छ्पी-अनछपी: बिहार में नोटबंदी की तरह वोटबंदी? एसएफसी के अकाउंटेंट की 1.36 करोड़ की काली कमाई

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। बिहार में वोटर लिस्ट वेरीफिकेशन को लेकर विरोध जारी है और विपक्ष का कहना है कि यह नोटबंदी की तरह वोटबंदी का मामला है। स्टेट फ़ूड कॉर्पोरेशन के अकाउंटेंट के पास 1.36 करोड़ की काली कमाई का पता चला है। बिहार के सरकारी स्कूलों में पहली क्लास में एडमिशन के लिए आधार अब जरूरी नहीं। 2026 के हज के लिए अगले महीने जुलाई के दूसरे सप्ताह से ऑनलाइन एप्लीकेशन शुरू होगा।

और, जानिएगा कि भारत में ई वोटिंग करने वाला बिहार पहला राज्य बन गया है।

पहली खबर

हिन्दुस्तान के अनुसार बिहार में चुनाव आयोग के विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण पर सियासी घमासान छिड़ गया है। विपक्ष इसे गरीबों को वोट देने से वंचित करने की साजिश करार रहा है। नेता विपक्ष तेजस्वी यादव सवाल कर रहे हैं कि 25 दिन में मतदाता पुनरीक्षण कैसे संभव है। ऐसे कागजात मांगे गए हैं जो किसी गरीब के पास शायद ही हो। माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का कहना है कि नोटबंदी की तर्ज पर वोटबंदी की जा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम भी इसे बिहार में वोटर कम करने की साजिश करार रहे हैं। वहीं, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने कहा कि विपक्ष चुनाव आयोग की पारदर्शिता से घबरा गया है, तो यह गलत बात है। क्या विपक्ष चाहता है पारदर्शिता से चुनाव नहीं हो।

“गरीब वोटरों के मताधिकार खत्म करने की साजिश”

शुक्रवार को इंडिया गठबंधन के नेताओं ने एक पोलो रोड में आयोजित साझा प्रेस वार्ता कर कहा कि चुनाव आयोग जन्म प्रमाणपत्र की मांग कर रहा है, जबकि केंद्र सरकार की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में मात्र 2.8 फीसदी लोगों के पास ही यह उपलब्ध है। 13% लोग 10वीं पास तो एससी श्रेणी में 20 फीसदी और पिछड़ा वर्ग में 25 फीसदी के पास ही जाति प्रमाणपत्र है। स्पष्ट है कि गरीब वोटरों के मताधिकार खत्म करने की साजिश है। नोटबंदी की तर्ज पर वोटबंदी की जा रही है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने कहा कि चुनाव से पहले आठ करोड़ मतदाताओं का 25 दिन में पुनरीक्षण का कार्य कैसे पूरा होगा। 22 वर्ष पूर्व यह काम हुआ था, जिसमें दो साल लगे थे। लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद यह काम क्यों नहीं हुआ। जब लोकसभा चुनाव उसी वोटर लिस्ट पर हुआ तो विधानसभा चुनाव में क्या परेशानी है। वरना सरकार लोकसभा चुनाव को अवैध घोषित करे।

अकाउंटेंट के पास 1.36 करोड़ की काली कमाई

प्रभात खबर के अनुसार बिहार की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) ने बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम मोतिहारी में तैनात लेखपाल (अकाउंटेंट) राजेश कुमार के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, हाजीपुर और पटना स्थित छह ठिकानों पर शुक्रवार सुबह एक साथ छापेमारी की। अब तक की छापेमारी में राजेश की संपत्ति ज्ञात आय से करीब 201% अधिक पाई गई है। शुरुआती आकलन में 1.36 करोड़ की अवैध संपत्ति का पता चला है। दस्तावेजों की विस्तृत जांच के बाद यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। पटना के दानापुर स्थित सैफरन गार्डन अपार्टमेंट के ब्लॉक बी में फ्लैट नंबर 5 में देर शाम तक छापेमारी पूरी नहीं हुई थी।

सरकारी स्कूलों में पहली क्लास में एडमिशन के लिए आधार अब जरूरी नहीं

जागरण के अनुसार बिहार के सभी सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा में नामांकन के लिए अब बच्चों के आधार कार्ड की अनिवार्यता नहीं होगी। हालांकि इससे ऊपर की कक्षाओं में दाखिले के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता बनी रहेगी। सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा में नामांकन के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता खत्म करने का फैसला राज्य सरकार के शिक्षा विभाग ने लिया है। इससे संबंधित आदेश शुक्रवार को प्राथमिक शिक्षा निदेशालय साहिल के हस्ताक्षर से सभी जिला शिक्षा पदाधिकारी को जारी किया गया है।

