छ्पी-अनछपी: राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप आगे, सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा कानून को सही ठहराया
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव के लिए वोटों की गिनती में कमला हैरिस पर बढ़त बना ली है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा कानून को संवैधानिक ठहराया है। बिहार कोकिला के नाम से मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन हो गया है। झारखंड में इंडिया गठबंधन ने 10 लाख नौकरियों का वादा किया है।
अमेरिका के 47 वें राष्ट्रपति के लिए मंगलवार को वोट डाले गए। सुबह दस बजे तक की जानकारी के अनुसार पूर्व राष्ट्रपति और रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने 230 सीटों पर बढ़त बना ली थी जबकि कमला हैरिस को 165 सीटों पर बढ़त हासिल थी। भास्कर के अनुसार 500 से ज्यादा पोल सर्वे में दोनों के बीच हार जीत का फैसला केवल एक प्रतिशत का बताया जा रहा था लेकिन वोटों की गिनती में यह फ़ासला बढ़ गया। 538 इलेक्टोरल वोट में जीत के जादुई आंकड़ा 270 है। पहले डोनाल्ड ट्रंप को 245 वोट मिलते बताया गया था जबकि कमला के खाते में 200 वोट मिलने की संभावना बताई गई थी। सर्वे में ट्रंप ने साथ हम राज्यों में से 5 में बढ़त बना ली थी।
उत्तर प्रदेश मदरसा क़ानून सही: सुप्रीम कोर्ट
हिन्दुस्तान के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम-2004 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा, यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करते।शीर्ष अदालत ने कहा, मदरसा शिक्षा अधिनियम का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना है, जो राज्य सरकार के सकारात्मक दायित्व के अनुरूप है। कोर्ट ने कहा कि मदरसा अधिनियम के तहत छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए दी जाने वाली कामिल और फाजिल (ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन) की डिग्री वैध नहीं है क्योंकि यह यूजीसी अधिनियम के खिलाफ है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च, 2024 के फैसले को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने अधिनियम को असंवैधानिक बताते हुए राज्य के सभी मदरसे बंद करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यूपी के मदरसों में पढ़ने वाले 12 लाख से अधिक छात्रों और हजारों शिक्षकों को राहत मिली।
सरकार हर निजी संपत्ति को नहीं ले सकती
सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की संविधान पीठ ने मंगलवार को अहम फैसले में कहा कि सरकार के पास सभी निजी संपत्तियों को अधिग्रहित कर उसका पुनर्वितरण करने का अधिकार नहीं है। 32 साल से लंबित इस मामले में संविधान पीठ ने 7:2 के बहुमत से फैसला दिया।
शारदा सिन्हा नहीं रहीं
प्रभात खबर के अनुसार मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार रात दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। वह 72 वर्ष की थीं। शारदा सिन्हा को पिछले महीने एम्स के कैंसर संस्थान की आईसीयू में भर्ती कराया गया था। एम्स के एक अधिकारी ने बताया कि शारदा सिन्हा का सेप्टीसीमिया के कारण रिफ्रैक्टिव शॉक से 9:20 पर निधन हो गया। उन्हें मल्टीपल मायलोमा था। शारदा सिन्हा के गाये छठ गीत अभी हर तरफ बज रहे हैं और इस महापर्व के बीच उनके देहांत की खबर से उनके प्रशंसकों में मायूसी छा गई। शारदा सिन्हा ने भोजपुरी, मैथिली और मगही भाषा में लोकगीत गए थे। बिहार कोकिला के नाम से मशहूर और सुपौल में जन्मीं शारदा सिन्हा छठ पूजा व विवाह जैसे अवसरों पर गाए जाने वाले लोकगीतों के कारण बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मशहूर थीं। उन्होंने बॉलीवुड की कई फिल्मों के लिए भी अपनी आवाज दी थी। वह 2017 में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से बात और संगीत टीचर रिटायर हुई थीं।
झारखंड में इंडिया गठबंधन का 10 लाख नौकरियों का वादा
जागरण के अनुसार झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर मंगलवार को इंडिया के घटक दलों ने रांची में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और दूसरे प्रमुख नेताओं की उपस्थिति में संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया। इसे एक वोट, 7 गारंटी का नाम दिया गया है। इस बार चुनाव में इन्हीं 7 गारंटियों के बूते महागठबंधन दोबारा सत्ता में आने के संकल्प के साथ चुनावी मैदान में उतरा है। घोषणा पत्र में झारखंड के स्थानीयता के आधार से जुड़े 1932 के खतियान के मुद्दे से लेकर 10 लाख युवाओं को रोजगार देने समेत कई वादे किए गए हैं। गरीब परिवारों को 450 में रसोई गैस उपलब्ध कराने के वादा किया गया है तो 15 लख रुपए तक का पारिवारिक स्वास्थ्य बीमा देने की बात भी कही गई है।
