छपी-अनछपी: आनंद मोहन की रिहाई मामले में भाजपा बैकफुट पर, पीएफआई के ‘ठिकानों’ पर एनआईए
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैया हत्याकांड में सजा काट रहे आनंद मोहन की रिहाई पर भारतीय जनता पार्टी बैकफुट पर दिखाई देती है। इससे जुड़ी सियासी बहस की खबरें प्रमुखता से छपी हैं। एनआईए ने पीएफआई के कथित ठिकानों पर एक बार फिर छापेमारी की है जिसकी खबर लीड बनी है।
भास्कर की सबसे बड़ी खबर है: 2016 में कड़ा हुआ कानून, तब मोहन परिवार विपक्ष में था, सत्ताधारी संग आए तो संशोधन… खुला रिहाई का रास्ता। गोपालगंज के तत्कालीन डीएम कृष्णैया हत्याकांड में सजायाफ्ता पूर्व सांसद आनंद मोहन की जेल मैनुअल में संशोधन के बाद रिहाई के फैसले ने सत्ता पक्ष के भीतर विरोध के साथ भाजपा में भी विभाजन की लाइन खींच दी है। भाकपा माले ने सरकार को घेरा कि उसने 30 साल की सजा पूरी कर चुके टाडा बंदियों को क्यों नहीं रिहा किया? यह सभी अरवल कांड के आरोपी हैं। माले के अनुसार रिहाई में भेदभाव हुआ। इधर भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने रिहाई का विरोध किया तो पार्टी के सांसद राजीव प्रताप रूडी ने आनंद की रिहाई पर खुशी जताई और प्रभुनाथ सिंह को भी छोड़ने की बात कही। इस पृष्ठभूमि में वैसे सभी बड़े कांडों पर चर्चा शुरू हो गई है जिसमें लोकसेवक मारे गए हैं। आईएएस अधिकारियों के केंद्रीय संगठन ने भी आनंद मोहन की रिहाई का विरोध किया है।
जेल मैनुअल में बदलाव की उलझन
कृष्णैया हत्याकांड को एक ऐसा मामला माना जा रहा है जिसमें कोई नेता किसी अफसर की हत्या के दोष में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है और जेल मैनुअल की व्यवस्था के चलते उसकी रिहाई नहीं हो पा रही थी। इस मैनुअल में 2016 में संशोधन किया गया था, तब महागठबंधन की सरकार थी। उस समय आनंद मोहन परिवार एनडीए के साथ था। 2016 के संशोधन में यह बात जोड़ी गई कि ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या जैसे जघन्य मामलों के कैदी रिहा नहीं होंगे। लेकिन 10 अप्रैल 2023 को काम पर तैनात सरकारी सेवकों की हत्या वाला मामला हटा दिया गया। इसी से आनंद मोहन या उनके जैसे अन्य कैदियों की रिहाई का रास्ता साफ हुआ।
एनआईए के छापे
जागरण की सबसे बड़ी खबर है: प्रदेश के 8 जिलों में एनआईए के छापे जबकि हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी सुर्खी है: पीएफआई ठिकानों पर बिहार के 9 जिलों में छापे। भास्कर की सुर्खी है: पीएफआई की साजिशों पर एनआईए का वार, बिहार में 7 जगहों पर दबिश। एनआईए ने प्रतिबंधित पीएफआई से जुड़े संदिग्धों के ठिकानों पर मंगलवार को छापेमारी की। बिहार के नौ जिलों के 12 सहित देशभर के 16 ठिकानों की तलाशी ली। दरभंगा, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, कटिहार, पूर्णिया, अररिया, शिवहर और सीवान के ठिकानों पर एनआईए ने संदिग्धों के परिजनों से पूछताछ भी की।
कुछ आपत्तिजनक नहीं मिला
सीवान के नगर थाना क्षेत्र की पटवा टोली में एनआईए टीम ने मो. जोहरम के घर की गहन तलाशी ली। हालांकि, इस दौरान कुछ भी आपत्तिजनक सामान नहीं मिला। पूर्वी चंपारण में चकिया के कुंअवा गांव में सज्जाद अंसारी के घर में छापेमारी कर आधार, पैन व अन्य कागजात अपने साथ ले गई। दरभंगा के शंकरपुर गांव में महबूब के घर तीन घंटे छापेमारी की। महबूब की मां से पूछताछ की और मोबाइल जब्त कर लिया। वहीं, लहेरियासराय के उर्दू मोहल्ले में दंत चिकित्सक डॉ. सारिक रजा के यहां भी दबिश दी। मुजफ्फरपुर के कटरा के अनखौली गांव में सरपंच का चुनाव लड़ चुके साकिब समेत तीन युवकों की तलाश में पांच घंटे तक छापेमारी की गई।
सूडान से वापसी