हज के लिए जुलाई के दूसरे सप्ताह से ऑनलाइन एप्लीकेशन

भास्कर के अनुसार हज 2026 के लिए जुलाई के दूसरे सप्ताह से ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया शुरू होगी। हज कमिटी ऑफ इंडिया ने इसके लिए सर्कुलर जारी कर दिया है। जो लोग हज पर जाने के इच्छुक हैं वह हज कमिटी ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। मोबाइल ऐप हज सुविधा से भी आवेदन किया जा सकता है। आवेदक के पास पासपोर्ट होना जरूरी है जिसकी वैधता 31 दिसंबर 2026 या उसके बाद तक की होनी चाहिए। हज यात्रा के लिए पहली किस्त में डेढ़ लाख रुपए जमा करने होंगे।

ई वोटिंग करने वाला बिहार पहला राज्य

हिन्दुस्तान के अनुसार बिहार में पहली बार नगर निकाय चुनाव के तहत मतदाता शनिवार को अपने मोबाइल से वोट देंगे। भारत में पहली बार ईवीएम के साथ ई-वोटिंग से वोट डाले जा रहे हैं।  नगर निकाय चुनाव के लिए सुबह सात बजे से मतदान शुरू होगा। इसके साथ ही ईवीएम से भी मतदान होगा। राज्य निर्वाचन आयोग ने मतदान को लेकर सभी तैयारी पूरी कर ली है। मतदान के दौरान बूथों से लाइव वेबकास्टिंग भी की जाएगी, ताकि गड़बड़ी को तत्काल रोका जा सके। शुक्रवार को आयोग से मिली जानकारी के अनुसार मतदान के लिए 489 बूथ बनाए गए हैं। इन पर कुल 538 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला होगा।

कुछ और सुर्खियां:

  • बक्सर जिले में दल सागर टोल प्लाजा के पास ट्रक में गैस टैंकर में मारी टक्कर, गैस रिसाव से बचाने के लिए एक किलोमीटर का क्षेत्र खाली
  • ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भारी भीड़ से 600 से अधिक श्रद्धालु घायल और बीमार
  • रोहतास जिले के निमिया टिकरी के पास मोहर्रम जुलूस बिजली तार की चपेट में आया, एक की मौत
  • नरकटियागंज की हरबोड़ा नदी में डूबने से दो सगे भाइयों समेत चार बच्चों की मौत

अनछपी: यह बात बार बार साबित होती है कि भारतीय जनता पार्टी और इसके पैतृक संगठन के रूप में जाने जाने वाले आरएसएस को सेक्यूलर और सोशलिस्ट शब्द से चिढ़ है। यह बहस फिर इसलिए ताज़ा हुई है कि यह खबर आई थी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना से दो शब्दों धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी को हटाने की मांग की है। हालांकि जब बहस बढ़ी तो यह कहा गया कि उन्होंने इन दो शब्दों को हटाने की नहीं बल्कि उनकी समीक्षा की जरूरत बताई थी। सवाल यह है कि इन दो शब्दों से भारतीय समाज को क्या नुक़सान होगा? जब इनसे कोई नुकसान नहीं तो इनके विरोध के लिए इमरजेंसी का बहाना बनाना गंभीर सवाल खड़े करता है। इस बारे में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सही सवाल उठाए हैं। उनका कहना है संविधान इन्हें चुभता है क्योंकि वो समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि संघ-भाजपा को संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए। आरएसएस के बारे में यह बात पहले भी कही जाती रही है कि उसे भारतीय संविधान नहीं, मनुस्मृति वाला भारत चाहिए। राहुल का कहना है कि आरएसएस वाले बहुजनों और गरीबों से उनके अधिकार छीनकर उन्हें दोबारा गुलाम बनाना चाहते हैं। उधर राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने इस बारे में कहा कि देश के सबसे बड़े जातिवादी और नफरत करने वाले संगठन आरएसएस ने संविधान बदलने की बात कही है। दरअसल, संविधान बदलने का मुद्दा पिछले लोकसभा चुनाव के समय भी आया था। इसीलिए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने यह कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा का पूरा प्रचार अभियान भी संविधान बदलने पर केंद्रित था, लेकिन जनता ने इसे खारिज कर दिया। रमेश ने कहा कि आरएसएस ने कभी भी भारत के संविधान को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। इसने 30 नवंबर, 1949 के बाद से डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू और इसके निर्माण में शामिल अन्य लोगों पर निशाना साधा। इसलिए जब भी आरएसएस की ओर से संविधान में ऐसे बदलाव की बात हो तो भारत के आम नागरिकों को सतर्क रहना चाहिए।

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