जमीन के दस्तावेज 72 घंटे में मिल सकेंगे
हिन्दुस्तान के अनुसार बिहार में अब जमीन से संबंधित दस्तावेजों को ऑनलाइन आवेदन करके अधिकतम 72 घंटे में प्राप्त किया जा सकता है। खास बात यह भी है कि इनकी सत्यापित प्रति उपलब्ध कराई जाएगी। फिलहाल 25 प्रकार के राजस्व दस्तावेजों की डिजिटली हस्ताक्षरित प्रति रैयतों को उपलब्ध कराई जाएगी। इनमें जमाबंदी पंजी, बंदोबस्त पंजी, दाखिल-खारिज, खतियान, बीटी (बिहार ट्रिब्यूनल) एक्ट की धारा 103, 106 एवं 108 के तहत पारित आदेश, सीएस/आरएस/चकबंदी एवं म्युनिसिपल नक्शा जैसे दस्तावेज शामिल हैं। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने दस्तावेजों की सत्यापित प्रति ऑनलाइन प्राप्त करने की सुविधा एक वर्ष पहले शुरू की थी। परंतु इसमें भी अधिक समय लगने लगा था। इसके मद्देनजर विभाग ने इसमें समयसीमा निर्धारित करते हुए अधिकतम 72 घंटे कर दी गई है।
कुछ और सुर्खियां:
- एम्स, पटना के डायरेक्टर बेटे को फर्जी नॉन क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट के आधार पर एडमिशन कराने के मामले में हटाए गए
- भारत ने 2036 के ओलंपिक की मेजबानी के लिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति को पत्र सौंपा
- संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से 25 दिसंबर तक चलेगा
- जेईई एडवांस्ड में अब दो की जगह तीन मौके देने का फैसला
- माइनिंग माफिया के खिलाफ झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में 20 ठिकानों पर छापे
अनछपी: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा कानून को संविधान के अनुरूप बताते हुए जो महत्वपूर्ण टिप्पणी की है उस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। कोर्ट ने कहा कि यह सही है कि मदरसे धार्मिक शिक्षा देते हैं लेकिन उनका प्राथमिक उद्देश्य शिक्षा देना ही है। मदरसों के बारे में भारत में जितनी गलतफहमियां फैलाई गई हैं उसे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से एक हद तक दूर किया जा सकता है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि मदरसा अधिनियम उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक समुदाय के हितों को भी सुरक्षित करता है। कोर्ट ने कहा कि सभी अल्पसंख्यकों को चाहे वह किसी भी धर्म या भाषा पर आधारित हों, अपनी पसंद के शिक्षण संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार है। कोर्ट ने इसे राज्य सरकार के सकारात्मक दायित्व के अनुरूप बताया। सुप्रीम कोर्ट ने एक और महत्वपूर्ण बात यह कही कि मदरसा कानून धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता जैसा कि हाई कोर्ट ने कहा था। इस फैसले से उत्तर प्रदेश के 12 लाख से अधिक छात्रों और हजारों शिक्षकों को तो राहत मिल गई है लेकिन ध्यान आता है असम का जहां के मुख्यमंत्री ने सभी मदरसों को स्कूलों में तब्दील करने की घोषणा की थी और उन्हें बंद कर दिया था। क्या असम के मुख्यमंत्री सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुरूप मदरसों को फिर से बहाल कर सकते हैं या असम के लोग इसके लिए कोशिश कर सकते हैं? ध्यान रहे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मदरसा कानून को संवैधानिक बताते हुए उत्तर प्रदेश के सभी मदरसे को बंद करने का आदेश दिया था। इस फैसले से उत्तर प्रदेश के मदरसा छात्रों को तो राहत मिली है लेकिन असम के मदरसों को वहां के विवादास्पद मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की सांप्रदायिक सोच की वजह से नुकसान हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के सकारात्मक पहलू के साथ-साथ एक बात चिंता की भी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कामिल और फाजिल (ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन) की डिग्री वैध नहीं है क्योंकि यह यूजीसी अधिनियम के खिलाफ है। अब मदरसा शिक्षा चलने वाले लोगों के लिए यह बात सोचने की है कि क्या वह कामिल और फ़ाज़िल की डिग्री बंद करें या उसे किसी तरह यूजीसी के तहत करवाने की कोशिश करें।
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