हिंदुस्तान की दूसरी सबसे बड़ी सुर्खी है: संकटग्रस्त सूडान से घर वापसी शुरू। संकटग्रस्त सूडान में फंसे भारतीयों की घर वापसी शुरू हो गई है। मंगलवार को ऑपरेशन कावेरी के तहत भारतीयों का पहला जत्था आईएनएस सुमेधा से सूडान से सऊदी अरब के जेद्दा के लिए रवाना हुआ। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्वीट कर बताया कि नौसेना के इस जहाज पर 278 लोग रवाना हुए। भारत ने हिंसाग्रस्त सूडान से अपने नागरिकों को निकालने के लिए ऑपरेशन कावेरी शुरू किया है।
मुस्लिम रिज़र्वेशन खत्म करने पर स्टे
हिन्दुस्तान की खबर है: मुस्लिम आरक्षण खत्म करने के फैसले पर रोक। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कर्नाटक सरकार द्वारा राज्य में मुस्लिमों के लिए चार फीसदी आरक्षण खत्म करने के फैसले पर नौ मई तक रोक लगा दी। कोर्ट ने यह अंतरिम आदेश तब दिया, जब राज्य सरकार ने मामले में अपना जवाब दाखिल करने के लिए वक्त देने की मांग की।
प्रकाश सिंह बादल का निधन
पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे और शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल का मंगलवार को निधन हो गया। वो 1947 में राजनीति में आए थे। वह सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बने थे। बादल का जन्म आठ दिसंबर 1927 को श्री मुक्तसर साहिब के गांव बादल में हुआ था।वह 1970 में सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बने। बादल केंद्र में मोरारजी देसाई सरकार में मंत्री भी रहे। बादल वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव हार गए थे। यह उनके राजनीतिक जीवन की पहली हार थी।
कुछ और सुर्खियां
- भाजपा सांसद व कुश्ती संघ के अध्यक्ष के खिलाफ पहलवानों की शिकायत सुनेगा सुप्रीम कोर्ट
- सीबीआई के आरोपपत्र में पहली बार मनीष सिसोदिया का नाम भी शामिल
- जो बाइडन फिर लड़ेंगे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव
- पिछला व अति पिछड़ा वर्ग के छात्रों को एक लाख से चार लाख की छात्रवृत्ति मिलेगी
- आईजीआईएमएस में 24 घंटे मिलेगी जांच रिपोर्ट
- राजद की 20 सदस्य प्रदेश समिति, 47 जिला अध्यक्ष घोषित
अनछपी: बिहार में पीएफआई के कथित फुलवारी शरीफ मॉड्यूल के खिलाफ एनआईए की कार्रवाई 10 महीने से जारी है। मंगल को एक बार फिर एनआईए ने बिहार के कई जिलों में पीएफआई के कथित ठिकानों पर छापेमारी की लेकिन अखबारों की रिपोर्ट के अनुसार कोई आपत्तिजनक चीज़ बरामद नहीं की गई। अखबारों की रिपोर्ट में सात, आठ और नौ जिलों का उल्लेख है। इस बारे में एनआईए जब अपनी वेबसाइट पर कोई जानकारी देगी तब सही तौर पर मालूम होगा कि आखिर उसने कितने दिनों में छापेमारी की। एनआईए की कार्रवाई तब से शुरू है जब पीएफआई पर पाबंदी नहीं लगाई गई थी। इसलिए किसी के पीएफआई से महज़ जुड़ाव ऐसा अपराध नहीं बन सकता जिसके लिए एनआईए की छापेमारी हो। रही बात पीएफआई के सदस्य होने के साथ देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप की तो अब तक अदालत से यह सही साबित नहीं हुआ है। पीएफआई के मामले में एनआईए की कार्रवाई पर सिर्फ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- मार्क्सवादी लेनिनवादी यानी सीपीआई-एमएल ने अपना विरोध दर्ज कराया है। सामाजिक न्याय का नारा लगाने वाली दोनों पार्टियों- आरजेडी और जेडीयू ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है। एनआईए को अपनी कार्रवाई के बारे में यह बताना चाहिए कि आखिर उसे बार-बार छापेमारी करने की जरूरत क्यों पड़ रही है और इससे उसका केस कैसे मजबूत हो रहा है। यदि एनआईए अपनी कार्रवाइयों के बारे में जरूरी जानकारी दे तो उस पर लगने वाला भेदभाव का आरोप कम होगा। अभी पीड़ित पक्ष यह आरोप लगाते हैं कि एनआईए उनके खिलाफ बिना किसी सबूत के और किसी और मंशा के कारण कार्रवाई कर रही है। एनआईए की गई कार्रवाइयों के बाद पकड़े गए अक्सर लोग निरपराध साबित हुए हैं और उन्हें अदालत से छुटकारा मिला है। इसलिए एनआईए से सवाल जरूर किए जाने चाहिए।
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