेकिन इस पर कहीं कोई हंगामा नहीं मचता। इस कारण बिहार के विद्यार्थी बाहर के विश्वविद्यालयों में 1 से 2 साल लेट पहुंच पाते हैं। उच्च शिक्षा के साथ खिलवाड़ निश्चित रूप से बंद होना चाहिए। इस मामले में दोषियों की कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर भी आती है।

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