छपी-अनछपीः राष्ट्रपति पद के शपथ ग्रहण में नहीं गये नीतीश, फुलवारी मामले की एनआई जांच तेज

बिहार लोक संवाद डाॅट नेट, पटना। यह बात तो अब लगभग सबको मालूम है कि राष्ट्रपति बनी द्रौपदी मुर्मू का असल नाम पूटी टूडू था मगर स्कूल के शिक्षक ने उनकी यह संथाली पहचान बदलकर उनका नाम द्रौपदी कर दिया। शादी के बाद वे मुर्मू हो गयीं। राष्ट्रपति बनने के बाद उनके साथ हिन्दू धार्मिक अनुष्ठान का वीडियो भी सबने देखा। 25 जुलाई 2022 की तारीख को भारतीय जनता पार्टी इस रूप में प्रचारित करेगा कि इस दिन देश को उसने पहला आदिवासी राष्ट्रपति दिया। अधिकतर अखबारों में शपथ ग्रहण के बाद उनका बयान सबसे बड़ी खबर है। इस समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नहीं जाना चैंकाने वाला है।
हिन्दुस्तान और जागरण की हेडिंग एक जैसी है जिसमें राष्ट्पति द्रौपदी मुर्मू कह रही हैं कि गरीब के सपने साकार हो सकते हैं। प्रभात खबर ने सुर्खी लगायी हैः मेरा राष्ट्रपति बनना सबूत है कि एक गरीब आदिवासी भी पूरा कर सकता है अपना सपना। टाइम्स आॅफ इंडिया ने दो शब्दों की हेडिंग दी हैः जोहार, नमस्कार।
भास्कर की सबसे बड़ी खबर हैः शराब से जुड़े केस में फैसला अब हाथों हाथ, 55 नये जज नियुक्त।
फुलवारी शरीफ के कथित आतंकी मामले की जांच एनआईए द्वारा तेेज करने की खबर प्रमुखता से छपी है। इसमें बताया गया है कि एनआईए ने जब्ती सूची और ताजा केस डायरी मांगी है।
राज्य के इंजीनियरिंग काॅलेजों में 1560 सीटें बढ़ाये जाने की खबर भी प्रमुखता से छपी है।
सीतामढ़ी से दिल्ली जा रही बस यूपी में दुर्घटनाग्रस्त, 8 की मौत- यह खबर भी पहले पेज पर कवर की गयी है। इस बस ने एक्सप्रेस वे पर खड़ी दूसरी बस में टक्क्र मार दी थी। दूसरी बस के यात्री उस वक्त नीचे थे।
प्रभात खबर की खास खबर है कि गया के मेडिकल काॅलेज में नवादा के बुजुर्ग के शव के होंठ और नाक चूहे खा गये। इससे मेडिकल काॅलेज के हाल का अंदाजा लगाया जा सकता है।
जागरण ने अपनी दूसरी सबसे बड़ी खबर में बताया है कि लोगसभा में हंगामा कर रहे चार कांग्रेसी सांसदों को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया है।
अनछपीः आज के हिन्दी अखबारों में जो बात दबी-दबी सी छपी है वह यह है कि मुुख्यमंत्री नीतीश कुमार राष्ट्रपति पद के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने नहीं गये जबकि उनकी पार्टी ने द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया था। कल कई जगह इस बात की चर्चा रही कि आखिर नीतीश कुमार का शपथ ग्रहण समारोह में न जाना क्या अर्थ रखता है। कई विश्लेषकों का मानना है कि राष्ट्रपति पद के लिए आदिवासी उम्मीदवार के नाम पर नीतीश कुमार ने भाजपा की बात मान ली लेकिन बिहार में सत्ता के मामले में दोनों के रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे हैं। इसका एक उदाहरण फुलवारी शरीफ में कथित आंतकी माड्यूल का मामला है जिसके बारे मंे बिहार पुलिस मुख्यालय यह कहता रहा कि उसे एनआईए द्वारा इस केस को अपने हाथों में लेने की सूचना नहीं है लेकिन अखबारों में दिल्ली से यह खबर छपती रही। इस मुद्दे पर भाजपा और जदयू के नेताओं के बयानों से भी रिश्ते में खटास की बात समझी जा सकती है। दूसरी तरफ तेजस्वी यादव की नीतीश कुमार पर चुप्पी के भी राजनैतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं। खबर है कि 31 जुलाई को केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह भाजपा के एक बड़े कार्यक्रम में हिस्सा लेने आ रहे हैं। इसके साथ यह खबर भी है कि भाजपा 200 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। जिन 43 सीटों को भाजपा ने छोड़ा है, उनपर जदूय के उम्मीदवारी जीते हैं। इन सबके बीच जो सबसे बड़ा सवाल है, वह यह है कि क्या नीतीश कुमार अंततः भाजपा से अलग होने के निर्णय की तरफ बढ़ रहे हैं।

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